समाचार विश्लेषण/इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
*कमलेश भारतीय
आज पचहतरवां स्वतंत्रता दिवस जिसे अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है और देश भर में जगह जगह तिरंगा यात्रायें निकाली जा रही हैं पिछले कई दिनों से । कितना उत्साह , कितनी खुशी , कितनी उमंग और कितना जोश । इस स्वतंत्रता के लिए क्या क्या नहीं किया ? पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर दूसरे स्वतंत्रता संग्राम तक । सन् 1857 को पहली क्रांति माना जाता है और उसके बाद नब्बे साल तक हम खून का तिलक लगाते रहे अपनी मातृभूमि के मस्तक पर । कितने लोगों ने बलिदान दिये , अपने शीश वार दिये अपनी मातृभूमि का सिर ऊंचा करने के लिए । आखिर पचहतर वर्ष पूर्व पंद्रह अगस्त , 1947 को हमें स्वतंत्रता मिली । पर थोड़ा दुख भी कि हमारे देश के अंग्रेज जाते जाते दो टुकड़े कर गये । आधी खुशी, आधे गम के साथ हमें यह आजादी मिली । विभाजन के चलते नया संघर्ष शुरू हुआ । नये देश का निर्माण शुरू हुआ । भाखड़ा बांध सहित अनेक बांध बनाये गये । कल कारखानों का निर्माण किया गया । विभाजन से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए योजनाएं बनाई गयीं । चंडीगढ़ जैसे नये नगर बसाये गये । देश को नया रंग रूप दिया गया । आज हम जिस देश में सांस ले रहे हैं यह एक दो दिन में इस रूप को नहीं पा सका था । समय लगा सपनों का देश बनाने के लिए । आखिर आज के सत्ताधारी नेता जब कहते हैं कि पूर्ववर्ती सरकार ने क्या किया तब आपके सामान्य ज्ञान पर थोड़ा हैरानी और ज्यादा दुख होता है । आखिर देश किसी कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता। इसके बनाने के लिए कितने श्रमिकों ने अपना योगदान दिया । सपने जैसे भवन बनाये । पहले की सरकारों द्वारा जो नींव बनायी गयी उसे अनदेखा करना बहुत उचित नहीं । आप नया सपना देखिए और देश के लिए काम कीजिए पर पूर्ववर्ती नेताओं की आलोचना बंद कीजिए । राजनीति अपनी जगह और देश निर्माण अपनी जगह । इस देश की कश्ती तूफानों से निकाल कर लाये हैं ।
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के ,,,,
कितनी आतंकवादी गतिविधियां और देश को नीचा दिखाने की कोशिशें चलती हैं । अखंडता को खतरा पहुंचाया जाता है । कश्मीर से कन्याकुमारी तक समस्याओं का अम्बार लगा है । हर राज्य में कहीं भाषा तो कहीं जाति तो कहीं अन्य समस्याएं हैं । आइए इन सबसे ऊपर उठें और भारतमाता के मस्तक को ऊंचा रखने का काम करें और देश के तिरंगे को ऊंचा और ऊंचा फहराने की कोशिश करें ।
*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।