समाचार विश्लेषण/अमृत महोत्सव में संविधान की बात
-*कमलेश भारतीय
देश भर में स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्षों के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है , जिसका समापन पंद्रह अगस्त को होने जा रहा है । अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये देष भर में और अभी किये जायेंगे । अभी हरियाणा में 'हर घर तिरंगा' भी लगाये जाने का नारा दिया जा रहा है लेकिन जब मोटरसाइकिल रैलियां निकाली गयी थीं , तब पत्रकारों ने रैलियों के बाद सड़कों पर इधर उधर गिरे तिरंगे की फोटोज दिखा कर इसके सम्मान के प्रति सजग किया था । तिरंगा हमारी आन बान और स्वाभिमान है । इसे देखते ही जोश का संचार होता है और कभी फिल्म समाप्ति के बाद 'जन गण मन' होता था और आधे से ज्यादा दर्शक पहले ही भाग निकलते थे सिनेमा हाल से । ऐसा अपमान ?
अभी हमारे हरियाणा के राज्यसभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने संसद से उन्नीस सांसदों को बाहर किये जाने पर कहा है कि असल में ये सांसदों को नहीं बल्कि संविधान को हो सस्पेंड किया जा रहा है । यदि हम जनहित मुद्दे ही सदन में उठा नही सकते तो नया संसद बनाने की जरूरत ही क्या है ? हम तो सरकार से इतना ही आग्रह कर रहे हैं कि महंगाई , खाद्य पदार्थों पर जीएसटी , बेरोजगारी , अग्निपथ और केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे जरूरी मुद्दों पर सदन में चर्चा हो । इसके विपरीत सांसदों की ही सस्पेंड कर दिया जाता है । इन मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए जांच एजेंसियों का दुरूपयोग कर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को परेशान किया जाता है । लोकतान्त्रिक विरोध को अलोकतांत्रिक तरीकों से कुचलने की ओछी हरकत की जा रही है । आप जनसभा में जाइए जैसे कि प्रधानमंत्री जी कहते रहे कि मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया , इसलिये जनसभा में आया हूं । शांतिपूर्ण विरोध करने पर भी पुलिस जबरन हिरासत में लेकर पुलिस स्टेशन ले जाकर बिठा देती है ।
क्या सचमुच संविधान ही सस्पेंड है ? क्या सचमुच संविधान एक आम पुस्तक बन कर रह गया है ? यह हमारे देश का भाग्य विधाता है । इसी के अनुसार सरकारें , नियम और कानून चलते हैं और चलने चाहिएं लेकिन हम आए दिन क्या देखते हैं कि किस तरह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकारों को असंवैधानिक ढंग से गिराया जा रहा है और किस तरह ईडी के 'सदुपयोग' से विपक्षी नेताओं पर शिकंजा कसा जाता है । क्या कभी आपने बसपा सुप्रीमो मायावती की कोई विरोध की आवाज सुनी ? कोई धाकड़ बयान या कोई आन्दोलन की चेतावनी सुनी ? नहीं न ? सब ईडी की माया है मेम साहब । रजनीकांत राजनीति में आने वाले थे , दादा साहब फाल्के लेकर ही सब योजना खटाई में डाल दी । ये ईडी ही है जो कितने नेताओं को पार्टी बदलने पर मजबूर कर रही है । ऊपर से धनवर्षा । क्रिकेट खिलाड़ियों के आईपीएल में बिकने की तरह हमारे विधायक भी बड़ी से बड़ी बोली लगने के बाद बिक जाते हैं । संविधान एक कोने में मुंह छिपाये रोता सिसकता रह जाता है ।
क्या अमृत महोत्सव के संपन्न होने से पहले इस रोते बिलखते संविधान की आवाज सुनी जायेगी ? इसे अंधेर कोठरी से बाहर खुली सांस लेने दी जायेगी ? स्वतंत्रता दिवस पर संविधान को भी स्वतंत्र कर दीजिए साहब ।
- *पूर्व उपाध्यक्ष , हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।