भारतीय शिक्षण मंडल के 56 वें स्थापना दिवस पर शिक्षण संवाद कार्यक्रम
शिक्षा में रामत्व को स्थापित करना जरूरी हैः बी.आर. शंकरानन्द

रोहतक, गिरीश सैनी। प्रभु श्री राम ने उपदेश से नहीं अपितु अपने आचरण से समस्त विश्व को प्रभावित किया था। सत्य है कि उपदेश से विकास नहीं होता, बल्कि आचरण से ही विकास होता है। इसलिए महत्वपूर्ण है कि शिक्षा में ‘रामत्व’ की प्राण प्रतिष्ठा होनी ही चाहिए। यह उद्गार भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी. आर. शंकरानन्द ने एमडीयू में भारतीय शिक्षण मंडल के 56 वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में- श्रेष्ठ भारत में शिक्षकों की भूमिका विषय पर हरियाणा प्रांत द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि साउथ एशियन विवि के अध्यक्ष प्रो के.के. अग्रवाल और बतौर विशिष्ट अतिथि हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता एमडीयू के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने की। कार्यक्रम में भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांत अध्यक्ष प्रो. जितेन्द्र भारद्वाज एवं संगठन मंत्री गणपति तेती की गरिमामयी उपस्थिति रही।
शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी. आर. शंकरानन्द ने कहा कि सच्चा संस्कार वही है जो करणीय व अकरणीय में अंतर बतलाता हो। भारतीय शिक्षण मंडल की स्थापना रामनवमी के अवसर पर हुई थी इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा में भी रामत्व का समावेश होना चाहिये। जब शिक्षा में रामत्व आता है तो सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ समाज का निर्माण ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है कि स्वस्थ कुटुम्ब का निर्माण हो और स्वस्थ कुटुम्ब के निर्माण के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ हो। तदुपरांत ही एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। उन्होंने आह्वान किया कि प्रत्येक शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों को विद्यार्थियों के लिए एक उदाहरण बनकर सामने आना चाहिए, तभी देश के युवा विद्यार्थी भी राष्ट्र निर्माण में अपना सकारात्मक योगदान दे पायेंगे।
उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ भारत का निर्माण, सतत विकास की ओर आगे बढ़ते हुए विश्व गुरु की ओर अग्रसर है। प्राचीन समय से ही भारत विश्व गुरु एवं वैभवशाली राष्ट्र रहा है। भारत वर्ष की दुनिया की रही जो कम होते होते केवल दो प्रतिशत रह गई जो यह दर्शाती है कि लंबे समय तक शासन करने वाले लोगों ने देश को लुटा है। देश को पुन: विश्व गुरु बनाने में प्रत्येक नागरिक अपना महत्वपूर्ण योगदान दे। यहां के शिक्षालयों में ऐसी शिक्षा पद्धति हो जिसमें पूर्ण भारतीयता हो,और यह तभी संभव है जब यहां के शिक्षण संस्थान प्राचीन भारतीय शिक्षण पद्धति को अपनाएंगे। उन्होंने महाशय धर्मपाल की पुस्तक का उदाहरण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. राजबीर सिंह ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसकी सहायता से विकास की पटरी पर दौड़ा जा सकता है। देश के विकास में शिक्षण संस्थानों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षक जब तक गुरु नहीं बनेगा तब तक यह सब असंभव है। एकेडमिक वातावरण निर्माण से शिक्षा में बदलाव आएगा।
अखिल भारतीय मंडल कार्य विभाग प्रमुख एवं प्रांत अध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र भारद्वाज ने भारतीय शिक्षण मंडल की प्रस्तावना प्रस्तुत की। उन्होंने शिक्षा में भारतीयता लाने के लिए प्रत्येक नागरिक के नैतिक कर्तव्यों,शिक्षा स्तंभों, गुरुकुल शिक्षा पद्धति, गुरु शिष्य परंपरा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला। भारतीय शिक्षण मंडल की विस्तृत रिपोर्ट प्रांत मंत्री पवन कुमार ने प्रस्तुत की।
इस दौरान पुष्पेंद्र राठी, पं. बीडीएस स्वास्थ्य विज्ञान विवि के कुलपति प्रो. एचके अग्रवाल, बीपीएसएमवी कुलपति प्रो. सुदेश, पूर्व कुलपति डॉ. श्रेयांश द्विवेदी, कुलसचिव डॉ. कृष्णकांत, हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. पूर्णमल गौड़, पूर्व कुलपति प्रो. जेपी यादव, डा. चंचल भारद्वाज, जगदम्बे वर्मा, सीबीएलयू कुलसचिव डॉ. भावना शर्मा, सीआरएसयू कुलसचिव डॉ. लवलीन मोहन, प्रो. प्रमोद भारद्वाज, प्रो. गुलशन लाल तनेजा, शिक्षा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वीपी यादव, डॉ. अश्वनी शर्मा, द्रोणाचार्य अवॉर्डी सुनील डबास सहित अनेक शिक्षाविद मौजूद रहे।