पत्रकार के पास सबसे बड़ा हथियार और ताकत उसकी भाषा है: कमलेश भारतीय
कमलेश भारतीय का यह इंटरव्यू इंडिया नेटबुक्स के संचालक व उनके मित्र डाॅ संजीव कुमार ने प्रश्नावली भेज कर लिया जिसे कमलेश भारतीय ने `सिटी एयर न्यूज़' के पाठकों के लिए भेजा है। डा संजीव कुमार अनुस्वार पत्रिका के मुख्य संपादक भी हैं।
1. पत्रकारिता में आपने अपना कैरियर क्यों और कैसे चुना? क्या इसमें किसी से कोई प्रेरणा और मार्गदर्शन भी मिला?
##जी । मैंने नहीं चुना पत्रकारिता को बल्कि पत्रकारिता ने मुझे चुना । दैनिक ट्रिब्यून के समाचार संपादक सत्यानंद शाकिर ने मुझे चुना और बाकायदा कहा कि तुम्हें लिखना आता है और पत्रकारिता कैसे करनी है यह हम सिखायेंगे जबकि मैं तो हिंदी प्राध्यापक लग चुका था । वही मेरे प्रेरणा स्त्रोत कहे जा सकते हैं । पूरे ग्यारह साल मुझे सिखाते रहे बातों बातों में ।
2. क्या आपने पत्रकारिता के लिए कोई विशेष कोर्स भी किया?
##-जी नहीं । कोई विशेष कोर्स नहीं किया । बस वे ग्यारह वर्ष का प्रशिक्षण ही मेरा विशेष प्रशिक्षण माना जा सकता है । यह प्रशिक्षण बहुत काम आ रहा है । यह किसी भी विश्वविद्यालय के कोर्स से सबसे बड़ा और लम्बा कोर्स था ।
3. आपने पत्रकार के रूप में किन किन प्रतिष्ठानों में काम किया है?
##मैं एक ऐसा खुशकिस्मत पत्रकार हूं जो सिर्फ एक ही प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'दैनिक ट्रिब्यून' में बिना किसी एप्रोच अपनी योग्यता के बल पर चुना गया । पूरे इक्कीस वर्ष काम किया ।
4. संप्रति आप किस प्रतिष्ठान से जुड़े हुए हैं? और किन गतिविधियों में संलग्न हैं?
##'दैनिक ट्रिब्यून' में पूरे इक्कीस वर्ष काम किया । अंततः प्रिंसिपल रिपोर्टर के तौर पर यह पद छोड़ कर 'कथा समय' मासिक पत्रिका का संपादन किया और हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष रहा । आजकल हरियाणा के सबसे प्रतिष्ठित सांध्य दैनिक नभछोर के संपादकीय सलाहकार के रूप में पिछले पांच से काम कर रहा हूं ।
5. पत्रकारिता में आपने किसी विशेष बीट/क्षेत्र में काम किया है या अन्य किसी प्रोफ़ाइल पर?
##पत्रकारिता करते समय मेरी विशेष बीट /क्षेत्र रहा पहले पंजाब विश्वविद्यालय और साथ साथ प्रतिष्ठित रचनाकारों के इंटरव्यूज करना । जिन इंटरव्यूज को मैंने 'यादों की धरोहर' संकलन के रूप में प्रस्तुत किया जिसके दो संस्करण आ चुके हैं और तीसरा संस्करण आप देने जा रहे हैं इंडिया नेटबुक्स की ओर से । हरियाणा में राजनीति की कवरेज तीन जिलों हिसार , फतेहाबाद और जींद में प्रमुख तौर पर करता रहा ।
6. क्या पत्रकारिता के साथ आप साहित्य सृजन में भी संलग्न हुए? यदि हाँ, तो क्या आप की कोई प्रकाशित किताबें भी है? तो उनका उल्लेख कीजिए?
## मूलतः मैं कथाकार था । पत्रकारिता जैसा शुष्क क्षेत्र भी मेरी रूचि कम थी और कथा लेखन में ज्यादा । मेरी तेरह पुस्तकें हैं -महक से ऊपर , दरवाजा कौन खोलेगा, मां और मिट्टी, शो विंडो की गुड़िया, जादूगरनी , यह आम रास्ता नहीं है और एक संवाददाता की डायरी मेरे कथा संग्रह है जिनमें से यह आम रास्ता नहीं है इंडिया नेटबुक्स से आया है ।
इनके अतिरिक्त मस्तराम जिंदाबाद , इतनी सी बात , इस बार , ऐसे थे तुम और मैं नहीं जानता मेरे पांच लघुकथा संग्रह हैं । इनमें मैं नहीं जानता का द्वितीय संस्करण भी आया है इन दिनों और 'इतनी सी बात' का पंजाबी में ऐसी कु गल्ल के रूप में अनुवाद भी हो चुका । प्रतिष्ठित रचनाकारों पर आधारित 'यादों की धरोहर' पुस्तक के भी दो दो संस्करण आ चुके हैं ।
7. क्या पत्रकारिता और साहित्य में कोई अंतर्संबंध है? कृपया स्पष्ट करें।
##बहुत ज्यादा अंतर्संबंध हैं । इसे साहित्यिक पत्रकारिता कह सकते है जिसने धर्मयुग , सारिका, दिनमान और साप्ताहिक हिंदुस्तान ने बहुत प्रचलित किया लेकिन खेद अब ये संबंध सूखने की कगार पर आ गये हैं जबकि साहित्य पत्रकारिता में प्राण फूंकने के लिए जरूरी है । साहित्य आत्मा है श्रेष्ठ पत्रकारिता की ।
8. पत्रकारिता के विशद संसार में आपने क्या विशेष अनुभव किया? कृपया कोई अविस्मरणीय घटना या कार्य साझा करें ।
##पत्रकारिता में रह कर मेरी भाषा जनभाषा के निकट पहुंची। मैं तो संस्कृत का छात्र रहा बी ए तक लेकिन पत्रकारिता ने आम बोलचाल की भाषा के निकट लाने में बड़ी भूमिका निभाई। मैंने हरियाणा के अपने पत्रकारिता समय में हुए बड़े अपराधों की कवरेज साहित्यिक भाषा और मनोविज्ञान से की तो संपादक ने मुझे विशेष तौर पर प्रोत्साहित किया और ऐसे प्रशंसा पत्र दिये । देश कभी नहीं भूल सकता बरवाला की सोनिया नाम की लड़की को जिसने नेपाल कांड की तर्ज पर प्रेरणा लेते हुए अपने ही परिवार के आठ परिजनों की पति के साथ मिल कर नृशंस हत्या कर दी थी और फांसी के फंदे से बचने के लिए राष्ट्रपति तक गुहार लगा रही है । पति फरार हो चुका है । धन की अंधी दौड़ का क्या अंत होता है यह दिखाने में मुझे सफलता मिली । ऐसे ही मात्रश्याम नाम के गांव के सरपंच ईश्वर ने सेक्स की दलदल में फंस अपनी ही पत्नी, बच्चों व पिता की हत्या कर डाली । ये हवस क्या क्या गुल खिलाती है इसे लिखने में सफलता मिली । जीवन में 'यह आम रास्ता नहीं है'की कहानी इसी भाव से आई ।
9. क्या पत्रकारिता में आपने कभी किसी दुविधा/ विडंबना का सामना किया? तो ऐसे समय में आपने क्या उपचार किया?
##जी । अपने अंतिम सात वर्षों में मीडिया की गिरावट भी देखी जब हर छोटा बड़ा नेता अपना समाचार खुद प्रेसनोट के जरिए भिजवाने लगा और मैं इसका घोर विरोध करता रहा कि जब कवरेज करने मैं गया हूं तो प्रेसनोट किसलिए और क्यों? लेकिन आज यही पत्रकारिता है । इसी का नाम गोदी मीडिया हो चुका है । उन सात वर्षों में अपने संपादकों से खूब झड़पें भी होती रहीं लेकिन ट्रस्ट की नौकरी के कारण कोई कुछ नहीं कर पाया और मैंने प्रेसनोट स्वीकार नहीं किये । थोड़ी हिम्मत दिखाने की जरूरत है । बस ।
10. क्या पत्रकारिता के अनुभवों का कोई प्रभाव आपके जीवन में भी पड़ा?
##जी । जैसे जासूसी निगाहें हो गयीं । चाल , चलन और चरित्र समझने में बहुत सहायता और अनुभव मिले ।।राजनीति की शतरंज और बिसात को समझा । परिवार जरूर थोड़ा उपेक्षित महसूस करता रहा लेकिन बाद में खूब घुमाया और सारी कसर निकाल दी । हां वो दिन वापस न आए । इस पर कहानी लिखी है-कब गये थे पिकनिक पर ?
11. क्या हिन्दी साहित्य में पत्रकारिता का कोई योगदान आप रेखांकित करना चाहेंगे?
##हिंदी साहित्य में साहित्यिक पत्रकारिता का उल्लेख कर चुका हूं । वही इसका योगदान है । साहित्य आत्मा है और पत्रकारिता शरीर और दोनों एक के बिना अधूरे ।
12. हिन्दी पत्रकारिता का अंतरराष्ट्रीय पटल पर क्या स्थान है?
##हिंदी पत्रकारिता अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी अपने चिन्ह छोड़ रही है इसमें संदेह नहीं । बीबीसी को ही क्यों विश्वसनीय माना जाता है ? हमारी किसी एजेंसी को क्यों नहीं इस योग्य माना जाता ? यह आज भी विचारणीय है ।
13. कोई पत्रकार साहित्य सृजन में रुचि क्यों लेता है? आपने साहित्य में रुचि क्यों ली/ क्यों नहीं ली?
##मैं तो आया ही कथाकार के रूप में तो मेरी रूचि तो पहले साहित्य में थी और रही बाद में पत्रकारिता की भाषा और तौर तरीके सीखे पर जिस बात के लिए पत्रकार जाने जाते हैं वे कभी नहीं सीखे और न सीखने की इच्छा हुई । विनम्र प्राध्यापक भी रहा ।
14. नवोदित पत्रकारों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं ?
##पत्रकार के पास सबसे बड़ा हथियार और ताकत उसकी भाषा है और जिस दिन आपने इसे इतना पैना बना लिया कि सामने वाला घबराने लगे उस दिन आप सफल हो गये । कम शब्दों में ज्यादा मारक शक्ति पैदा कीजिए । राॅकेट की तरह चलाइए शब्दों को और इनकी शक्ति का उपयोग करना सीखिये।
15. हिन्दी पाठकों की संख्या में वृद्धि के लिए क्या प्रयास किए जाने चाहिए?
##पाठकों के स्वाद को जानने और बदलने की कोशिश होनी चाहिए । मेरी अखबार ने यह मंत्र दिया कि धारा के खिलाफ चलिए । पाठक तो पता नहीं क्या क्या और किस स्तर तक फोटोज या समाचार चाहता है आप उसका टेस्ट बदलिए न कि उसके पीछे चलिए । पाठक के टेस्ट को बदलना और समझना लगातार जारी रहता है । मैंने नभछोर में लगातार प्रतिदिन इंटरव्यूज दिये रंगकर्मियों, कलाकारों और लेखकों के तो हर शाम इस अखबार की इंतज़ार होने लगी कि आज किसका इंटरव्यू आने वाला है । कोई ऐसा काॅलम चलाइए । रमेश बतरा का सारिका का 'डेढ़ फर्लांग का सफ़रनामा' ऐसा ही लोकप्रिय काॅलम रहा ।
डाॅ संजीव कुमार।