फिल्म और राजनीति के किरदार अलग हैं
-*कमलेश भारतीय
क्या फिल्मों में निभाये गये चरित्र राजनीति में आलोचना बन सकते हैं? सब जानते हैं कि राजनीति और फिल्म के किरदारों का आपस में कोई मेल नहीं होता और न ही होना चाहिए । फिर भी कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने मंडी(हिमाचल) से प्रसिद्ध अभिनेत्री कंगना रानौत को भाजपा की टिकट दिये जाने के बाद उनके खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट शेयर कर दी, जिस पर विवाद शुरू हो गया है । हालांकि कुछ समय बाद यह पोस्ट हटा दी गयी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और तीर हाथ से निकल चुका था । सीधी सी बात है कि कंगना रानौत की छवि को लेकर टिप्पणी की गयी थी, जिसका संज्ञान अब राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी ले लिया है और आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक महिला दूसरी महिला के खिलाफ ऐसी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर रही है । उन्होंने कहा कि आयोग ने इसे गंभीरता से लिया है और पार्टी व नेता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए चुनाव आयोग को भी लिखा है ।
दूसरी ओर भाजपा की हिमाचल प्रदेश इकाई ने भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास शिकायत दर्ज करवा सुप्रिया और एच एस अहीर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है ।
खुद कंगना रानौत ने कहा कि हर महिला सम्मान की हकदार है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि या पेशा कुछ भी हो ! वह सम्मान की हकदार है । वे कांग्रेस प्रवक्ता की टिप्पणी से आहत हुईं और कहा कि एक महिला का पेशा चाहे कुछ भी हो, वह शिक्षिका हो, अभिनेत्री हो, पत्रकार, नेता या कोई भी हो, सभी सम्मान की पात्र हैं । मैं इन टिप्पणियों से आहत हूँ और मेरी मंडी के लोग भी बुरी तरह आहत हैं !
क्या इस तरह की अभद्र भाषा में टिप्पणी करने में जल्दबाजी तो नहीं की गयी ? शायद ऐसा ही है या समझा जा सकता है । कंगना ने हर तरह के रोल किये हैं और अपनी निजी ज़िंदगी को भी खुली किताब की तरह रखा, फिर ऐसी टिप्पणी का मतलब? कंगना रानी की झांसी भी बनी और फिल्मी दुनिया में ड्रग्स के बढ़ते कारोबार और गतिविधियों का खुलकर विरोध भी किया । वह हिमाचल की बेटी है , यह हिमाचल के, मंडी के लोगों को देखना है कि कंगना के इन कृत्यों को कैसे देखना है ! कंगना के फिल्मी किरदारों को कांग्रेस को एक तरफ रखना होगा। जब कांग्रेस किसी फिल्मी कलाकार को टिकट देती है तो क्या उसके फिल्मों में निभाये किरदारों के आधार पर टिकट देती है? नगमा, उर्मिला मातोंडकर, वैजयंती माला जैसी अभिनेत्रियों को जब कांग्रेस ने टिकट दिये तब क्या उनके फिल्मी किरदारों या उनकी निजी ज़िंदगी को जांचा? नहीं न ! सब फिल्म वालों की लोकप्रियता को ही आधार बनाते हैं और यह प्रचलन राजनीति के लिए बहुत शुभ तो नहीं है जबकि इसकी शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी और अब भाजपा ने भी इसे अपना हथियार बना लिया तो किससे शिकवा और किससे शिकायत ?
तभी तो कह गये कोई कवि कि बोये पेड़ बबूल के तो आम कहां से होये!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।