समाचार विश्लेषण/एक योगी की भाषा -पूंछ पाड़ेगा के मेरी ...

समाचार विश्लेषण/एक योगी की भाषा -पूंछ पाड़ेगा के मेरी ...
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
क्या एक योगी से ऐसी भाषा की उम्मीद की जानी चाहिए ? जैसी भाषा और जैसा व्यवहार हमारे योगगुरु रामदेव ने पत्रकार के साथ किया है ? मामला करनाल का है । पत्रकार ने योगगुरु से पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों के बारे में सवाल क्या पेच लिया कि योगगुरु एकदम भड़क गये और बोले -पूंछ पड़ेगा के मेरी ? तू ठेकेदार है , मैंने तेरे सवालों का जवाब देने का ठेका ले रखा है क्या ? मैं भी अठारह अठारह घंटे काम करता हूं अपने बच्चों के लिए । काम तो सबको करना पड़ेगा । ज्यादा काम कर हम देश की तरक्की में सहयोग दे सकते हैं । फिर यह भी कह दिया कि यह सच है कि पेट्रोल , डीजल के रेट बढ़ गये हैं । लेकिन सरकार की भी कुछ बाध्यताएं हैं । इतनी प्यारी भाषा और इतना मासूम सा जवाब पत्रकार ने उम्मीद नहीं की होगी योगगुरु से । असल में पत्रकार याद दिला बैठा कि योगगुरु जी , आप कहा करते थे कांग्रेस राज में कि चालीस रुपये लीटर से ज्यादा कीमत पेट्रोल की प्रति लीटर नहीं होनी चाहिए । बस । इतने से ही भड़क गये योगगुरु जी । वैसे तो रामदेव जी कहा करते थे कि स्विस बैंक से काला धन लायेंगे मोदी जी लेकिन अब कोई स्विस बैंक की बात ही नहीं करता । हां , अपने देश में नोटबंदी लागू कर यह कहा गया था कि हमने आतंकवादियों की कमर तोड़ दी लेकिन नकली नोट फिर तुरंत चलन में आ गये । यहां तक कि दस रुपये के सिक्के भी हिसार में बनाये जाने की बात आई और हिसार में कोई दुकानदार दस का सिक्का नहीं लेता । गलती से आ जाये तो हिसार में नहीं चलता । 
योगगुरु को इतने भड़क जाने की जरूरत क्या थी ? आखिर योगगुरु टीवी चैनलों पर इतने हंसते मुस्कुराते जवाब कैसे देते हैं ? इतने मज़ाक करते हैं एंकर्ज से और करनाल में क्या हो गया ? क्या इस भाषा पर वे विचार करेंगे ? संत कबीर तो कह गये हैं :
वाणी ऐसी बोलिए , मन का आपा खोये 
औरन को शीतल करे , आपहिं शीतल होये ,,,,
फिर योगगुरु यह बात क्यों भूल गये ? हजारों करोड़ों की टर्न ओवर वाली पतंजलि चलाने वाले बाबा जी , थोड़ा सोच कर और तोल कर बोल बोलिए नहीं तो आपको पूंछ बचानी मंगाकर हो सकती है । असल में योगगुरु राजनीति में ज्यादा सक्रिय होते जा रहे हैं । यही कारण है कि दिल्ली में एक आंदोलन के दौरान जो फजीहत हुई वह सब जानते हैं । आप योगगुरु हो और योग दिवस करवा लाना आपकी बहुत बड़ी उपलब्धि है । फिर बाकी तृष्णा किसलिए ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।