द लाॅस्ट गर्ल : हृदयस्पर्शी फिल्म पर भाषा की समानता न होने का दुख
-कमलेश भारतीय
कोशिश रहती है कि हरियाणा में हूँ तो हरियाणवी रंग में रंग जाऊं और हरियाणवी फिल्म का आनंद ले सकूं। यह सिलसिला चल रहा है -अश्विनी चौधरी, यशपाल शर्मा, राजीव भाटिया, ऊषा शर्मा, यश बाबू, चिराग भसीन आदि की बनाई फिल्में देखकर । यशपाल शर्मा की दादा लखमी के तो मुहर्त्त से लेकर इसके कलाकारों के अनगिनत इंटरव्यू करने तक जुड़ा रहा । राजीव भाटिया की दो शाॅर्ट फिल्मों के निर्माण को भी करीब से देखने का अवसर मिला ।
अभी पिछले साल 'फौजा' फिल्म देखी थी, हिसार की नीवा मलिक के चलते । बीच में हिसार की ही रमन नास्सा ने '48 कोस' भी दिखाई। अब आई है 'द लाॅस्ट गर्ल' और फिर रमन का उत्साहजनक निमंत्रण कि भाई साहब आइये, फिल्म देखिए और मेरा रोल भी देखिए।
जहा़ं तक जानकारी अखबारों से मिली वह यह कि इसे गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार के जनसंचार विभाग के छात्र रहे आदित्य रानौलिया ने बनाया है और यह भी कि सत्य घटना पर आधारित है यह फिल्म ! जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में दंगे भड़के और सिक्खों को निशाना बनाया गया, ठीक उसी दिन एक सिक्ख परिवार अपनी बेटी का जन्मदिन मना रहा होता है और फिल्म शुरू होती है जन्मदिन की गिफ्ट लाने से ! जन्मदिन की खुशियां बीच में ही रह जाती हैं, जब दंगाइयों द्वारा घर पर हमला होता है और यह परिवार पिछले दरवाजे से जीप में भाग निकलने में कामयाब हो जाता है लेकिन हांसी के निकट जीप हादसे का शिकार हो जाती है और नन्ही बच्ची तो उछल कर जीप से बाहर दूर जा गिरती है जबकि बाकी परिवार के तीनों प्राणी दम तोड़ देते हैं । बच्ची होश आने पर गिरती पड़ती खेतों में जाकर बेहोश हो जाती है, जहां उसे देखकर मलिक अपने घर ले जाता है। उसकी कोई संतान नहीं, इसीलिए वह पांच खेत अपने छोटे भाई को दे देता है । जैसे जैसे वह इस बच्ची को पहले पुलिस और फिर अनाथालय से अपना कर अपनी बेटी बना कर पालने लगता है । मलिक की छोटी भाभी को खतरा हो जाता है कि वह हमसे पांच खेत भी ले लेगा और वह कुचालें चलती है अपने बेटे काले के साथ, जो सफल नहीं होतीं और काले को जेल की हवा खानी पड़ती है ।
इधर लाॅस्ट गर्ल को जन्मदिन पर हुए हादसे का बुरा सपना बार बार आता है। वह समझने लगती है कि ये मलिक उसके असली माता पिता नहीं । इधर मलिक पति पत्नी भी यह भांप कर उसकी शादी कर देते हैं लेकिन अपनी बचपन की फ्राॅक पर दर्जी के पते के सहारे वह अपने बचपन के माता पिता और घर को ढूंढ निकालती है लेकिन वे तो हादसे में ही जान गंवा चुके थे। इस पूरे घटनाक्रम पर वह उपन्यास लिखती है -द लाॅस्ट गर्ल और इसके विमोचन के साथ यह फिल्म समाप्त होती है।
यह तो रही कहानी या कहिये पटकथा और अब आइये इसकी भाषा पर क्योंकि यह दिल्ली से लेकर हरियाणा तक जुड़ी हुई है तो इसमें हरियाणवी, पंजाबी ही नही हिंदी में संवाद बोलते पात्र मिलते हैं । एक बार तो मैं असमंजस में पड़ जाता हूँ एक दर्शक के रूप में कि मैं किस भाषा की फिल्म देख रहा हूँ ? पात्र वही लेकिन कभी हिंदी बोलते हैं तो कभी थोड़ी सी हरियाणवी और यहां तक कि लोरी भी हरियाणवी में नहीं है ! यहां थोड़ा ध्यान देंने की जरूरत सी लगी ।
अब आते हैं अभिनय पर। हीरोइन पर आधारित फिल्म में जो कलाकार है उसने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है। पूनम जांगड़ा मां अंग्रेजो के तौर पर, नवीन निषाद पुलिस थानेदार के रोल में तो रमन नास्सा को पहली बार अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर अवसर दिया निर्देशक ने और वह भी खूब रही। हरियाणवी फिल्मों को एक खलनायिका मिल गयी। नीवा मलिक की फौजा के बाद दूसरी फिल्म है और वह स्पोर्टिंग रोल में दिखी है-चुलबुली सी लेकिन डर है कि यह प्रतिभाशाली नयी अभिनेत्री कहीं हिंदी फिल्मों की नाजिमा की तरह बहन या सहेली के रोल्स के लिए टाइप्ड न होकर रह जाये। डाॅ प्रज्ञा कौशिक के हिस्से भी दो सीन आये। शुभ है, इस बहाने फिल्म में दिखीं। सुमन सेन ने भी अच्छी भूमिका निभाई ।
फिल्म को हरियाणवी दिखाने के लिए इस की शूटिंग हांसी व आसपास के गांव में की गयी दर्शाई गयी है और लोकेशन व फिल्मांकन बहुत ही सुंदर है। बधाई आदित्य रानौलिया और इसके कलाकारों को।
बाकी थोड़ा कहा, ज्यादा समझना और एक बार भाषा पर अगली फिल्म में थोड़ा गौर करना । बाकी बल्ले बल्ले!