अग्निपथ के खिलाफ शांतिपथ अपनाएं अराजकता नहीं
भारतीय सेना में चार साल की भर्ती वाली अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं का देशभर में चल रहा विरोध 19 राज्यों में फैल गया है। देश में स्थान-स्थान पर रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बसों, व अन्य सरकारी वाहनों सहित सरकारी संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
भारतीय सेना में चार साल की भर्ती वाली अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं का देशभर में चल रहा विरोध 19 राज्यों में फैल गया है। देश में स्थान-स्थान पर रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बसों, व अन्य सरकारी वाहनों सहित सरकारी संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है। तोड़फोड और आगजनी की घटनाएं हो रही है। रेलवे ट्रैक और सड़के ब्लॉक की जा रही हैं जिससे आम जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है । केंद्र सरकार द्वारा 14 जून को अग्निपथ योजना की घोषणा किए जाने के बाद से हिंसक आंदोलन शुरू हो गए, जिनकी सबसे पहले शुरुआत बिहार से हुई। हैरानी की बात यह है कि अखबारों में तोड़फोड़, हिंसा और रोड ब्लॉक करने तथा आंदोलन संबंधित तो खबरें विस्तार से दी जा रही हैं, लेकिन इन खबरों में कहीं भी यह नहीं बताया जाता है कि इस आंदोलन का संचालन कौन संस्था या राजनीतिक दल कर रहा है। दिशाहीन युवा अपने आप तो एक साथ इतना बड़ा आंदोलन नहीं चला सकते। जरूर इसके पीछे ऐसी राजनीतिक पार्टियां होंगी, जिन्हें देश में शांति और खुशहाली पसंद नहीं है और जो देश को जलाकर अपनी दुकान चलाने की मंशा रखती हैं।
देश में पिछले कुछ वर्षों से बार-बार इस तरह की घटनाएं होती आ रही हैं जब केंद्र सरकार की कोई नई योजना लागू होते ही बड़े पैमाने पर बवाल और विरोध होने लगता है। हैरानी की बात यह है कि जब देश में बड़ी योजनाएं लागू की जाती हैं तो उनके बारे में पहले से प्रचार-प्रसार कर योजनाओं का प्रचार क्यों नहीं किया जाता है? नई योजनाओं पर जनता की राय क्यों नहीं ली जाती है? योजनाओं के बारे में पब्लिक को ठीक से समझाया या बताया क्यों नहीं जाता? अचानक से कोई योजना धोप देने का क्या तुक है? कम्युनिकेशन गैप की वजह से ही देश को बार-बार भारी नुकसान झेलना पड़ता है। कृषि कानून के समय में भी यही कमी सामने आई थी। जून 2020 में, आनन-फानन में कृषि कानूनों को मंजूरी दे दी गई थी, जबकि उस समय देश में लॉकडाउन के हालात थे और अखबारों का वितरण ठप सा हो गया था। अब सेना में शॉर्ट सर्विस की भर्ती के लिए यकायक अग्निपथ योजना की घोषणा कर दी गई।
जिस पैमाने पर अग्निपथ योजना का विरोध हो रहा है उससे तो यही लगता है कि जिनके लिए योजनाएं बनाई जाती हैं उनको पहले से सूचित क्यों नहीं किया जाता, उनकी राय पर शुरू में ही गौर क्यों नहीं किया जाता, या जब शुरुआती विरोध होता है तभी ऐसी योजनाओं पर पुनर्विचार क्यों नहीं किया जाता? इतनी तोड़फोड़ हिंसा और आम जनता को जो नुकसान और परेशानी होती है, सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है, उससे बचा जा सकता है यदि कम्युनिकेशन गैप न रखा जाए। साथ ही, युवाओं से भी उम्मीद की जाती है कि वह एक ओर तो सरकारी नौकरी चाहते हैं, एक जिम्मेदार सैनिक बनना चाहते हैं, सेना में भर्ती होना चाहते हैं, तो इतना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार न करें। शांति से भी तो अपना विरोध दर्ज कराया जा सकता है। हिंसा का सहारा क्यों लेते हैं? सरकारी संपत्ति यानी देश की संपत्ति को नुकसान क्यों पहुंचा रहे हैं?
हिंसक विरोध में शामिल युवाओं को एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि पुलिस के पास इस तरह के लोगों का रिकॉर्ड एकत्र होता रहता है। इस कारण से उपद्रवी युवाओं को भविष्य में सरकारी नौकरियां मिलने में बहुत असुविधा हो सकती है। पुलिस रिकॉर्ड में एक बार जिसका नाम दर्ज हो गया उसे भविष्य में सरकारी नौकरी तो मिलने से रही। युवाओं को अग्निपथ योजना पर विरोध करने का अधिकार है, लेकिन राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। देश के नागरिकों को असुविधा पहुंचाना भी एक जुर्म है। विरोध के नाम पर हिंसा हर्गिज नहीं होनी चाहिए। अराजकता को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
सोशल मीडिया पर कई डिजिटल कंपनियां आसान लोन देने के लुभावने विज्ञापन देती हैं। लोन लेने वालों के की प्रतिक्रियाओं से पता लगता है कि उन्हें लोन तो आसानी से मिल गया, लेकिन बाद में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ये कंपनियां बाद में मनमाने तरीके से ब्याज वसूलती हैं और पैसा वापस न मिलने पर कर्जदारों को तरह-तरह से परेशान करती हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्ति कांत दास इस बात को लेकर चिंता में हैं। उन्होंने कहा है कि बैंकिंग सेक्टर बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जल्दी ही डिजिटल लेंडिंग इकोसिस्टम को मजबूत बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की सोच रहा है। लोन देने वाली डिजिटल कंपनियों पर नियमों का शिकंजा कसा जाएगा, क्योंकि आम लोगों के हित में ऐसा करना जरूरी हो गया है। गूगल, अमेजन और फेसबुक (मेटा) जैसी टैक्नोलॉजी आधारित बड़ी कंपनियों के वित्तीय क्षेत्र में उतरने से आम उपभोक्ताओं के लिए खतरा और बढ़ जाएगा। इन कंपनियों के फाइनेंशियल कारोबार में आने से न सिर्फ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी बल्कि डेटा की प्राइवेसी को लेकर भी सवाल खड़े होंगे। इस तरह के जोखिमों का आकलना करना और उनसे निबटने के लिए व्यवस्था बनाना आवश्यक है।
दिल्ली से देहरादून के बीच एक्सप्रेस-वे का निर्माण तेजी से चल रहा है। इसके पूरा होने पर दिल्ली से देहरादून पहुंचने में ढाई घंटे ही लगेंगे, जबकि इस समय 6 से 7 घंटे तक लग जाते हैं। एक्सप्रेस वे 2024 तक तैयार करने का लक्ष्य है। इसके निर्माण में जल, जंगल और पहाड़ को छेड़े बिना राजाजी नेशनल पार्क से होते हुए 18 किलोमीटर लंबा एलिवेटेड रोड तैयार किया जा रहा है, जिसके लिए पिलर बनाने का काम चल रहा है। देश में पहली बार एक्सप्रेस में बनाते समय वन्यजीवों के आवागमन के लिए अंडर पास विकसित किए जा रहे हैं। इस मार्ग पर वाहनों की रफ्तार सीमा 100 किमी प्रति घंटा रहेगी। दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस वे राजाजी नेशनल पार्क से होते हुए गुजरेगा जहां गुलदार, बारहसिंघा, हिरण, हाथी, मगरमच्छ और नील गाय जैसे वन्यजीवों की अनेक प्रजातियां रहती हैं। दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस वे बन जाने के बाद पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू कश्मीर से दिल्ली व पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जाना सुलभ हो जाएगा।
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार एवं कॉलमिस्ट हैं)