इंसाफ का तराजू और राम रहीम

इंसाफ का तराजू और राम रहीम

-*कमलेश भारतीय 
पता नहीं क्यों इंसाफ का तराजू, दामिनी जैसी फिल्मे याद आ रही हैं, राम रहीम पर आये नये फैसले के बाद। हम कहते हैं कि फिल्में या ऐसी कहानियां तो झूठी हैं लेकिन ये सच्चाई की परछाई साबित हो रही हैं। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने बाइस साल पुराने एक केस में राम रहीम को संदेह का लाभ और सीबीआई की कमज़ोर जांच के आधार पर मैनेजर रणजीत सिंह हत्याकांड से बरी कर दिया है। इस फैसले के बाद अमिताभ बच्चन की दो फिल्में भी याद आती हैं -`शहंशाह' और `अंधा कानून'। सचमुच वह कल्पना ही थी कि अमिताभ बच्चन दिन में पुलिस इंस्पेक्टर और रात को शहंशाह बनकर इंसाफ करता था और ऐसी ही फिल्म थी -देवा जिसमें नायक सन्नी की अदालत पर लोगों को भरोसा था और लोग शिकायत लेकर देवा के पास जाते थे। पर ये सब फिल्मों की बातें हैं, फिल्मी पर्दे पर यह सब अच्छा लगता है और ग्लैमर का तड़का होता है। सच्चाई से कोसों दूर क्या? 
यह जो फैसला आया है, यह जीवन की सच्चाई है और रणजीत सिंह का बेटा जगसीर कह रहा है कि हम हार नहीं मानेंगे और सुप्रीम कोर्ट जायेंगे। इस हौंसले को सलाम।दरअसल रणजीत सिंह पर यह शक था कि उसी ने यौन शोषण की शिकार साध्वियों के खत बांटे थे और एक खत सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के हाथ भी लगा था, जिसे उन्होंने अपने समाचारपत्र 'पूरा सच' में प्रकाशित कर दिया, जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान पर खेलकर चुकानी पड़ी। इस तरह जहा़ं रणजीत सिंह का परिवार पीड़ित है, वहीं रामचंद्र छत्रपति का परिवार भी इस कांड को ज़िंदगी भर भूल नही सकेगा। रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने भी न्याय के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी लेकिन इस फैसले से दोनों परिवार चौंके जरूर होंगे और मेरी तरह कितनी ही फिल्में सच के करीब लगने लगी होंगीं। हालांकि इस फैसले के बावजूद राम रहीम के भाग्य में जेल से रिहाई नहीं, बस, प्रशासन के नियमानुसार पैरोल ही है क्योंकि जेल मंत्री के अनुसार इनका चाल चलन बहुत अच्छा है। बस, यही एक तसल्ली है दोनों परिवारों को।
राम रहीम को लगातार पैरोल‌ मिलना भी इन परिवारों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है और ऊपर से राजनीति में डेरे के फरमान, क्या कहिये। ये कैसी कड़ियां हैं? तभी तो अमिताभ बच्चन की फिल्म का गाना गूंजने लगता है कानों में और सोचने लगता हूं कि सचमुच क्या कानून अंधा होता है? इंसाफ की देवी कभी तो अपनी आँखों की पट्टी गांधारी की तरह हटा कर देखे कि कौरव क्या क्या कर रहे हैं और सोचे कि महाभारत क्यों हुआ था? 
अफसोस, इंसाफ की देवी कभी अपनी आंखों पर बंधी पट्टी नहीं हटायेगी जैसे  महाभारत की गांधारी ने नहीं हटाई थी।
कोर्ट के फैसले का सम्मान और ये दो परिवारों का ही नहीं, न जाने कितनी साध्वियों के यौन शोषण का सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है। ये सब फिर चर्चा में आ गये हैं।
दुख हुक्मरान को बहुत है
मगर बड़े आराम के साथ 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।