आया स्कूलों का भविष्यफल खंगालने का वक्त

आया स्कूलों का भविष्यफल खंगालने का वक्त

-*कमलेश भारतीय 
महेंद्रगढ़ के कनीना में प्राइवेट स्कूल की बस के सड़क हादसे में छह बच्चों की जान कुर्बान हो जाने के बाद न केवल प्रशासन बल्कि पूरी सरकार ही जाग गयी है । कुम्भकर्ण की नींद खुल गयी है और पता चला कि प्राइवेट स्कूल जीएल की बीस बसों में से ग्यारह बसों की फिटनेस का प्रमाण पत्र ही नहीं है । यहां तक कि सन् 2018 के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र की जरूरत ही नहीं समझी गयी और प्रशासन व सरकार कुम्भकर्णी नी़द सोये रहे । अब जागे छह मासूम बच्चों की कुर्बानी के बाद ! अब सारे हरियाणा में जिला प्रशासन प्राइवेट स्कूलों के बसों के रिकार्ड खंगालने में लगा है ! दस दिन के अंदर यह काम पूरा करने के निर्देश जारी किये गये हैं । देर आयद, दुरुस्त आयद ! 
अप्रैल का महीने हर वर्ष नयी कक्षायें शुरू होती हैं । अभी प्रशासन व सरकार का ध्यान बस हादसे के चलते सिर्फ बसों की हालत की ओर गया है । क्या प्राइवेट स्कूलों में बिकतीं किताबों, कापियों और यहां तक कि ड्रेस की ओर नहीं गया? कब जायेगा? जब फिर कोई गरीब अभिभावक प्राइवेट स्कूल की मनमानी के चलते कोई गलत कदम उठा लेगा ? ये प्राइवेट स्कूल अप्रैल के दिनों में तो जैसे पूरी तरह व्यावसायिक बन कर रह जाते हैं । दाखिले की मोटी फीस तो बसूलने के साथ साथ किताबें, कापियां तक बेचते हैं और मोटी कमाई करते हैं ! फिर घर से स्कूल लाने और वापस छोड़ने के नाम पर बसों के किराये भी कम कहा़ं होते हैं ! शिक्षा इतनी महंगी हो गयी कि आम आदमी के बस की बात ही नहीं रह गयी । इतना कुछ होने के बाद भी कोचिंग सेंटरों के खर्चे अलग से ! कोचिंग सेंटरों को भी फलते फूलते देखा जा रहा है । 
इन दिनों एक कार्टून आया । प्रिसिंपल बता रहे हैं सामने बैठे अभिभावक को कि स्कूल से किताबें, कापियां, ड्रेस और जूते जुराबें तक सब खरीदना है। अभिभावक पूछता है- और शिक्षा कहां से मिलेगी? 
प्रिसिंपल का जवाब- बाहर से ! 
यह काॅर्टून एक कड़वी सच्चाई है हमारी शिक्षा व्यवस्था की । सरकारी स्कूलों में बच्चे दाखिल नहीं करवाते क्योंकि स्टेट्स का सवाल है और जब बच्चों की संख्या नहीं और सरकार स्कूल बंद करती है तब शोर कि स्कूल बंद क्यों किये जा रहे हैं ? यदि सरकारी स्कूल चाहियें तो फिर प्राइवेट में बच्चों का एडमिशन क्यों ? मैंने सत्रह वर्ष बिताये शिक्षा क्षेत्र में और ग्यारह वर्ष खटकड़ कलां के गवर्नमेंट आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल में और इस स्कूल को जिला जालंधर के श्रेष्ठ स्कूल का इनाम मिला और मुझे प्राइवेट स्कूलों से आकर्षक ऑफर्ज‌ कि साल के इतना पैकेज देंगे, आइये और मेरा जवाब कि फिर इन ग्रामीण बच्चों को कौन पढ़ायेगा ? सरकारी स्कूलों के बहुत सारे अध्यापक आज भी खूब लगन से पढ़ाते हैं लेकिन अभिभावक ही भरोसा नहीं करते ! यह भी एक पहलू है। दुखांत है। 
अब बात आती है कि सरकार आंख क्यों मूंदे रही इतने सालों तक? कभी बड़े बड़े नेताओं की रैलियों में गौर किया है कि कितनी स्कूली बसें पार्टी कार्यकर्ताओं को ढोकर रेली में लाती हैं? फिर इनकी फिटनेस कौन पूछे? जब आप इस तरह के काम प्राइवेट स्कूलों से लेंगे तो कहीं न कहीं आंख भी मूंदनी पड़ेगी कि नहीं ? 
दुष्यंत कुमार कहते हैं :
इक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तो 
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है! 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।