समाचार विश्लेषण/ बड़े धोखे हैं इस राह में, उद्धव जी
-*कमलेश भारतीय
महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार का नाटक दिन प्रतिदिन एक नया मोड़ लेता जा रहा है । अभी तक सरकार न गिरी , न पलटी और, न ही गिराई गयी । बड़े सवाल पैदा करता है यह दृश्य कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग ? सरकार गिराना , शिवसेना को तोड़ना या फिर दलबदल को प्रोत्साहित करना ? सरकार तो अब तक गिर चुकी होती , जितने विधायकों के समर्थन का दावा किया जा रहा है और नया नेता भी बन चुका होता । फिर क्या गुप्त एजेंडा है ? शिवसेना को खत्म करना ? पहले कांग्रेस मुक्त भारत का नारा और अभ शिवसेना मुक्त महाराष्ट्र? दूसरी ओर शिवसेना के बागी विधायकों के लीडर एकनाथ शिंदे कह रहे हैं कि उन्हें एक महाशक्ति का साथ प्राप्त है । खुलकर भाजपा का नाम नहीं लेते । यह भी शायद योजना का एक हिस्सा है । अजीत पवार ने जरूर कहा है कि आप भाजपा के साथ हो , साफ क्यों नहीं कह देते ? विधायक गुवाहाटी बैठे हैं , उद्धव अपने घर मातोश्री और देवेंद्र फडणबीस अपने घर-सागर । सब जगह दृश्य बिल्कुल अलग अलग हैं । वैसे किसी ने सोशल मीडिया पर यह भी पोस्ट किया है कि कंगना रानौत हाथ में पाॅपकोर्न का पैकेट लेकर सोफे पर बैठी इस पूरे घटनाक्रम का मजा ले रही है और लोग उसका डाॅयलाग भी याद दिला रहे हैं -आज मेरा घर टूटा है , कल तेरा घमंड टूटेगा उद्धव ।
शरद पवार और काग्रेस अब भी उद्धव के साथ खड़े हैं । संजय राउत कह रहे हैं बागी विधायकों से कि एकबार लौट आइए , फिर जो कहोगे , वह मान लेंगे । इतना बेबस बना दिया उद्धव ठाकरे और संजय राउत को ? जो संजय राउत दूसरों को नाॅटी कहते थे और सामना में चुटीले बयान देते थे , आज खुद शांत हैं । कुछ सूझ नहीं रहा । हां , एक विधायक ने खुल कर कहा है कि हमारे लिए मुख्यमंत्री आवास के कपाट बंद थे और हमारी कोई सुनवाई नहीं थी । वर्षा है नाम मुख्यमंत्री आवास का । अब मातोश्री आ गये हैं उद्धव ठाकरे और कपाट खुले रखे हैं लेकिन कोई विधायक उधर झांकने भी नहीं आ रहा । सिर्फ तरह विधायक बचे हैं उद्धव के पास जो बैठक में आये । एकनाथ शिंदे की रट यह कि पहले उद्धव ठाकरे इस्तीफा दें और भाजपा के साथ सरकार बनाने को तैयार हो जायें , तभी बात हो पायेगी । इस तरह अघाड़ी सरकार बिल्कुल अंतिम सांसें ले रही है । यह सबक भी मिला कि यदि मुख्यमंत्री रहते सबके लिए कपाट खुले रखते तो विधायक बागी क्यों होते ? यह बात हर राज्य पर लागू है । यदि कल्पनाथ ने भी विधायकों की सुनी होती या संतुलन रखा होता तो मध्यप्रदेश की सरकार क्यों गिरती ? अभी दूसरे मुख्यमंत्रियों को इससे सबक लेना चाहिए कि सबकी सुनते रहें और मिलने का समय देते रहें नहीं तो सभी नाराज कब एकसाथ एकजुट होकर आपके मुख्यमंत्री पद को ही चुनौती दे दें ,,,;?
बाबू जी , धीरे चलना
बड़े धोखे हैं इस राह में ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।