घर में सुकून बहुत है, खुशी बाहर नहीं
-*कमलेश भारतीय
आदमी हिरण की तरह जंगल भर में दौड़ता है, खुशी के लिए, सुकून पाने के लिए लेकिन नहीं जानता कि खुशी उसके घर में ही है, जैसे कस्तूरी हिरण के ही अंदर होती है । यह बात अमेरिका के जनगणना ब्यूरो के नवीनतम टाइम यूज सर्वे में सामने आई है । हालांकि कोरोना काल ने भी यह बात सिद्ध की थी कि खुशी एकसाथ समय बिताने में ही है न कि इधर उधर वक्त बिताने में ! फिर भी कोरोना काल को हम भूलते जा रहे हैं । टाइम यूज स्टडी के मुताबिक पंद्रह से चौंतीस वर्ष के लोगों ने दिनभर घर में दो घंटे ज्यादा समय बिताना शुरू कर दिया है । न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के डाॅ निओबे का मानना है कि टेक्नोलॉजी के चलते घर से काम करना ज्यादा आसान हो गया है और कोरोना काल में ही यह प्रचलन शुरू हुआ था-वर्क फ्राम होम ! अब ट्रेंड इतना बदला है कि अमेरिका में छुट्टियां बिताना, शिक्षा, खान पान, एक्सरसाइज यहां तक कि धार्मिक गतिविधियां भी घर पर ही की जाने लगी हैं। इससे मेलजोल बढ़ा । दिलों की दूरियां कम हुईं । अब घर पर रहकर वे अपने सुख तलाश रहे हैं । इससे सांस्कृतिक बदलाव आया है और घर व्यक्तिगत सुकून का बसेरा बन गया है । तभी तो शायर निदा फ़ाज़ली कहते हैं कि
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाये
घर की बिखरी हुई चीज़ों को संवारा जाये !
तभी तो एक फिल्म का गाना भी है :
यह घर बहुत हसीन है !
यह घर बहुत हसीन है!
अपने घर को हम ही स्वर्ग या नर्क बनाते हैं । कभी एक पत्रिका में बहुत खूबसूरत बात पढ़ी थी कि जब हम प्रार्थना करते हैं तो घर मंदिर बन जाता है, कभी परिवार का कोई सदस्य बीमार होता है तो वही घर अस्पताल है जाता है। कभी घर में कोई सदस्य कोई उपलब्धि पाता है तो घर खुशी से झूम उठता है! घर के अनेक रूप हैं । यह घर सचमुच बहुत हसीन है और हम इस घर के बाहर क्लबों, किट्टियों और न जाने शराबखानों में खुशी खोजते फिरते हैं ! खुशी तो घर में ही है और हम घर से दूर इसे हिरण की तरह जंगल में तलाश रहे हैं ! बस, इतना ख्याल रहे कि समाज से जुड़े रहें, अकेले न हो जायें, यह सावधानी बहुत जरूरी है । हमें रिश्तों की उसी तरह देखभाल करनी चाहिए जैसे अपने शरीर की करते हैं।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।