राज्यसभा में बहुमत नहीं, फिर क्या होगा? 

राज्यसभा में बहुमत नहीं, फिर क्या होगा? 

-*कमलेश भारतीय
एक समाचार के अनुसार राज्यसभा में भाजपा को बहुमत नहीं रहा। अब इसे फिलहाल आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी व ओडिशा के नवीन पटनायक के दलों पर निर्भर रहना पडे़गा। जैसे लोकसभा में बहुमत के लिए चंद्र बाबू नायडू व नीतिश कुमार के दलों पर भाजपा आश्रित है। इस तरह की बेबसी सन् 2014 में भी राज्यसभा में थी भाजपा की । इसे दूर करने और बहुमत बनाने के लिए राज्यसभा चुनावों से पहले ही दलबदल की रणनीति बनानी शुरू कर दी और लोट्स ऑपरेशन भी शुरू हुए । यह सब पाला बदल का खेल राज्यसभा में बहुमत पाने के लिए खेला गया । अब फिर भाजपा का राज्यसभा में बहुमत खो देना खतरे की  घंटी से कम नहीं आंका जा सकता। फिर से राज्यों में दलबदल का खेल बड़े पैमाने पर शुरू हो सकता है। हाल ही में सबसे ताज़ा उदाहरण हिमाचल का रहा, जिसमें छह कांग्रेस विधायकों के भाजपा के साथ जाने से सुक्खू सरकार संकट में आ गयी थी लेकिन हिमाचल की जनता ने दलबदल का विरोध वोट की चोट से कर सुक्खू सरकार को जीवनदान दे दिया है। अभी हरियाणा की एक राज्यसभा सीट खाली होने जा रही है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा अब रोहतक लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर संसद में पहुंच चुके हैं । कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है जबकि जजपा बार-बार कांग्रेस को यह चुनाव लड़ने के लिए उकसा रही है। कांग्रेस जजपा का किसी भी तरह का सहयोग लेने के मूड में नहीं दिखती। इस तरह भाजपा यह सीट आसानी से जीतने की उम्मीद लगाये हुए है। यही कारण है कि कांग्रेस से भाजपा में आये कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी इस राज्यसभा सीट को पाने के लिए भाजपा हाईकमान के चक्कर काट रहे हैं। पहले कभी ऐसे ही कांग्रेस छोड़कर आये चौ बीरेंद्र सिंह को वाया राज्यसभा केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। अब किसके भाग्य में जायेगी यह राज्यसभा सीट, कह नहीं सकते। 
राज्यसभा में बहुमत पाने के लिए भाजपा कोई भी ऑपरेशन चलायेगी, यह तो तय है और उस ऑपरेशन के परिणाम अब भुगतने भी पड़ रहे हैं लेकिन दांव पेंच का नाम ही राजनीति है। फिर भी संविधान की हत्या जितनी बच सके, बचनी चाहिए। 
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।