पत्रकारिता में अब मिशनरी स्पिरिट नहीं रही: हरेश वाशिष्ठ
-कमलेश भारतीय
पत्रकारिता में अब मिशनरी स्पिरिट खत्म हो चुकी है और सरकार व पत्रकारिता के बीच लक्ष्मण रेखा भी काफी हद तक मिट चुकी है । यह कहना है दैनिक ट्रिब्यून के समाचार संपादक के तौर पर सेवानिवृत व मेरे सहयोगी हरेश वाशिष्ठ का । जो दैनिक ट्रिब्यून के कार्रयकाल में मुझे बड़ा भाई मानते सम्मान देते आ रहे हैं । मूल रूप से कैथल निवासी हरेश की ग्रेजुएशन आर के एस डी काॅलेज से हुई और एम ए अर्थशास्त्र कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से । इसके बाद एम ए हिंदी राजस्थान विश्वविद्यालय से और जनसंचार की डिग्री गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय , हिसार से । एम फिल पंजाब विश्विद्यालय , चंडीगढ़ से की । अभी भी पंजाबी यूनिवर्सिटी , पटियाला से लाॅ कर रहे हैं ।
-काॅलेज में रहते किन गतिविधियों में भाग लेते रहे ?
-काॅलेज में संस्कृत नाटक मृच्छकटिकम् में विदूषक की भूमिका निभाई । इसके अतिरिक्त खो खो टीम का सदस्य रहा जो विश्विद्यालय में द्वितीय रही ।
-पत्रकारिता में कब से और कहां से शुरू हुई ?
-राजस्थान के राष्ट्रदूत समाचारपत्र से । सन् 1981 से 1984 तक कोटा व जयपुर में । इसके बाद दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़ में सन् 1984 से सन् 2020 तक पूरे छत्तीस साल तक । सात साल इसका समाचार संपादक भी रहा ।
-पत्रकारिता में आदर्श कौन ?
-ट्रिब्यून के एडिटर इन चीफ रहे प्रेम भाटिया व दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राधेश्याम शर्मा ।
-कहां से कहां पहुंच गया पत्रकारिता का स्तर ?
-आमूल चूल परिवर्तन आया इन चार दशकों में । पत्रकारिता आक्रामक भी हुई लेकिन जो मिशन पत्रकारिता थी वह भावना न रही । सरकार और पत्रकारिता में लक्ष्मण रेखा लगभग खत्म हो गयी । आडवाणी ने आपातकाल के बाद सही कहा था कि झुकने के लिए कहा था , ये तो दंडवत् ही हो गये । अब सिर्फ छोटे समाचारपत्रों में ही रीढ़ की हड्डी दिखाई देती है ।
-कोई पुरस्कार?
-साहित्य सभा कैथल ने पत्रकारिता में आजीवन एचीवमेंट पुरस्कार दिया व अन्य संस्थाओं ने भी ।
हमारी शुभकामनाएं हरेश वाशिष्ठ को ।