ये गारंटियों पे गारंटियां
-*कमलेश भारतीय
ये चुनाव भी क्या शै हैं, जैसे गारंटियां ही गारंटियां दिये जा रहे हैं नेता ! एक से बढ़कर एक गारंटी ! पहले तो व्यावसायिक कंपनियां गारंटियां दिया करती थीं और कोई भी चीज़ खरीदने के बाद गारंटी संभाल कर रखते थे ताकि समय आने पर कंपनी को दिखाई जा सके ! अब पिछले दस वर्षों से राजनीति वाले भी गारंटियां देने लगे हैं और जनता इनसे कुछ पूछने के मूड में दिख रही है -पुरानी गारंटियां दिखा कर ! जैसे अच्छे दिन आने की गारंटी दी गयी थी, जैसे स्विटजरलैंड से काला धन लाकर सीधे हर किसी के खाते में पंद्रह पंद्रह लाख रुपये आने की गारंटी और दो करोड़ युवाओं को रोज़गार जैसी गारंटियां दी गयी थीं । अच्छे दिनों की बात तो चुनावी जुमला कहकर टाल दी गयी और युवाओं को रोजगार के नाम पर कितने युवाओं को रोजगार मिला, ये आंकड़े आये नहीं कभी। हां, महंगाई की कोई गारंटी नहीं थी, सो महंगाई खूब बढ़ी और रसोई गैस सिलेंडर एक हज़ार से ऊपर चला गया । किसानों को तीन कृषि कानूनों का विरोध एक साल से ऊपर तक करना पड़ा, तब कभी जाकर जान छूटी। अब एमएसपी के लिए फिर संघर्षरत हैं किसान और हरियाणा में तो भाजपा प्रत्याशियों को इसके बारे मे काले झ़डे दिखा कर सवालपूछे जा रहे हैं । इस गारंटी का क्या होगा और कौन पूरी करेगा?
क्या कांग्रेस यह गारंटी देगी कि यदि सत्ता में आई तो कोई डम्मी प्रधानमंत्री नहीं बनायेगी? क्या कांग्रेस यह गारंटी देगी कि इमरजेंसी जैसी कोई भूल फिर नहीं करेगी? क्या यह अग्नि वीर योजना रद्द करेगी और रसोई गैस व पेट्रोल की कीमतों पर काबू रखेगी ? ओल्ड पेंशन बहाल करेगी?
यह शहजाद या शाही परिवार पर हमले करने से जनता की समस्याओं का हल निकल आयेगा या सत्ता में आने पर कौन कौन सी गारंटी राहुल गांधी पूरी कर पायेंगे? उतनी ही गारंटियां दो, जितनी पूरी कर सको। बाद में चुनावी जुमले साबित न हों ये गारंटियां !
चुनाव में मारी एंटरियां
तो देने लगे गारंटियां!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी