समाचार विश्लेषण/ये सम्मान और ये रिश्वत कांड
कमाल हो गयी । भई ऐसा भी करिश्मा होता है कि इधर सम्मान हुआ हो और उधर रिश्वत कांड में नाम हो गया हो
-*कमलेश भारतीय
कमाल हो गयी । भई ऐसा भी करिश्मा होता है कि इधर सम्मान हुआ हो और उधर रिश्वत कांड में नाम हो गया हो । हद है न ? क्लाईमेक्स कमाल । ऐसा ही हुआ है हरियाणा के पानीपत में । गणतंत्र दिवस पर बागवानी अधिकारी का सम्मान हुआ । फोटो आई और नाम हुआ लेकिन दूसरे ही दिन ये साहब तीस हजार रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार हो गये रंगे हाथों । फोटो तो अब भी छपा लेकिन बदनाम हुए । क्या सम्मानित करने से पहले कोई जांच प्रक्रिया नहीं हुई ? क्या जांच प्रक्रिया की जरूरत नहीं समझी गयी ?
हरियाणा ही नहीं सभी राज्यों में प्रशासन के निकट रहने वाले लोग सम्मानित होने के लिए अपने रसूख का फायदा उठाते हैं । चाहे यूनिवर्सिटी के योग्य कर्मचारी हों या फिर सरकार के अधिकारी सभी रसूख के बल पर पुरस्कार/सम्मान ले उड़ते हैं । ये ही क्यों अब तो सर्वोच्च पुरस्कार/सम्मान भी विवादों के घेरे में आ गये हैं । कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण क्या मिला कांग्रेस में नये विवाद को जन्म दे गया । जयराम रमेश ने आलोचना की तो कर्ण सिंह ने तारीफ । इस तरह दो राय बन गयी है पार्टी में । यदि ज्योति बसु चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे लेकिन पार्टी का आदेश माना और मुख्यमंत्री ही बने रहे । इसी तरह बुद्धदेव भट्टाचार्य ने गणतंत्र दिवस पर सम्मान लेने से मना कर दिया पार्टी की मान मर्यादा के लिए और इसीलिए जयराम रमेश ने इनकी तुलना करते गुलाम नबी को गुलाम ही कह दिया ।
सच में पुरस्कार /सम्मान आलोचना के घेरे में आते रहे हैं । पिछले समय में अदनान सामी को पद्मश्री देना भी विवादास्पद बन गया था और इस बार स्वतंत्रता दिवस पर कंगना रानौत को दिये सम्मान के बाद भी विवादास्पद खुद बना लिया एक्ट्रेस ने । रजनीकांत को राजनीति में आने से रोकने के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी इसी रूप में देखा गया । अनुपम खेर को भी काफी आलोचना का सामना करना पड़ गया था जब फिल्म संस्थान में चेयरमैन लगाये गये थे । यह सिलसिला चलता रहता है और चलता रहेगा । हम कभी इन पुरस्कारों /सम्मानों को विवादों से दूर रख पायेंगे ? नहीं । शायद नहीं । पर कोशिश तो होनी चाहिए ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।