समाचार विश्लेषण/यह कहानी गुलाल और कीचड़ की नहीं !
-*कमलेश भारतीय
संसद चल रही है और मुद्दे उठाये जा रहे हैं । संसद यानी देश की सबसे बड़ी पंचायत और सबको निगाहें इसकी कार्यवाही पर ! अडाणी के मुद्दे पर खूब बहस हुई । होनी ही थी क्योंकि अडाणी और देश के शीर्ष नेता की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं । देखते देखते कुछ ही वर्षों में अडाणी ने 609वें पायदान से सिर्फ दूसरे पायदान तक छलांग लगा दी ।बहुत बड़ा सवाल । क्या और कौन सा काला जादू किया ? किसकी नजदीकियों के सहारे यह संभव हो पाया ? सवाल उठाया विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने , जिनकी छवि में भारत जोड़ो यात्रा के बार काफी सुधार हुआ । पप्पू की छवि तोड़कर बाहर आये और कहा कि मैंने कितने करोड़ रुपये बर्बाद कर दिये जो मेरी छवि खराब करने के लिए खर्च किये गये थे ।
अब जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना था यानी धन्यवाद प्रस्ताव ! इसमें जो पंक्तियां चुनी और कहीं , वे ये हैं :
कीचड़ उसके पास था
मेरे पास गुलाल
जो भी जिसके पास था
उसने दिया उछाल !
यानी यह कहानी कीचड़ और गुलाल की हो गयी । पर ऐसे कैसे कह सकते हैं ? यह कहानी तो फूल और पत्थर जैसी हो गयी । क्या विपक्ष को सवाल उठाने का अधिकार नहीं है ? क्या विपक्ष को सिर्फ यात्रा निकाल कर ही बात कहने का अधिकार रह गया ? यात्रा को भी कोरोना का रोना रोकर रोकने की कवायद की गयी । यात्रा को भी कश्मीर में सुरक्षा के नाम पर स्थगित करने की कोशिश हुई । आखिर विपक्ष आवाज न उठाये ? विपक्ष कहां उठाये अपनी आवाज ?सत्ता के मोह में विपक्ष को न सुनना यह कहां का और कैसा लोकतंत्र है ? यदि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी कांड का विरोध करने जाते हैं तो रोक दिया जाता है । यदि गोरखपुर अस्पताल गैस कांड के लिए विपक्ष निकला तो कहा गया कि इसे पिकनिक स्पाॅट न बनाइये । फिर विपक्ष क्या करे ? जैसे सुषमा स्वराज कहती थीं कि विपक्ष सिर्फ कीर्तन करने थोड़े आया है ! वही बात है विपक्ष कोई सन्यासी लोगों का जमावड़ा थोड़े है । विपक्ष भी सवाल उठायेगा और विपक्ष ही उठायेगा । यही लोकतंत्र की खूबसूरती है । विपक्ष के सवालों को न पत्थर समझिये और न ही कीचड़ ! यही भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी है जिसे देश विदेश सब जगह सराहा जाता है । स्वस्थ लोकतंत्र के लिये सबकी बात सुनना जरूरी है , महोदय !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।