अश्विनी जेतली की इस हफ़्ते की ग़ज़ल
वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी जेतली एक बेहतरीन शायर भी हैं
उस शजर के हर पत्ते की है सरसराहट छिन गयी
मेरे लबों से जिस तरह है मुस्कुराहट छिन गयी
आओ हवा से पूछ लें, कि क्यूँ भले चिराग को
दी ऐसी बददुआ कि उसकी, जगमगाहट छिन गयी
पश्चिमी माहौल का रंग ऐसा चढ़ा जनाब पर, कि
उन लबों की अब वो सारी थरथराहट छिन गयी
आँखों में आँखें डालने जब से लगी है बुलबुल
सय्याद के चेहरे की सब, तिलमिलाहट छिन गयी
दौर-ए-हिज्र में दिल का ये हाल हो चला है
छिड़ती थी उन्हें देखते जो, कंपकपाहट छिन गयी
इस पत्थरों के शहर में हूँ मैं भी पत्थर हो गया
मेरे बदन से आजकल है सनसनाहट छिन गयी
जब से हमारे चमन का माली ही ज़ालिम हो गया
पंछियों तक की भी तब से, चहचहाहट छिन गयी