ग़ज़ल / अश्विनी जेतली
शबनम के कतरे जितनी तुम उम्र लिखा कर आना मत
जाने की जल्दी मत करना, आकर झटपट जाना मत
ज़िद्द जल्दी जाने की तेरी, देखो जान न ले ले मेरी
शाम-ए-हयाती ढलने देना, उससे पहले तो जाना मत
आहें, आँसू, दर्द, कसक और यादें हैं अब साथी
दिल में शेष जगह नहीं है, ऐ खुशियो तुम आना मत
शाम-ओ-सहर दिल याद में तेरी, खोया-खोया रहता है
बहुत सताया है यादों ने, कह दो और सताना मत
मेरा भी दिल, दिल है आखिर, तोड़ न देना इस को
इसके टुकड़े-टुकड़े करके, अपना दिल बहलाना मत