अश्विनी जेतली की इस हफ़्ते की ग़ज़ल
अश्विनी जेतली पत्रकार होने के साथ साथ बेहतरीन शायर भी हैं
मन सिहर जाता है, ख़्याल दौड़ते हैं तब
बन बे-लगाम घोड़े, बद-हाल दौड़ते हैं जब
कहाँ रखूँ सनम मेरे, मैं तेरी याद की दौलत
चलो दिल में सलीके से, संभाल छोड़ते हैं अब
चुपचाप सहता जाऊं, सितम भी किस लिए
ज़ेहन में लपटें बन कर, सवाल दौड़ते हैं अब
भूख जिनको घर से, कभी दूर ले गयी थी
घरों की जानिब भूखे ही बे-हाल दौड़ते हैं अब
जिस रोज़ सोयी जनता, जागने लगेगी यारो
तुम देखना कि नेता, किस हाल दौड़ते हैं तब
बेलिहाज, बेमुरव्वत, बदगुमां-सा हो गया है
रिश्ता ही इस शहर से, चलो तोड़ते हैं अब