अश्विनी जेतली की क़लम से इस सप्ताह की `ग़ज़ल'
`सिटी एयर न्यूज़' के पाठकों के लिए विशेष
आर्ट वर्क- गरिमा धीमान।
अहसास को पहना के, शब्दों का लिबास
ख़ुद को समझने लगा था, कवि कालिदास
जब से देखा है तुम्हें बस ये ही सोचा करता हूँ
काश तिरे चेहरे से होते, मेरे भी नग़मात
डूबा जब उसके ख्यालों में, तो ये जाना मैंने
मूर्ख हूँ मैं, ज़र्रे से है कम मेरी औकात
आँख में, दिल में, ज़हन में बस रहा वो
चारों सू है जलवागर वो, क्या उसकी बात
भूख से हों बिलखते, बच्चे भला जिस शक़्स के
उसके लिए क्या दिवाली, क्या बैसाख
अक्लमंदी जब हुई नाकाम बंदे की, तो समझा
उसकी माया वो ही जाने, जो चलाता कायनात।