जो विष बीज बोये जीवन और राजनीति में वही फसल काट रहे हैं: स्वामी शैलेंद्र सरस्वती 

जो विष बीज बोये जीवन और राजनीति में वही फसल काट रहे हैं: स्वामी शैलेंद्र सरस्वती 
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती।

-कमलेश भारतीय 
हमने महत्त्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा , प्रतियोगिता और अशांति के जो बीज अपनी शिक्षा प्रणाली से बोये आज उसी की फसल हम चाहे जीवन हो या राजनीति या समाज में सभी जगह काट रहे हैं । उसी से हमारे सारे कष्ट हैं , नाराजगी है और उदासी है । जीवन और अध्यात्म में बड़ा मणि कांचन सहयोग है । यह कहना है ओशो के छोटे भाई स्वामी शैलेंद्र सरस्वती का , जो आज ओशो मेडिटेशन रिसोर्ट सेंटर में बातचीत कर रहे थे । इस अवसर मा प्रिया भी मौजूद थीं और सांची भी , संजय और ललित नारंग भी ।
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा कि कोरोना काल ने एक बात जरूर सिखाई कि जहां आम आदमी कष्ट में रहे लेकिन अध्यात्म में मग्न रहने वालों को एकांत वास मिला और ध्यान में डूबने का अवसर मिला । इसलिए ध्यान की कला सीखनी चाहिए । मौन में रहने की कला सीखनी चाहिए । जैसे विज्ञान सबके लिए है , वैसे ही अध्यात्म भी सबके लिए है । विज्ञान किसी की बस्ती नहीं । ऐसे ही अध्यात्म भी किसी की बपौती नहीं । अध्यात्म का अर्थ आत्मा का  ज्ञान । अपने भीतर  जाने का मार्ग है अध्यात्म । इस ज्ञान से सारी गतिविधियां शांत हो जायेंगी । 
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा कि जिस दिन प्रतियोगिता शुरू होती है , मेडल जीतने की होड़ शुरू होती है उसी दिन से दूसरे से आगे बढ़ने और नम्बर वन बनने का बिष बीज रोपा जाता है । यही जीवन में और यही राजनीति में देखने को मिल रहा है । योग और शक्ति हमें जीवन जीने की समझ देती हैं । चेतना से विवेक का विकास होता है । जीवन की समझ आती है । जहां शिक्षा प्रणाली विष बो रही है , वहीं अपने धर्म को दूसरे से बेहतर साबित करने की होड़ साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है । 
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा कि किसी जैसा नहीं । सबको अपने जैसा होना है । सब में कोई न कोई छिपी हुई प्रतिभा होती है । उसी प्रतिभा को खोजना है । बचपन से चालाकी और बेईमानी सिखाई जाई है फिर हमें एक बेहतर इंसान कैसे मिले ? जो बीज बोये हैं , उसी की फसल काट रहे हैं । यदि हम बीज सही बोयेंगे तो हम सुगंधित समाज पा सकेंगे । परिवार व  जीवन में प्रतिस्पर्धा नहीं रस और तृप्ति आनी चाहिए । यह परिवार के लिए भी महत्वपूर्ण है । 
बाद में सत्संग भी हुआ और संगीत रस की धारा भी बही ।