समाचार विश्लेषण/पंजाब में आतंकवाद की वापसी का खतरा मंडराया
-*कमलेश भारतीय
पंजाब में आठवे दशक में आतंकवाद सिर चढ़कर बोला था और आम आदमी का जीना दूभर हो गया था । अनेक लोग पंजाब छोड़कर अन्य राज्यों में बस गये थे । बहुत बड़ा पलायन हुआ था चुपके चुपके ! जैसे एक और बंटवारा झेलना पड़ा हो । व्यापार कारोबार तक नये सिरे से जमाने को मजबूर हुए । आतंकवाद के वे काले दिन याद करते ही सिहरन सी होने लगती है । अघोषित कर्फ्यू के दिन और रातें थीं । अखबार आतंकवादी गतिविधियों से भरे रहते थे । सन् 84 का स्वर्ण मंदिर में ब्लू स्टार ऑपरेशन अक्तूबर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से चरमसीमा पर पहुंच गया । तब पंजाब जैसे पूरी तरह उदास हो गया था । तभी तो सुरजीत पात्तर ने लिखा था:
खूब ने एह झांजरां छनकन लई
पर कोई चा बी तां दे नचन लई !
सचमुच सारे चाव खत्म हो गये थे । राजीव गांधी ने लौंगोवाल समझौता कर हालात सुधारने की कोशिश की । तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को शहादत देकर आतंकवादियों से निपटने की कीमत चुकानी पड़ी । मुश्किल से पंजाब में शांति , सूकून और खुशी की चिड़िया चहचहाने लगी ।
लेकिन अब एक बार फिर आतंकवाद का खतरा मंडराने लगा है । अजनाला थाने पर हमला कर पुलिस को लाचार बना देना बहुत बड़ा संकेत रहा । अब तेइस दिन बाद जाकर कार्रवाई के मोड में आ पाई पुलिस । फिर भी इनका प्रमुख अमृतपाल पकड़ में नहीं आया । बेशक इसके 78 समर्थन गिरफ्तार कर लिये गये हैं । इंटर्नेट सेवा ठप्प कर दी गयी है और तीन जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है । कौन कह सकता था कि ऐसे दिन पंजाब को फिर देखने पड़ेंगे ? कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन ये काले साये एक बार फिर पंजाब ऑर वैसे ही मंडरा रहे हैं जैसे चीलें आकाश में मंडरा कर अनहोनी का संकेत देती हैं । इसे समय रहते केंद्र सरकार को नियंत्रित करने की जरूरत है । इससे पहले कि यह अलगाववादी विचार फिर से फैले , इसे शुरू में ही दबाना पड़ेगा !
देर न हो जाये
कहीं देर न हो जाये !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।