कमलेश भारतीय की तीन लघुकथाएं
(1)
पुष्प की पीड़ा
पुष्प की अभिलाषा शीर्षक से लिखी कविता से आप भी चिरपरिचित हैं न ? आपने भी मेरी तरह यह कविता पढ़ी या सुनी जरूर होगी । कई बार स्वतंत्रता दिवस समारोह में किसी बच्चे को पुरस्कार लेते देख तालियां भी बजाई होंगी । मन में आया कि एक बार दादा चतुर्वेदी के ज़माने और आज के ज़माने के फूल में शायद कोई भारी तब्दीली आ गयी हो । स्वतंत्रता के बाद के फूल की इच्छा उसी से कयों न जानी जाए ? उसी के मुख से ।
फूल बाजार गया खासतौर पर ।
-कहो भाई , क्या हाल है ?
- देख नहीं रहे , माला बनाने के लिए मुझे सुई की चुभन सहनी पड़ रही है ।
- अगर ज्यादा दुख न हो रहा हो तो बताओगे कि तुम्हारे चाहने वाले कब कब बाजार में आते हैं ?
- धार्मिक आयोजनों व ब्याह शादियों में ।
- पर तुम्हारे विचार में तो देवाशीष पर चढ़ना या प्रेमी माला में गुंथना कोई खुशी की बात नहीं ।
-बिल्कुल सही कहते हो । मेरी इच्छा तो आज भी नहीं पर मुझे वह पथ भी तो दिखाई नहीं देता , जिस पर बिछ कर मैं सौभाग्यशाली महसूस कर सकूं ।
- कयों ? आज भी तो नगर में एक बड़े नेता आ रहे हैं ।
- फिर क्या करूं ?
- कयों ? नेता जी का स्वागत् नहीं करोगे ?
- आपके इस सवाल की चुभन मुझे सुई से भी ज्यादा चुभ रही है । माला में बिंध कर वहीं जाना है । मैं जाना नहीं चाहता पर मेरी सुनता कौन है ?
(2)
परदेसी पांखी
-ऐ भाई साहब, जरा हमार चिट्ठिया लिख देवें ,,,
-हां , लाओ , कहो , क्या लिखूं ?
-लिखें कि अबकि दीवाली पे भी घर नाहिं आ पाएंगे ।
-हूं । आगे बोलो ।
-आगे लिखें कि हमार तबीयत कछु ठीक नाहिं रहत । इहां का पौन पानी सूट नाहिं किया ।
-बाबू साहब । इसे काट देवें ।
-कयों ?
-जोरू पढ़ि के उदास होइ जावेगी।
- और क्या लिखूं ?
- दीवाली त्यौहार की बाबत रुपिया पैसे का बंदोबस्त करि मनीआर्डर भेज दिया है । बच्चों को मिठाई पटाखे ले देना और साड़ी पुरानी से ही काम चलाना । नयी साड़ी के लिए जुगत करि रह्या हूं ।
-हूं ।
-काम धंधा मिल जाता है । थोडा बहुत लोगन से पहिचान बढ गयी है । बड़के को इदर ई बुला लूंगा । दोनों काम पे लग गये तो तुम सबको ले आऊंगा । दूसरों के खेतों में मजूरी से बेपत होने का डर रहता है । अखबार सुनि के भय उपजता है । इहां चार घरों का चौका बर्तन नजरों के सामने तो होगा । नाहिं लिखना बाबूजी । अच्छा नाहिं लगत है ।
-कयों ?
-जोरू ने क्या सुख भोगा ?
- और तुमने ?
- ऐसे ई कट जाएगी जिंदगानी हमार । लिख दें सब राजी खुशी । थोड़ा लिखा बहुत समझना । सबको राम राम । सबका अपना मटरू। पढने वाले को सलाम बोलना ।
(3)
गुनाहगार
कमलेश भारतीय
रात देर से आए थे , इसलिए सुबह नींद भी देर से खुली । तभी ध्यान आया कि कामवाली नहीं आई । शुक्र है उसने अपना फोन नम्बर दे रखा है । फोन लगाया ।
उसका पति बोला कि रीटा बीमार है । काम पर आ नहीं सकती ।
पता नहीं कैसे पारा चढ़ गया- कयों नहीं आ सकती ? सारा घर बिखरा पड़ा है । कपड़े धुलवाने हैं । हम क्या करें ?
कामवाली का पति बोला - कहा न साहब कि बीमार है । आ नहीं सकती । दवा लेकर लेटी हुई है । बात भी नहीं कर सकती ।
- हम तीन दिन बाद आए । पहले ही छुट्टियां दे दीं । अब काम वाले दिनों में भी छुट्टी करेगी तो कैसे चलेगा ?
- क्या उसे बीमार होने का हक भी नहीं , साहब ? बीमारी क्या छुट्टियों का हिसाब लगा कर आयेगी ?
- हम कुछ नहीं जानते । कोई इंतजाम करो ।
- ठीक है, साहब । मेरे बच्चे काम करने आ जाते हैं ।
कुछ समय बाद स्कूल यूनिफाॅर्म में दो छोटे बच्चे आ गये । फटाफट क्रिकेट की तरह काम करने लगे । छोटी बच्ची ने बर्तन मांजे । बड़े भाई ने झाड़ू लगाया । काम खत्म कर पूछा- अब जायें , साहब ?
मैंने पूछा - पहले भी कहीं काम करने गये हो ?
बच्चों ने सहम कर कहा- नहीं , साहब । मां ने दर्द से कराहते कहा था- जाओ , काम कर आओ । नहीं तो ये घर छूट जायेगा ।
मैं शर्मिंदा हो गया । कितनी बार बाल श्रमिकों पर रिपोर्ट्स लिखीं । आज कितना बड़ा गुनाह करा डाला । मैंने ही अपनी आंखों के सामने बाल श्रमिकों को जन्म दिया ? इससे बड़ा गुनाह क्या हो सकता है ? अपनी आत्मा पर इसका बोझ कब तक उठाऊंगा ? गुनाह तो बहुत बड़ा है ।
-कमलेश भारतीय