कांग्रेस के लिए फिर मंथन की बेला
-*कमलेश भारतीय
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम से एक बार फिर यह बात सामने आई कि कांग्रेस के लिए मंथन की बेला आ गयी है । महाराष्ट्र में महाअघाड़ी संगठन को जो हश्र सामने आया है, वह चौंकाने वाला है। जब भाजपा भी 165 से आगे नहीं सोच पा रही थी तब दो सौ पार तो मंथन के लिए जरूरी है कि नहीं ? लोगों ने एनसीपी के शरद पवार की भावुक अपील भी नहीं सुनी कि इस उम्र के हिसाब से यह आखिरी चुनाव हो सकता है लेकिन भतीजे अजित पवार का वोट प्रतिशत ही बढ़ा न ही शरद पवारा की बात का कोई असर देखने को मिला । पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का हिंदुत्व का नारा भी कोई चमत्कार नहीं दिखा पाया । महाअघाड़ी गठबंधन बुरी तरह उखड़ गया चुनाव में । कांग्रेस को भी सोलह सीटें ही मिल पाईं । महाराष्ट्र जैसा बड़ा राज्य हाथ से निकल गया । अभी हरियाणा की हार पचाना मुश्किल था और कोई मंथन नहीं किया, ऊपर से महाराष्ट्र भी हाथ से निकल गया ! सिर्फ झारखंड ने कुछ राहत दी, जहां सरकार बना पायेंगे सोरेन । सोरेन पर केस चला कर सरकार गिराई थी लेकिन लोगों ने लौटा दी । यह बड़ी बात है, बड़ा विश्वास है !
अब महाराष्ट्र मे तीन तीन नेता मुख्यमंत्री पद पर दावा जता रहे हैं -एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे और फडणवीस उपमुख्यमंत्री लेकिन जैसे जैसे भाजपा की सीटें बढ़ती गयीं वैसे वैसे भाजपा नेताओं के बयान आने लगे कि देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री होंगे जबकि सुचित्रा पवार ने कहा कि अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने कहा कि तीनों दल बैठकर मुख्यमंत्री पद का चयन करेंगीं न कि इस तरह घोषणा होगी ।
कांग्रेस ने अभी तक हरियाणा की हार का विश्लेषण नहीं किया क्योंकि महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में व्यस्त हो गये । अब तो सब तरफ से फुरसत मिल गयी, कुछ तो सोचो कि ऐसा क्यों हो रहा है और जब तक चिंतन ही नहीं करोगे तब तक ऐसे ही परिणाम के लिए तैयार रहना होगा । उत्तर प्रदेश में उपचुनाव न लड़ने के फैसले को आत्मघाती कदम ही कहा जायेगा। अब तो कांग्रेस खुद को ही खत्म करने की ओर बढ़ रही लगती है । पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी की पकड़ बरकरार है । चुनाव परिणाम से कौन क्या सबक लेता है, यह देखना है । अहमद फराज कह गये हैं:
ये अलग बात मुक़द्दर नहीं बदला अपना
एक ही दर पे रहे दर नहीं बदला अपना!
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।