समाचार विश्लेषण/तीरन पे तीरन नहीं ट्वीट पे चले ट्वीट
-*कमलेश भारतीय
महाभारत के युद्ध में तीरन पे तीरन चले थे लेकिन राज्यसभा चुनाव के बाद ट्वीट पे चले ट्वीट । यह नया जमाना है -डिजीटल युग और इसमें ट्वीट को तीर ही समझिए । राज्यसभा की हरियाणा की दूसरी सीट का रोमांचक खेल समाप्त हुआ और कुलदीप बिश्नोई की अंतरात्मा की आवाज और दूसरे कांग्रेस की एक रद्द हुई एक वोट ने जीती हुई बाजी पलट दी । कांग्रेस के अजय माकन हार गये और कुलदीप बिश्नोई को जो कह सकते थे कह दिया । कुलदीप बिश्नोई, भव्य बिश्नोई और यहां तक कि रेणुका बिश्नोई तैयार बैठे थे अपने अपने ट्वीट लेकर -अपने अपने तीर लेकर । इस तरह सारा दिन माहौल काफी रोचक बना रहा । पुराने कांग्रेसी और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर का दर्द भी जागा और एक ट्वीट यानी तीर वे भी चलाने से नहीं चूके । यानी हर कोई इस मूड में था कि मत चूकेयो चौहान , बस , तीरन पे तीरन चले और माहौल काफी मजेदार बना रहा । ऐसे में कांग्रेस हाईकमान भी ट्वीट कर बता गयी कि कुलदीप बिश्नोई को न केवल निलम्बित कर दिया गया है बल्कि सभी पदों से भी हटा दिया गया है । वैसे जब कुलदीप बिश्नोई मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिल रहे थे तब हाईकमान क्यों न जागी ? जब कुलदीप बिश्नोई नितिन गडकरी की पुरानी फोटो पोस्ट कर रहे थे , तब हाईकमान क्यों न जागी ? जब कुलदीप बिश्नोई उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष बनाये जाने से नाराज थे तब राहुल गांधी ने एक मुलाकात का समय क्यों नहीं निकाला ? राहुल की ड्रीम टीम अब शायद नहीं रही । नयी ड्रीम टीम बनाने की जरूरत है । राजीव शुक्ला ने जब कुलदीप बिश्नोई द्वारा क्राॅस वोटिंग करने की रिपोर्ट दी तब कुलदीप बिश्नोई से दूरी बना ली । कुलदीप बिश्नोई कह रहे हैं कि मेरी राहुल गांधी से मिलने की कोई मीटिंग फिक्स नहीं हुई थी ,फिर रद्द कैसे हुई ? अब मुलाकात नहीं , बदलाव का समय है यानी साफ साफ ऐलान कर दिया कि अब मुलाकात जरूरी नहीं रही । अब मेरा रास्ता बदल चुका है और कुछेक दिनों में पार्टी भी बदल जायेगी । कुलदीप बिश्नोई अब फिल्म भाजपा में भविष्य तलाशने जा रहे हैं । न केवल अपना बल्कि बेटे भव्य बिश्नोई और पत्नी रेणुका बिश्नोई का भी भविष्य । जैसे विनोद शर्मा ने अपने और अपने बेटे कार्तिकेय का भविष्य संवार लिया राज्यसभा चुनाव जीत कर । कभी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खासमखास अब दूरियां बढ़ती जा रही हैं ।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का फ्री हैंड के बाद पहला दांव असफल रहा । लोग कांटे की बात भी करते हैं यानी ट्वीट्स के बीच कांटे का जिक्र आम लोगों में चल रहा है । किसने किसका कांटा निकाल दिया और कांग्रेस क्या कांटों वाली कैक्टस है जो इसमें कांटे ही कांटे लगे हैं और सभी निकालने में लगे हैं । यह कांटे निकालने का खेल भी चल रहा है बहुत पहले से । पर कुलदीप बिश्नोई के अलावा दूसरा कौन जिसका वोट रद्द हुआ ? विवेक बंसल भी बता नहीं रहे और कह रहे हैं कि जब कत्ल हो चुका था तो मैं जिंदा कैसे कर सकता था ? अब दूसरे रद्द वोट पर बहस में पूर्व मंत्री सुभाष बतरा और कृष्णमूर्ति हुड्डा भी सवाल उठा रहे हैं । सवाल तो उठेगा ही आखिर जीती सीट हारी कैसे और क्यों और गुटबाजी , कांटे निकालने का खेल कब तक चलता रहेगा ? कांग्रेस हाईकमान समय रहते एक्शन लेती तो कुलदीप ऐसा न कर पाते । न पुचकारा और न डांटा फिर क्या उम्मीद की कि हृदय परिवर्तन हो जायेगा अपनेआप ? तीरन पे तीरन चले और सबने मन की कह ली और कर भी ली । अब आगे सोचिये कि क्या करना है ? राजस्थान में अशोक गहलोत ने तो जादू दिखा दिया तीनों सीटें जीतकर और स्याही कांड वाले मीडिया मुगल भी मुंह की खाकर लौट आये । हरियाणा से भागे राजस्थान लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया , वहां तो कोई करिश्माई पैन वाला न मिला । अगर अपने ही हराने पर आमादा हों तो कोई क्या कर सकता है ?
मुझे इसका जवाब भी बहुत शानदार मिला -अपने ही हराने पर आमादा हों तो फिर भी जीत कर निकले , वही नेता होता है । अब यह जवाब प्रसिद्ध पत्रकार और मेरे मित्र उर्मिलेश का है फेसबुक पर । फिर भी कोई कमी तो नहीं छोड़ी। यह खेल है जहां जीत भी है तो हार भी है । इसलिए खेल में अपना प्रदर्शन करो और क्रिकेट वालों की तरह कहो कि आज हमारा दिन नहीं था । फिर हुड्डा तो खुद खिलाड़ी ठहरे -जीत हार को सहना सीख रखा है । क्या जीत क्या हार ,,ये जीवन के उपहार ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।