जीवन में असली खुशी दूसरों की खुशी के लिए प्रयास करने में निहित हैः डॉ. डी. सुरेश
अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा को प्रोत्साहन देने में एमडीयू के प्रयास को सराहा।
रोहतक, गिरीश सैनी। संवेदी समाज के निर्माण में युवा वर्ग, विशेष कर विद्यार्थियों की विशेष भूमिका है। समाज में निशक्तजन तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से समाज के हाशिए पर रह रहे वर्गों के प्रति संवेदनशीलता का आह्वान आज हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव डॉ. डी. सुरेश ने एमडीयू में “बिल्डिंग एन इनक्लूसिव एंड रेजिलिएंट सोसायटीः द रोल ऑफ साइन लैंग्वेज” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में किया।
एमडीयू के सेंटर फॉर डिसेबिलिटी स्टडीज (सीडीएस) तथा चौधरी रणबीर सिंह इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज (सीआरएसआई) द्वारा आयोजित इस राष्ट्र संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि डॉ. डी. सुरेश ने अपने संबोधन में कहा कि जीवन में असली खुशी दूसरों की खुशी के लिए प्रयास करने में निहित है। उनका कहना था कि आज के समय की जरूरत है कि सामाजिक रूप से संवेदनशील समाज की स्थापना हो। उन्होंने कहा कि मदवि ने सेंटर फॉर डिसेबिलिटी स्टडीज की स्थापना कर एक अनुकरणीय पहल की है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा को प्रोत्साहन देने में मदवि सराहनीय प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि पूरे हरियाणा प्रांत में सांकेतिक भाषा को प्रोत्साहन देने तथा समावेशी समाज के निर्माण के लिए उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा जरूरी कदम उठाने का प्रयास किया जाएगा।
इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित भारतीय पुनर्वास परिषद (आरसीआई) की अध्यक्षा डॉ. शरणजीत कौर ने कहा कि प्रत्येक पाठ्यक्रम में ‘इनक्लूसिविटी तथा डिसएबिलिटी’ संबंधित पाठ्य सामग्री को शामिल किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि निशक्तजन के सशक्तिकरण के लिए समावेशी समाज की जरूरत है। उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर पर ‘क्लिनिकल साइकोलॉजी’ प्रारंभ किए जाने पर विशेष बल दिया।
कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विवि प्रशासन ‘इनक्लूसिव एजुकेशन’ को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। साथ ही एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) के प्रावधानों के तहत समावेशी शिक्षा को समग्रता से लागू करने के लिए प्रयास करेगा। राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि (इग्नू), नई दिल्ली की प्रो. हेमलता ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि डिसेबिलिटी स्टडीज को इंटर डिसीप्लिनरी अप्रोच से बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही शिक्षण संस्थानों में निशक्तजन के प्रति संवेदनशीलता की संस्कृति विकसित करने की जरूरत है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सेंटर फॉर डिसेबिलिटी स्टडीज की इंचार्ज डॉ. प्रतिमा देवी ने स्वागत भाषण दिया। सीडीएस के मुख्य परामर्शदाता प्रो. राधेश्याम ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के थीम बारे प्रकाश डाला। आभार प्रदर्शन निदेशक आईएचटीएम प्रो. आशीष दहिया ने किया। उद्घाटन सत्र में मंच संचालन मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. शालिनी सिंह ने किया। मुख्य अतिथि ने उद्घाटन सत्र में सीडीएस द्वारा आयोजित स्लोगन राइटिंग तथा पोस्टर मेकिंग इवेंट्स के विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किया।
मुख्य अतिथि डॉ. डी. सुरेश ने संगोष्ठी उपरांत एमडीयू द्वारा प्रारंभ किए गए फूड ट्रक स्टार्टअप डैफटेरिया का अवलोकन किया। उन्होंने इस नवोन्मेषी उद्यमी प्रयास को सराहा।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में तकनीकी सत्रों में प्रतिभागियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. ए.एस. मान, रजिस्ट्रार प्रो. गुलशन तनेजा, डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. रणदीप राणा, डीन आर एंड डी प्रो. अरुण नंदा, संकाय डीन, विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, आमंत्रित विशेषज्ञ समेत विद्यार्थी कार्यक्रम में शामिल हुए।