समाचार विश्लेषण/केंद्र और राज्य में टकराव
-कमलेश भारतीय
केंद्र और राज्य में टकराव कोई नयी बात नहीं । यह टकराव अब पश्चिमी बंगाल व केंद्र के बीच साफ साफ दिख रहा है । ज्यादा तेज़ हुआ जब इस राज्य के मुख्य सचिव की सेवायें केंद्र ने अपने अधीन करने का आदेश दिया लेकिन मुख्य सचिव को रिटायरमेंट देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना मुख्य सलाहकार बना लिया । इस तरह केंद्र सरकार ताकती ही रह गयी । लगातार दांव पेंच के बीच एक आईएएस की बलि कब चढ़ गयी , शायद राजनेताओं को पता भी नहीं चला होगा और कितने उन युवाओं पर क्या बीती होगी जो आईएएस बन कर देश की सेवा करने का सपना संजोये हुए हैं । यह कैसा उदाहरण केंद्र व राज्य ने प्रस्तुत किया? आईएएस को तो अपमान ही झेलने पर विवश होना पड़ा । यह अलग बात है कि अब मुख्य सचिव नहीं , मुख्य सलाहकार हो गये ।
ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के नाम लेकर, कहा कि ये तो हिटलर और स्टालिन जैसे व्यवहार कर रहे हैं । यह किसी भी प्रधानमंत्री के लिए उचित नहीं। पिछले पांच साल केंद्र व पश्चिमी बंगाल की सरकार के टकराव में ही निकल गये ।फिर सबका साथ और सबका विकास इस राज्य में पहुंच ही नहीं पाया क्योंकि रास्ते में काफी रुकावटें आती गयीं । प्रधानमंत्री यह साबित करने में लगे रहे कि ममता बनर्जी पश्चिमी बंगाल राज्य का भला नहीं चाहतीं , इसलिए केंद्र के साथ बैठकों में भाग नहीं लेतीं और ममता बनर्जी ने सारी एनर्जी इस बात पर लगा दी कि प्रधानमंत्री हमारे राज्य के साथ भेदभाव करते हैं । फिर मैं इनकी बैठकों में अपमानित होने क्यों जाऊं? हां , यदि वे हमारे राज्य का भला करने वाले हों तो मैं उनके पांव छूने को भी तैयार हूं। इस शब्दजाल से नेताओं का मान अपमान तो चलता रहेगा लेकिन राज्य की जनता तो विकास को तरसती ही रह जायेगी न ? पांच साल और विकास में पश्चिमी बंगाल तरसता रहेगा और पिछड़ता जायेगा कि नहीं ? इस तरह के टकराव से न केवल केंद्र बल्कि राज्य सरकार को भी हरसंभव बचना चाहिए जिससे लोकतंत्र की मान मर्यादा की रक्षा भी हो सके ।
पंजाब सरकार ने भी एक बार कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार के समय सारे नदी जल समझौते रद्द करने का बड़ा फैसला सुना दिया था और केंद्र व राज्य का टकराव सामने आया था और दोनों के अधिकारों की बात भी उठी थी । हालांकि राजीव गांधी ने ही संत लौंगोवाल के साथ समझौता कर पंजाब में शांति लाने और आतंकवाद को समाप्त करने की राह खोली थी । उन फैसलों का क्या हुआ ? कोई नहीं जानता लेकिन हरियाणा को सतलुज यमुना का पानी नहीं मिला। हालांकि कोर्ट में जीत हुई थी और उस समय के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने जश्न मनाया था ।
राज्य सरकारों के गिराने का सिलसिला भी इसी टकराव से शुरू होता है । पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल पर भी भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप तृणमूल कांग्रेस के नेता लगा रहे हैं और भेड़युक्त प्रदर्शन भी इसी का एक प्रमाण कहां जा सकता है । राज्यपालों की भूमिका पर भी सवाल उठने शुरू हो जाते हैं केंद्र और राज्य के टकराव के बीच । अब राज्यपाल तो केंद्र और राष्ट्रपति द्वारा आते हैं तो वे कैसे कोई आदेश मानने से पीछे हट सकते हैं ? राजस्थान में भी पिछले वर्ष राज्यपाल के प्रांगण में कांग्रेस विधायकों को प्रदर्शन करना पड़ा था । अब प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जैसा विशाल हृदय कहां से लाये कोई कि पहली सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डाॅ अम्बेडकर को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया । अब तक हालत यह है कि विपक्ष फूटी आंखों नहीं सुहाता । यदि लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सम्मान करना हो तो विपक्ष को भी सम्मान देना होगा ।