केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान की दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न
रोहतक, गिरीश सैनी । मुंबई स्थित केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (सीआईएफई) द्वारा राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी) के तत्वावधान में विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजना क्षयग्रस्त मिट्टी के लिए ऊर्जा कुशल और पर्यावरण सुरक्षात्मक एक्वाकल्चर प्रौद्योगिकियों का विकास 2018 से कार्यान्वित कर रहा है। संस्थान द्वारा रोहतक में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला शुक्रवार को सम्पन्न हुई।
प्रधान अन्वेषक एवं आईसीएआर-सीआईएफई के संयुक्त निदेशक डॉ. एन.पी. साहू ने बताया कि परियोजना का उद्देश्य अंतर्देशीय लवणीय जलीय कृषि के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों और उत्पादों को विकसित करना है। परियोजना 2023 के अंत में पूरी होने वाली है। कार्यशाला में डॉ. एन.पी. साहू ने परियोजना के तहत विकसित विभिन्न तकनीकों और उत्पादों जैसे कॉमन कार्प की उन्नत किस्म, बायोफ्लॉक, बायोचार, मोबाइल ऐप एम झींगा आदि को सूचीबद्ध किया। डॉ. रविशंकर सी.एन., निदेशक एवं कुलपति, आईसीएआर-सीआईएफई, मुंबई ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि परियोजना में विकसित कई प्रौद्योगिकियों का प्रसार किया गया है, जिससे किसानों को लाभ हुआ है।
इस दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (शिक्षा) और राष्ट्रीय निदेशक, एनएएचईपी डॉ. आर. सी. अग्रवाल, उप महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान) डॉ. जे. के. जेना, राष्ट्रीय समन्वयक (उन्नत कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र; सीएएएसटी), डॉ. अनुराधा अग्रवाल ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने की सराहना की। कार्यशाला में वैज्ञानिक, विभिन्न राज्य मत्स्य विभाग (हरियाणा, पंजाब और राजस्थान) के अधिकारी, छात्र एवं उद्योगों के प्रतिनिधि, उद्यमी और कई प्रगतिशील किसान सम्मिलित हुए। इसमें हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में मत्स्य एवं झींगा किसानों ने भाग लिया तथा अपने विचार व सुझाव प्रस्तुत किए।