समाचार विश्लेषण/महाराष्ट्र से उद्धव का इस्तीफा 

राजनीति और विश्वासघात 

समाचार विश्लेषण/महाराष्ट्र से उद्धव का इस्तीफा 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
कल रात मैं चैन की नींद सोया क्योंकि सोने से पहले महाराष्ट्र सरकार का पतन हो गया । मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के फौरन बाद लाइव आकर कुछ संबोधन और कुछ आभार व्यक्त करने के बाद अपना इस्तीफा ही नहीं दिया बल्कि विधान परिषद से भी इस्तीफा दे दिया । इस तरह उनका इतने दिनों का तनाव खत्म हुआ और वे भी चैन की नींद सोये और मैं भी चैन की नींद सोया । अब कोई संकट नहीं रहा । हां । इस्तीफा देने से पहले हिंदुत्व का परिचय दे गये दो नगरों के नाम बदल कर । मैं सोचने लगा कि यह राजनीति असल में विश्वासघात का ही दूसरा नाम है । जो उद्धव ठाकरे अपील कर रहे थे की एकनाथ शिंदे आओ सामने बैठ कर बात करो 
और आपको ही मुख्यमंत्री बना देगे , वह एकनाथ शिंदे एक विश्वासघाती डिप्टी सीएम बनने को राजी है । शिवसैनिक ही शिवसेना को गर्त में मिलाने को तुला है तो फिर शिवसेना को कौन बचायेगा ? दूसरी बात कि अब जाकर उद्धव ठाकरे ने माना कि शिवसैनिक आपस में ही लड़ते रहें ,इसलिए मेरा इस्तीफा देना ही बेहतर है । संजय राउत का कोई बयान नहीं आया । शरद पवार ने भी यही सलाह दी थी कि एकनाथ शिंदे को ही मुख्यमंत्री बना दो पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी । खेल शुरू हो चुका था और वाया सूरत और वाया गुवाहाटी विधायक गोवा पहुंच चुके थे । ऐसा सुनने में आ रहा है कि इस खेल पर लगभग तीन हजार करोड़ रुपये खर्च हुए पर अहंकार तो बचा और कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया । कांग्रेस मुक्त भारत की दिशा में एक और कदम रखा । 
सबसे मजेदार यह भी सुनने में आ रहा है कि खुद उद्धव ठाकरे ने अपने हिस्से का आधि समय यानी अढ़ाई साल राज कर लिया और यह एक योजना के तहत ही वापस कर दिया । जितने मुंह उतनी बातें लेकिन यह राजनीति भी कमाल की चीज है । जो एकनाथ शिंदे एक ऑटो चालक था , अब वह सरकार चालक हो गया । यह हमारे लोकतंत्र और विश्वासघात का नतीजा है । संजय राउत को ईडी से चुप किया गया और उद्धव तनाव झेल नहीं पाये । इसलिये बिना कोई संघर्ष किये हथियार डाल दिये और फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार ही न हुए । अब मैदान साफ है । भाजपा कहती रही
 कि उसका इस सबमें कोई हाथ नहीं और कुछ लेना देना नहीं लेकिन देवेंद्र फडणबीस भागे भागे राज्यपाल के पास गये अविश्वास प्रस्ताव लेकर और राज्यपाल तो तैयार ही बैठे थे । सो पुण्य का काम किया । इस तरह एक लोकतांत्रिक सरकार को धन , बल और ईडी के साथ साथ कोर्ट ने भी चलता करने में देर नहीं लगाई । अब तो विधानसभा चुनावों में कुछ खर्च करने की जरूरत ही क्या ? जीते हुए विधायक खरीद लो , बस , हो गया बेड़ा पार । काहे की मारामारी ? किस जीत हार के लिए रैलियां ? बस । तीन हजार करोड़ में सरकार बिकाऊ है , क्यों बाबूजी खरीदोगे ? है हिम्मत ? 
राजनीति के बारे में एक नाटक का आखिरी संवाद बहुत याद आता है । कोणार्क नाटक में राजा सारा ध्यान और धन कोणार्क मंदिर बनाने में लगा देता है , अपने सेनापति को राजधानी सौंप कर । एक दिन सेनापति सेना लेकर आता है और राजा को गिरफ्तार कर लेता है । तब राजा कहता है कि मुझे तुम पर बहुत विश्वास था ।
इस पर सेनापति कहता है -विशवास कोई बल नहीं होता राजन् । 
सो एकनाथ शिंदे ने भी यही किया यानी विश्वासघात और वह कोई पहला नेता नहीं जिसने यह किया । कितने नेताओं के नाम आपको याद आ जायेंगे । उससे पहले बहुत से नेता यह करतब दिखा चुके हैं । शायद आपको भी यह यकीन आ जाये कि राजनीति विश्वासघात का ही दूसरा पहलू है ।
कौन-कौन कितने पानी में 
सबकी है पहचान मुझे ...
सबसे बड़ा नादान वही है 
जो दूसरे पर विश्वास करे ...

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।