कहानी/वादा मोहब्बत का

कहानी/वादा मोहब्बत का
टी शशि रंजन।

टी शशि रंजन
        मैं पहली बार शिमला आया था । चीड़ एवं देवदार के घने जंगलों से गुजरते हुये, बेहद शांत वातावरण में, पक्षियों के करलव एवं शीतल मौसम के बीच शिमला रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद मैने प्लेटफॉर्म पर ही चाय पी और चाय वाले को पैसे दे ही रहा था कि एक मीठी आवाज सुनाई दी, पंकज बाबू। मैने आवाज को अनसुनी करते हुए चाय वाले को पैसे देते हुए पूछा कि पास में कोई होटल है।
       इतने में यह आवाज दूसरी बार फिर आयी, पंकज बाबू । अभी मैं चाय वाले से पैसे वापस ले ही रहा था कि किसी ने फिर पुकारा — पंकज जी । आवाज नजदीक आयी और किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बेहद मीठी आवाज में कहा —पंकज बाबू । आवाज किसी महिला की थी ।  
       मैं चौंक गया कि इस नाम से मुझे यहां कौन बुला रहा है । क्योंकि यह मेरे घर का नाम है, जिसके बारे में मेरे परिवार, गांव और पास पड़ोस के कुछ लोगों के अलावा के किसी को जानकारी है । मेरी जानकारी में उनमें से किसी का शिमला से कोई नाता नहीं था ।
       चाय वाले से बातचीत करते हुए पीछे पलटा तो देखा कि एक बेहद खूबसूरत, शालीन, सौम्य और मुस्कुराती महिला खड़ी थी। उसने होठों पर मधुर मुस्कान लाते हुये कहा, पंकज बाबू, तुम यहां । मैं उसे देख कर पहचानने की कोशिश करने लगा, चेहरा जाना पहचाना प्रतीत हो रहा था। उसने कहा—अरे पहचाना नहीं । मैं.....  । तबतक मैने तपाक से कहा-पायल न। उसने हंसते हुये कहा—हां ।
       मैने कहा—पायल, कहां थी, इतने साल बाद। मतलब कहां रहती हो, मेरा मतबल यहां क्या कर रही हो, तुम कहीं जा रही हो, रेलवे स्टेशन पर क्या तुम कहीं से आयी हो या.....कहते हुए मैने अपने अपने अंदाज में सवालों की झड़ी लगा दी ।
        उसने हाथ से रूकने का इशारा करते हुए कहा-बस बस बस । अरे रूको । आराम से । इस बीच चाय वाले ने पैसा वापस करते हुये बोला — साहब यहीं एक होटल है । बढिया है आप जा कर देख लीजिये और यह उसका फोन नंबर है । 
        इस पर मैं उससे बात करने लगा तब तक पायल ने बीच में टोकते हुये चाय वाले से पैसे लिये और कहा कि ठीक है वह बात कर लेगी । इसके बाद पायल ने मुझे पैसे देते हुये कहा कि वह मेरे ठहरने का इंतजाम कर देगी । इसके बाद हम दोनों प्लेटफॉर्म पर एक बेंच पर बैठ गये । 
        पायल ने कहा कि 15 साल में तुम बिल्कुल नहीं बदले, इतने साल में भी तुम ठीक वैसे ही हो । जैसे पहले थे । बिना रूके लगातार...सवाल पूछना । तुम्हारी बातों में पहले की तरह ही, न कोई कॉमा है और न ही पूर्ण विराम । कह कर वह हंसने लगी ।
       मैने झेंपते हुए कहा - आं...., हां । फिर मैने भी हंसते हुए कहा— लेकिन तुम पूरी तरह बदल गयी हो । उसने पूछा— कैसे । मैने कहा, पंकज जी की जगह पंकज बाबू । आप की जगह तुम । छोटे बालों की जगह लंबे बाल और जींस टी शर्ट की जगह साड़ी । सबकुछ तो बदल गया है ।
      अचानक वह हंसते हंसते रूक गयी और बोली कि वक्त हर समय एक सा नहीं रहता है पंकज बाबू और नजरें दूसरी ओर घुमाते हुए उसने कहा कि तुम नहीं समझोगे । फिर हम दोनों चुप हो गये ।
      वह चुप चाप लगातार मेरी तरफ देखे जा रही थी । इस पर मैने चुप्पी तोड़ते हुये उससे पूछा कि ऐसे क्या देख रही हो, उसने कहा कि देख रही हूं आपकी बेबाकी और आपका अंदाज, जो अब भी वैसा ही है । आपका बेपरवाह अंदाज, जिसके सभी कायल थे । मैं भी, कह कर हंसी ।
      मैने कहा कि अंदाज तो तुम्हारा भी नहीं बदला है । उसने कहा क्या । मेरे कहने पर, अभी तुमने मुझे तुम से आप कहना शुरू कर दिया ।  वह हंसने लगी । मैने कहा इतना भी औपचारिक होने की आवश्यकता नहीं है । आप से अच्छा तुम ही बेहतर है । उसने पूछा क्यों, मैने कहा तुम कहने में अपनापन है।
     पायल ने बात बदलते हुए पूछा कि तुम होटल के बारे में पूछ रहे थे चाय वाले से । मैने कहा — हां । उसने पूछा कि यहां किसी काम से आये हो ।  मैने कहा—हां । मुझे आज ही कुफरी जाना है, अपने आफिस के काम से फिर एक दिन रूक कर मैं वापस दिल्ली लौटूंगा । 
     मैने कहते हुये पायल से पूछा, तुम यहां कैसे । उसने सीधा जवाब देते हुए कहा कि मैं यहीं रहती हूं । मैने पूछा लेकिन तुम तो...., उसने बीच में बात काटते हुए कहा कि मैं अब यहीं रहती हूं और यहीं काम करती हूं । मैने कहा यह तो अच्छा है कि तुम यहां रहती हो । उसने हंसते हुए कहा — हां अब तुम्हे चाय वाले से नहीं पूछना होगा होटल के बारे में ।
     इसी दौरान उसके फोन की घंटी बजी और पायल ने फोन पर बताया कि वह प्लेटफार्म पर ही है । अगले ही पल एक आदमी आया और उसने पायल का और उसके कहने पर मेरा बैग उठा लिया और हम एक एक घुमावदार रास्ता तय करते हुए प्लेटफार्म से बाहर निकले और एक गाड़ी के पास आ गये । 
     मैने पायल से पूछा कि हम कहां जा रहे हैं । उसने उत्तर देने की बजाए मुझसे सवाल किया कि कुफरी से आज लौटोगे या कल । मैने कहा कि काम तो दो घंटे का ही है । आज ही वापस होना है । मैने कहा, अब तुम मुझे ठहरने के लिए कोई जगह बताओ और कुफरी कैसे जाउंगा यह भी बताओ ।
     मैने पायल से पूछा कि तुमने बताया नहीं कि यहां क्या करती हो और कहां रहती हो । इस बीच लगातार उसका फोन बजता रहा और वह ऐसे बात करती रही जैसे कोई मुकदमा जीत कर वापस आ रही हो। उसने बताया कि हमलोग सीधा उसके आफिस जा रहे हैं और वहां से मैं तैयार होकर कुफरी चला जाउंगा और मेरे वापस आने के बाद वह मेरे ठहरने का प्रबंध करेगी ।
     मैं झिझकते हुये पायल के साथ उसके आफिस चला गया, हमने चाय साथ में पी और करीब एक घंटे बाद जब मैं कुफरी जाने के लिये तैयार हो गया तो, पायल ने कहा, यह इलाका तुम्हारे लिए बिल्कुल नया है, उसने चालक की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह धर्मेंद्र जी हैं तुम्हारा काम पूरा हो जाने तक तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हारी मदद करेंगे ।
      हम गाड़ी में बैठ चुके थे और सड़क पर गाड़ी दौड़ रही थी । मैने धर्मेंद्र से पूछा कि तुम्हारी मैडम काम क्या करती हैं । इनके पति क्या करते हैं । बच्चे आदि के बारे में भी एक ही सांस में पूछ लिया। पर धर्मेंद्र ने केवल इतना कहा कि साहब हमें आपको कुफरी ले जाना है और वहां से वापस लेकर आना है । यह सब बात आप मैडम से ही पूछिये । इसके बाद मैने धर्मेद्र से कुछ नहीं पूछा ।
      सड़क के दोनों तरफ लगे चीड़ एवं देवदार के उंचे उंचे पेड़ों ने सड़क की सुंदरता और बढ़ा दी थी । ऐसा लग रहा था मानो पूरा इलाका देवलोग उतर कर नीचे आ गया है । इसे देखते देखते अचानक पायल को लेकर अतीत के कुछ पन्ने मेरे सामने पलटने लगे थे । मैं बारहवीं की परीक्षा देकर अपने घर मोतिहारी लौटा था । मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में थे वहां उन्होंने किराये का एक घर ले लिया था । वह घर क्या था, आठ कमरों की पूरी हवेली थी । अब मैं भी यहीं रहने वाला था । बस परीक्षा परिणाम की प्रतीक्षा थी । मुझे मोतिहारी में रहते करीब एक महीना हो गया था । मेरा वहां कोई परिचित नहीं था । इसलिए मैं अधिकतर समय घर में ही व्यतीत करता था ।
      जेठ की तपती गर्मी की शाम थी। इसी बीच बिजली भी चली गयी थी। बाहर देखा तो हवा चल रही थी । मैं घर की छत पर चला गया तो बगल के घर की छत पर एक लड़की को देखा जो वहां चुपचाप खड़ी थी । जिस किराये के घर में हम रहते थे, वह मुख्य मार्ग पर ही था । हवा चल रही थी, जिस कारण मैं छत पर घूमते हुये किनारे की तरफ चला गया। मैं वहां खड़ा हुआ ही था कि बिजली के खम्भे में स्पार्क होने से आग की लपटें निकली । मैं थोड़ा पीछे हटा तो वह जोर से चिल्लाई । भागिये पंकज जी ।
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       मैं चौंक गया था कि उसे मेरा नाम कैसे पता है । मैं वहां से हट गया और पीछे की तरफ आ गया । वह भी दूसरे छत पर उसी तरफ खड़ी थी । उसने पूछा कि आपकी परीक्षाओं के नतीजे आ गये । मैने कहा नहीं । अभी आने वाले हैं। फिर उसने पूछा, दसवीं में स्कूल में आपने टॉप किया था न। मैने हामी भरते हुए पूछा — तुम्हें कैसे पता है ये सब । उसने कहा कि आपकी दीदी बतायी हैं । मुझे यह भी पता है कि आपका नाम पंकज है । 
       मैने पूछा तुम्हारा नाम क्या है उसने कहा — पायल । फिर बगैर पूछे उसने बताया कि वह दसवीं में पढती है और अगले साल उसका बोर्ड होने वाला है । उसने फिर कहा कि आपका गणित बेहद मजबूत है न, मुझे यह भी पता है कि गणित में बहुत अच्छे अंक आये थे दसवीं के बोर्ड में। आप क्या गणित में मेरी मदद करेंगे । मैने कहा हां, और कुछ देर बाद नीचे चला आया ।
       कुफरी में मेरा काम समाप्त होने में दो घंटे लगे । मैने वहां काम समाप्त किया और इसके बाद वापस लौटने लगा तो धर्मेंद्र ने कहा साहब अगर आपकी इच्छा हो तो चिड़िया घर देख सकते हैं। मैने मना कर दिया और शिमला की हसीन वादियों, देवदार के पेड़ों के बीच  प्राकृतिक सुंदरता को निहारते हुए मैं शिमला वापस लौटने लगा ।  
       इस दौरान मैं उम्र में मुझसे चार साल छोटी पायल के बारे में ही सोच रहा था, कैसे गणित के सवालों को हल करने के दौरान उसकी और मेरी दोस्ती हो गयी थी। कैसे मैं घर की छत पर जाता तो उससे बातचीत होती । लगातार । अनवरत । कहां से ये बातें आती थी, मुझे नहीं पता, लेकिन बातें रोज होती थी । हर रोज नयी बात । इस बीच उसके साथ पढ़ने वाली उसकी सहेलियां भी कभी कभार गणित की समस्या लेकर आ जाती थी ।
       समय बीतता गया और वह 12 वीं भी पास कर गयी थी । अब बातचीत खूब देर तक होती थी । हमारे बीच बातचीत के विषय का दायरा भी बढने लगा था । सहमति और असहमति का दौर भी शुरू हो गया था । सहमति और असहमति के मुद्दे पर झगड़ा भी होने लगा था। झगड़ा भी ऐसा कि हम दोनों के बीच बातचीत भी बंद हो जाती थी । हालांकि, बातचीत शुरू करने के लिए पायल को ही झुकना पड़ता और वही शुरू भी करती । वह मुझसे हमेशा मेरी पसंद नापसंद के बारे में पूछती और बगैर मेरे पूछे अपनी पसंद नापसंद भी बता देती । इसी बीच मेरी अंतिम वर्ष की परीक्षायें शुरू हो गयी थी । घर के सभी लोग किसी कार्यक्रम में शामिल होने गांव चले गये थे । यहां परीक्षाओं के कारण मैं अकेला रह गया था ।
        एक शाम मैं खाना बना रहा था, रात के साढे आठ बजे थे । रोटी बनानी मुझे नहीं आती थी । अब भी नहीं आती है । मैं आटा लगा रहा था, उसमें पानी अधिक हो गया । मैं उसे ठीक करने का प्रयास कर ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई । देखा तो पायल खड़ी थी। मैने पूछा — तुम, इस वक्त यहां । उसने कहा कि हां । मुझे लगा कि वह ऐसे ही आयी है, लेकिन उसने बताया कि आप खाना बना रहे हैं न, लाइये मैं रोटी बना देती हूं । मुझे पता है कि आपको रोटी बनानी नहीं आती है । मैने उसे हाल ही में बताया था कि खाना तो मैं बना ही लेता हूं लेकिन रोटी बनानी नहीं आती।
        इस पर मैने उसे कहा कि नहीं अभी तुम जाओ । घर में कोई नहीं है और मैं अकेला हूं, कोई देखेगा तो गलत सोचेगा । इस पर उसने कहा था कि उसे किसी के कुछ कहने की परवाह नहीं है, कोई कुछ कहता है तो कहने दीजिये । पर मैने जोर देकर कहा कि पास पड़ोस के लोग अगर तुम्हें यहां से अभी रात को निकलते देखेंगे तो बेकार में तुम्हारी चर्चा करेंगे क्योंकि सबको पता है कि मैं अपने घर में अकेला हूं । 
       इस पर उसने कहा कि मेरी बदनामी की आपको चिंता है न, मैने कहा— हां, इसके बाद वह तत्काल उठ कर चली गयी और थोड़ी ही देर में अपनी बड़ी बहन के साथ आ गयी। इसके बाद अगले पांच छह दिन तक वह या तो आ कर रोटी बना जाती या फिर शाम का खाना लेकर आ जाती ।
       मेरी परीक्षायें समाप्त होते ही उसकी परीक्षायें शुरू हो गयी थी। उसका आना जाना कम हो गया, तो उसकी उपस्थिति का अभाव महसूस होने लगा लेकिन मैने इसकी परवाह नहीं की। वह भी कभी कभी जब आती तो बताती कि मुझसे बातचीत किये बगैर पढ़ने में उसका मन नहीं लगता है ।
       फिर कई रोज के बाद एक दिन वह मेरे घर आयी । उसने बताया कि उसकी परीक्षायें समाप्त हो गयी है और हंसते हुये कहा कि हम दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू हो जाएगा ।
       हमारी बातचीत दोबारा शुरू हो गयी थी । यह बातचीत लगातार होती । राजनीति पर, फिल्मों पर, आस पास के समाज पर, भ्रष्टाचार पर और तमाम सामाजिक व्यवस्थाओं अव्यवस्थाओ, रीतियो एवं कुरीतियों पर ।
       हम दोनों का अधिकतर समय अब छत पर ही व्यतीत होने लगा था । अब दोपहर के वक्त भी वह हमारे घर आ जाती थी और सीधे मेरे कमरे में आती, हम दोनों के बीच बातचीत का दौर भी शुरू हो गया था । हम दोनों को परीक्षा परिणाम का इंतजार था । मेरे माता पिता और शायद उसके माता पिता भी नहीं चाहते हमारे बीच इतनी लंबी बातें हो । 
       मैं छत पर नहीं जाता तो वह मेरे घर आ जाती । हमारे बीच बातचीत का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा था। मैने उसे बताया था कि स्लो और रोमांटिक गाने मुझे पसंद हैं । शरतचंद कि किताबें मुझे सबसे अधिक पंसद है । कहानी पढ़ना और गाने सुनना मुझे अच्छा लगता है । जब मैं बताता कि धार्मिक पुस्तकें उनकी व्याख्या मुझे अच्छी लगती है तो वह जोर जोर से हंस देती और कहती साधु बाबा । फिर बोलती साधु बाबा, आपके लिए कोई साध्वी खोजना पड़ेगा तभी आपका कल्याण होगा ।
       एक शाम हम घर की छत पर बैठे थे, हमारे बीच अपनी पसंद नापसंद की बात हो रही थी । कौन सी नौकरी करनी है इस बारे में बातचीत हो रही थी । फिर अचानक उसने पूछा था कि प्रेम के बारे में आप क्या सोचते हैं । 
       एकदम सामान्य भाव में मैने किसी वक्ता की तरह कहा था, — प्रेम तो सर्वाधिक स्वाभाविक और स्वत:स्फूर्त घटना है। यह तो हमारी आत्मा है। हमारा स्वरूप है। प्रेम ही तो है जिससे हम बने हैं। प्रेम ही तो है जिससे सारा जगत बना है। उस प्रेम को ही तो हमने नाम दिया है परमात्मा का। 
      मैने आगे कहा — हमारे तुम्हारे बीच कोई रिश्ता नहीं है लेकिन हम एक दूसरे के साथ इतना समय व्यतीत करते हैं और बातचीत करते हैं यह प्रेम ही तो है और यही परमात्मा है । परमात्मा और कहीं नहीं है, कोई और परमात्मा नहीं है--बस प्रेम को ही दिया गया एक नाम है, प्रेम ही परमात्मा है ।
     झेंपते हुये वह जबरन हंसने लगी और कहा— बस बस । ज्ञान मिल गया । ओशो का ज्ञान । हालांकि अच्छी बाते हैं, सिर्फ कहने के लिये । फिर गंभीर होकर बोली — इसे जीवन में उतारना बड़ा कठिन है । मैने पूछा— मतलब । पायल ने कहा— ये जो आप ओशो की किताबें पढते हैं न उसका जीवन में पालन करना बेदह कठिन है ।
     फिर कुछ गंभीर होकर उसने कहा — अगर कोई झरने को पत्थर अटका कर बहने से रोक दे तो । आजकल ऐसे ही प्रेम भी अहंकार के पत्थरों में दब गया है। पत्थर बड़ा है लेकिन झरना कोमल है । एकदम फूल की तरह । गुलाब के फूल को पत्थर में दबा दो तो उस फूल का विकास कठिन हो जाएगा,लेकिन इसमें फूल का कसूर नहीं।
     मैं उसकी बात से अवाक था, कि वह क्या कह रही है । कहीं ऐसा तो नहीं कि वह मुझे ही कह रही है । मेरा तो अपनी किताबों और पढाई के अलावा किसी तरफ ध्यान ही नहीं जाता था ।
      उसने फिर कहा, एक बात बताईये । आपको किसी से प्रेम है या हुआ है । जो वह जानना चाहती थी, उसका मेरे पास जवाब नहीं था, फिर भी मैने कहा कि हां — है । उसने चहकते हुए पूछा — किससे । मैने कहा— अपनी किताबों से । उसने कहा — किताबों से तो है ही, मैं पूछ रही हूं कि आपको किसी लडकी से प्रेम नही है । कोई ऐसी जो आस पास हो, जिससे आपके विचार मेल खाते हों । या कोई ऐसी जो आप पर एकदम मरती हो । मैने कहा फिलहाल कोई ऐसी दिखी नहीं है या फिर मुझे ये सब बातें अबतक समझ में नहीं आयी है ।
       इस पर उसने झल्लाते हुए कहा — यह समाज है न, पहले फूल को पत्थर से दबाएगा और तब अफसोस करेगा कि फूल का बढ़ना कितना दुस्तर है। पहले पत्थर तो हटाओ । एक बार पत्थर हटाओ । झरने को बहने दो । रास्ता अवरूद्ध न हो तो झरने को बहाना नहीं पड़ता, अपने से बहता है। बहने का मौका तो दो ।
       मैने भी कहा कि अच्छा ओशो की पुस्तकें खूब पढी जा रही है आजकल । मैने मजाकिया लहजे में कहा कि अच्छा ज्ञान दे रही हो। इसके बाद वह मेरी तरफ देखते हए उठ कर नीचे चली गयी थी । मैने आवाज लगायी, पायल पायल लेकिन वह सरसराती हुयी निकल गयी ।
       इस वाकये के बाद मैने कई बार सोचा कि उसने ऐसा क्यों कहा । मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं उसे मुझसे.....। मैं तो इन सबसे लापरवाह, बेपरवाह एकदम दूर अपनी किताबों में मशगूल था । इसके बाद कई रोज तक उससे न तो मुलाकात हुई और न ही बात हुई, वह मेरे घर भी नहीं आयी ।
       एक दिन मैं अपने घर में ही था, कि वह अचानक आयी और सीधा मेरे कमरे में पहुंच गयी थी । मैं वहां टीवी देख रहा था । यह बात मेरे घर वालों को अच्छी नहीं लगी । उसके हाथ में एक पोस्टर था । उसने पोस्टर दिखाते हुए कहा कितना अच्छा घर है न । मैने कहा — हां । हरे भरे पेड़ों के बीच में यह घर अच्छा लग रहा है।
       मैंने उसे कहा करता था कि प्रकृति के बीच मैं अपना घर बनवाउंगा । मैने कहा — काश मैं यहीं अपना घर बनवा पाता । दो कमरे का घर। एक बड़ा सा हॉल और हॉल में एक तरफ बुक सेल्फ,जिसमें मेरी पंसदीदा शरतचंद्र की और ओशो की किताबें, बीच में टेबल पर एक म्यूजिक सिस्टम । बाहर एक छोटा सा लॉन । कमरों में, हॉल में और लॉन में छोटे छोटे स्पीकर जहां गाने सुनाई दे ।  
       उसने कहा इसलिए मैने आपको यह दिखाया है । आपको मौका मिलेगा तो आप कहां अपना घर बनाना पसंद करेंगे, मैने कहा शिमला । फिर उसने पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए पूछा इन्हीं हसीन वादियों में । मैने कहा — हां । इस पर उसने कहा आपके पास जो कलम है न वह आप मुझे दे दीजिये । मैने पूछा— क्यों । यह कलम मेरे लिए बड़ा लकी है । जब भी परीक्षा में इससे लिखता हूं, पास हो जाता हूं । यह मैं किसी को नहीं दे सकता । इस पर उसने कहा तभी तो मांग रही हूं अगर हम दोनों इस लकी कलम से लिखेंगे तो दोनों ही परीक्षा पास करेंगे और एक दूसरे के सपनों का घर बनाने में मदद करेंगे ।
       उसने फिर कहा मैं आपसे वादा करती हूं कि अगर आप कलम देंगे तो मैं आपको आपके पसंद का घर बनाने में मदद करूंगी । इस पर मैने कहा कि तुम कैसे मदद करोगी, तुम तो अपना घर बनाओगी । उसने कहा कि हां, मैने तय कर लिया है जहां आपका घर होगा वहीं मेरा भी घर बनेगा । फिर बड़े विश्वास के साथ उसने कहा कि क्या पता एक ही घर हो ।  
       मैने यूं हीं पूछा लिया— ऐसा कैसे हो सकता है । उसने कहा— मुझे नहीं पता । पर ऐसा अगर नहीं हो सकता है तो, इसका दूसरा पहलू यह है कि ऐसा हो भी तो सकता है । मैं उसकी बेबाकी से हैरान था ।  
       एक दोपहर मैं किराये के हवेलीनुमा घर के बरामदे में बैठा था । बाकी लोग कहीं गये थे । तभी पायल अपनी सहेली श्रुति के साथ आयी और बोली, मेरी दूसरे वर्ष की परीक्षायें शुरू होने वाली है और अपनी कलम मुझे दे दीजिये क्योकि मैं परीक्षाओं में आपकी उसी कलम से लिखना चाहती हूं और मुझे पता है कि यह कलम हम दोनों के लिए लकी है । 
      मैं जब कलम लेने अंदर गया तो पीछे पीछे वे दोनों भी आ गयी । मैने उन्हें बैठक में रखे सोफे की तरफ इशारा करते हए बैठने के लिये कहा । मैं कलम लेने अपने कमरे में गया । इसी दौरान श्रुति ने पायल से कहा — बड़ा हैंडसम है तुम्हारा ब्वायफ्रेंड ।
      श्रुति ने दोबारा कहा — तुम्हारे पास यह अपनी मोहब्बत का इजहार करे या नहीं, लेकिन यह लड़का तुमसे बेहद प्यार करता है और उसकी आंखों में दिख रहा है। यह सुनकर मैं चौंक गया था। मैने कलम ला कर उसे दे दिया और कहा कि अब तुमलोग जाओ।
      पायल ने कहा कि मुझे कुछ और बात करनी है और बगैर बातचीत किये मैं नहीं जाउंगी । मैं समझ गया था कि वह क्या बातचीत करना चाहती है । मैने कहा नहीं अभी कोई बातचीत नहीं होगी । मुझे कहीं जाना है । 
      पायल ने कहा कि बहाने मत बनाओ पंकज जी । मुझे आपसे प्यार हो गया है, बेपनाह मोहब्बत करती हूं । आपसे मुझे हमेशा से ही मोहब्बत है । जब मैने पहली बार आपको देखा था, तभी मुझे लगा था कि यह लडका मेरे लिए ही बना है ।

                                                      3

       मैने धीरे से कहा— पायल । मैने कभी तुम्हारे बारे में ऐसा सोचा नहीं है । तो बता दीजिय पंकज जी किसके बारे में सोचते हैं । फिर वह रोने लगी । उसने कहा — मत ठुकराओ मेरे प्यार को । मैने उसकी तरफ पीठ करते हुए कहा कि मैं इस बारे में अभी कोई बात नहीं करूंगा अभी तुम जाओ । उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपनी तरफ घुमाते हुए पूछा —क्यों । मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था । मैने उससे जबरन हाथ छुडाते हुए कहा कि तुम लोग जाओ अभी बस । मैं इस बारे में फिर कभी बात करूंगा ।
      श्रुति ने भी उसे समझाने का प्रयास किया । पायल चुप हो गयी । उसने अपनी आंखे पोछते हुये रूंधे गले से मुझसे पूछा — किसी और के बारे में अगर सोचना है तो मैं क्यों नहीं । मैने कुछ नहीं कहा था। फिर मैने श्रुति से कहा— जिन सवालों का जवाब नहीं मिलता है न, वह लोगों को कमजोर कर देता है । तुम इसे लेकर अभी जाओ मैं कल कॉलेज में मिलूंगा । पायल मेरी तरफ देखते हुये श्रुति के साथ चली गयी । 
     कल होकर कॉलेज में मैं श्रुति से मिला, उसने बताया कि पायल नहीं आयी थी । हम दोनों का घर अगल बगल था । दोनों घरों के बीच छत की दूरी बहुत कम थी । इस घटनाक्रम के बाद हम दोनों के बीच एक निर्वात पैदा हो गया था । दोनों के बीच होने वाली बातचीत एकदम बंद हो गयी थी । हम दोनों के बीच सन्नाटा पैदा हो गया था । खामोशियां आ गयी थी । कालेज में मैने एक दो बार उसे टोकने का प्रयास किया लेकिन उसने ठीक से उत्तर नहीं दिया था ।
     पायल मेरे घर आती थी लेकिन अब उसकी बात मुझसे नहीं होती थी। बहुत जल्दी ही हमदोनों के घर वालों को पता चल गया था कि अतीत की तरह एक बार फिर से हमारा झगडा हो गया है इसलिए हमारी बातचीत बंद हो गयी है । बाकी लोगों के लिये यह सामान्य बात थी लेकिन मैं कारण जानता था। इस बीच उसकी परीक्षायें समाप्त हो चुकी थी । मैने कई बार प्रयास किया कि हमारी बातचीत शुरू हो, लेकिन हम सफल नहीं हो पाये । हालांकि, श्रुति से जब भी मेरी बातचीत होती तो पता चलता कि वह अक्सर मेरे बारे में उससे बात करती है ।
      एक बार पायल पूरे परिवार के साथ सिनेमा देखने गयी थी । मैं अपने दोस्त के साथ सिनेमा हॉल में पोस्टर देखने गया था । दरअसल, सिनेमा हॉल वाले आगामी सिनेमा के पोस्टर जारी करते थे और हम उसे देखने जाते थे । इसी बीच उनलोगों से भी मुलाकात हो गयी । उसकी बडी बहन ने कहा पंकज बाबू, तुम सिनेमा देखने आये हो । मैं जबतक कुछ कहूं तबतक मेरे दोस्त ने कहा — हां । इस पर उनलोगों ने कहा कि अच्छा है आ जाओ । मेरा नाम सुन कर पायल भी प्रतीक्षालय से बाहर आयी ।
      मैने उसकी ओर देखते हुए कहा — अब नहीं देखेंगे । मैं वापस जा रहा हूं । सबलोग रोकते रह गये पर मैं नहीं माना । मुझे ऐसे भी सिनेमा देखना नहीं था । इसके बाद श्रुति से पता चला कि पायल को उसकी दादी ने हॉल में ही बहुत डांटा था । घर पर भी उसकी मां से उसे डांट खानी पड़ी । इसके बाद मैने छत पर जाना और उसने मेरे घर आना बंद कर दिया था । मैं दिल्ली आ गया था और उसके बाद उससे फिर कभी मेरी मुलाकात नहीं हुई थी । उसने मेरी कलम भी वापस नहीं लौटायी थी । हां, एक दो बार देखा देखी जरूर हुयी थी ।
      तभी मेरे फोन की घंटी बजी । मैं अतीत से वर्तमान में आया । दूसरी तरफ पायल थी । मैने बताया कि लौट ही रहा हूं । चौड़ा मैदान तक आ गया हूं । उसने कहा धर्मेंद्रजी को बताओ कि वह तुम्हें रिज पर छोडें । मैने ऐसा ही किया । कुछ ही देर में मैं रिज पर था । पायल के सामने । वह मुस्कुरा कर मेरा स्वागत कर रही थी ।
      मॉल रोड से सटे शिमला शहर का सबसे उंचाई वाला स्थान, जहां लोग घूमने आते हैं जहां से आप खड़े होकर नीचे का पूरा शहर देख सकते हैं । वहीं एक स्थान देख कर हम दोनों बैठ गये। वह थर्मस में चाय लेकर आयी थी । मेरी पसंदीदा चाय । इलाइची वाली । हम दोनों ने चाय पी । पायल ने पूछा पूछा कैसी रही कुफरी की यात्रा । मैने कहा काम हो गया । अब मैं एक दिन शिमला घूमने के बाद वापस दिल्ली लौट जाउंगा।
       फिर हम दोनों ने एक दूसरे के बारे में पूछा । उसने बताया कि उसने यहां अपना लॉ फॉर्म खोला हुआ है और काफी लंबा चौड़ा काम है । दवा बनाने वाली एक कंपनी के मालिक का सेवा के बगान को लेकर कुछ जमीनी विवाद चल रहा है, जिसके लिए उसका दिल्ली आना जाना लगा रहता है । मैने पूछा तुम यहां कैसे आ गयी, तुम्हारे पति क्या करते हैं । मैने उससे उसके बारे में पूछा तो उसने टाल दिया । मैने पूछा — पायल शादी की तुमने । उसने कहा — मेरी छोड़ो अपनी बताओ । मेरे पूछे गये सभी सवालों का जवाब उसने टाल दिया ।
       उसने कहा कि मैने सुना था कि तुम्हारी शादी की बातचीत हो रही है । इस पर मैने हंस दिया । उसने जोर देकर पूछा तो मैने कहा— शादी कैसे होगी । कोई लड़की तो मिली ही नहीं । शादी के लिए लड़की चाहिए होती है । पायल ने पूछा तो अबतक तुमने शादी नहीं की, मैने कहा — नहीं, मैं अबतक सिंगल हूं ।
      पायल ने पूछा — इतनी अच्छी नौकरी है, तो शादी क्यों नहीं हुई । मैने हंसते हुए कहा —पायल ! तुम नहीं मिली न और श्रुति से तो मैं शादी कर नहीं सकता था । उसने फिर पूछा कि शिमला की हसीन वादियों में घर बनाया या नहीं । मैने कहा— नहीं । उसने पूछा क्यों — मैने कहा, किसके लिये । पायल ने फिर पूछा — यूपीएससी की परीक्षा क्यों नहीं पास की । मैने कहा— मेरी लकी कलम तुम्हारे पास जो रह गयी थी और तुमने बातचीत भी बंद कर दी थी । फिर दोनों हंसने लगे । रिज पर हम करीब दो घंटे तक घूमते रहे । इस दौरान उसने मुझसे पूछा किसी से मोहब्बत हुई, या किसी के बारे में सोचा । मैने कहा — प्रेम तो मन के भीतर अपने आप अंकुरित होने वाली भावना है । प्रेम सोच समझ कर नही होता, और सोचकर तो यह हो ही नही सकता, संभव ही नही है।
      मैने फिर कहा— हम सोचते हैं कि हमसे कोई प्रेम नहीं करता लेेकिन यह कोई नहीं सोचता कि प्रेम दूसरों से लेने की चीज नहीं है, यह तो देने की चीज है।
      पायल ने कहा— दरअसल हमारे ही मन के अंदर प्रेम करने का अहंकार भरा होता है, इसलिए हम प्रेम नहीं कर रहे होते हैं बल्कि उसका दिखा कर रहे होते हैं और कहते हैं कि प्रेम है । मैने पूछा तुम्हें लगता है कि मैं अहंकार करता हूं । उसने कहा— नहीं, लेकिन किताबों से भी बाहर बहुत बड़ी दुनिया है । उसे अगर नहीं समझोगे तो लोग कहेंगे कि अहंकार है । मैने पूछा — तुम क्या कहोगी । पायल ने कहा— मैं लोगों से इतर नहीं हूं पंकज बाबू । मैं चुप हो गया ।
      कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए उसने कहा — पंकज जी, आप.....। मैने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा— लेकिन मैं अहंकार नहीं कर रहा था, न तब और न ही अब । पायल ने कहा— यह मुझे पता है । यही कारण है कि मेरी नजर में आपकी कद्र आज भी वही है । यह कभी कम नहीं होगी । मैं गाने भी वही सुनती हूं जो आप सुनते हैं या उस दिन सुना करते थे । मेरा दिल धक्क से रह गया । उसने मुझे पंकज जी कहा था, और आप कह कर संबोधित किया था ।
     रात गहराती जा रही थी । उससे बातचीत में मैने ठहरने के बारे में पूछा ही नहीं था । मैने कहा पायल तुम्हें देर हो रही होगी । तुम्हारे पति और बच्चे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे और तुम्हे....., पायल ने बीच में रोकते हुए कहा जब भी कोई विशेष बात आती है तो आप दूसरी बात क्यों शुरू कर देते हैं। पति और बच्चों की चिंता मुझे होगी ही न ।
     मैने पूछा— पायल रूकना कहां है । उसने कहा— घर पर । मैने पूछा— और तुम्हारे घर वाले । उसने कहा— चलो । इस बीच उसने फोन किया और धर्मेंद्र को गाडी लेकर आने को कहा । हम रिज से वाहन निषेध क्षेत्र को पैदल पार करते हुए गाड़ी के पास आ गये । हम गाड़ी में बैठ गये थे और वह चल रही थी । सामने मुझे मरीना होटल दिखाई दिया । अगले ही पल हम पंजाब सरकार का गेस्ट हाउस सिडार और फिर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे और कुछ देर तक चलने के बाद एक घर के सामने गाड़ी रूकी, हम उतर कर अंदर गये ।
     बहुत शानदार लेकिन छोटा घर । दो बेडरूम । एक हॉल । घर के बाहर छोटा सा लॉन, और वहां दो लोगों के बैठने की जगह । बाहर से घर की शानदार बनावट । मैने पूछा कि पायल क्या यह तुम्हारा घर है । उसने कहा कि तुम्हें ठहरने के लिए जगह चाहिए थी, यहीं ठहरो ।
      मैने पूछा तो उसने सामने वाले कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो तुम्हारा कमरा है । एक आदमी आया और मेरा सामान उसमें रख दिया । पीछे से पायल भी आयी और कहा कि तुम फ्रेश हो जाओ । फिर हम हॉल में मिलते हैं । मैं हॉल में आया । खाने की टेबल पर । सबकुछ मेरी पसंद का था । खाना खाने के बाद हम बाहर लॉन में बैठे थे । मैने पूछा— पायल हॉल में दीवारों पर पर्दे क्यों हैं । उसने कहा— यह तो बहुत पहले से है । मैने पूछा क्या है उसके पीछे — उसने कहा अंदर जाने पर खुद ही देख लेना।
       फिर हमारे बीच पुराने दिनो की बातें होने लगी । मैने पूछा— यह घर तुम्हारा है । उसने कहा— हां। तुमने तो शिमला की हसीन वादियों में अपना घर नहीं बनाया लेकिन मैने बना लिया। मैने पूछा— तुम्हारे पति और बच्चे। उसने कहा नहीं हैं । मैने फिर पूछा—क्या मतलब । उसने हंसते हुए बताया— मैने भी शादी नहीं की । मैने आश्चर्य से पूछा —क्या । मैने पूछा — क्यों । उसने कहा— बस ऐसे ही । पंकज जी के अलावा कोई जंचा नहीं । फिर हम हंसते हुए पुराने दिनों की बात याद करने लगे । मैने उसे बताया कि सिनेमा हॉल में कैसे मैं पोस्टर देखने गया था और उसे देख कर मैने कह दिया कि सिनेमा नहीं देखना है अब, तो उसे बहुत डांट पडी थी ।  
      मैने पूछा — पायल, सिनेमा हॉल वाली घटना के बाद तुम कहां चली गयी थी । उसने कहा — मैं मामा के घर चली गयी थी । मैने कहा— कई बार मैने संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन तुम नहीं मिली । इसबीच श्रुति से मैने तुम्हारे बारे में पूछा था, उसने बताया कि उसे नहीं पता है ।
      मैने फिर कहा— मैने छत पर और तुमने मेरे घर आना जाना बंद कर दिया। हमारी मुलाकात भी नहीं हुई । मैने कहा पायल एक बात कहूं, उसने कहा हां । मैने कहा—कुछ लोग होते हैं न जिनका इंतजार उनसे भी खुबसूरत होता है । उसने कहा— कितना खुबसूरत होता है यह इंतजार, मुझसे बेहतर कौन जानता है । आपस की बातचीत, कब दिल को छू गयी और कब आप मुझे अच्छे लगने लगे, कब आपकी पसंद मेरी पसंद बन गयी, मुझे पता ही नहीं चला । लेकिन आप तो इन सबसे दूर, मेरी भावनाओं से बेखबर, अपनी किताबों में खोये रहते थे, और मैं यह समझ नहीं पाती थी कि ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है जिसे किसी के मोहब्बत की परवाह नहीं हो । उसने फिर कहा— मोतिहारी से जाने के बाद मैने हर पल श्रुति से आपके बारे में जानकारी ले रही थी ।
     मैने कहा— तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा इंतजार शुरू हो गया । तुम्हारी कमी महसूस होने लगी थी । बेचैनी से समय बीत रहा था । इसी बीच होली से ठीक पहले तुम वापस आ गयी थी । मैने तय कर लिया था कि होली के दिन तुम्हे रंग लगाउंगा और तुमसे कहूंगा कि मुझे भी तुमसे उतना ही प्यार है ।
     पायल ने कुछ कहने का प्रयास किया तो मैने रोक दिया और कहा— यादें बादलों की तरह होती है न। उनका कोई मौसम नहीं होता है । चाहे गर्मी हो या सर्दी या फिर बरसात या कोई और मौसम जब आती हैं तो जमकर आसमान की तरह बरसती है ।
      मैने फिर कहा— मैं तुम्हारे घर गया था, सबके साथ होली खेली, लेकिन तुमने खुद को कमरे में बंद कर लिया था । मैने दरवाजा खटखटाया । तुम्हारे घर वालों ने कई बार कहा कि बाहर आ जाओ लेकिन तुम नहीं आयी । उस दिन मैने पहली बार रंगहीन होली खेली थी । 
      मैने फिर कहा— शाम को तुम मेरे श्रुति के साथ मेरे घर आयी थी । मैने पीले रंग के एक कागज पर लिखा था— आई लव यू टू पायल । लेकिन डर की वजह से मैं तुम्हें वह कागज दे नहीं पाया था, और उसे फेंक दिया था । यह बता कर मैं चुप हो गया ।
      इस पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिये उसने कहा पंकज जी, अब अंदर चलिये रात अधिक हो गयी है। मुझे शायद उसके जवाब का इंतजार था ।
      अंदर जाने पर मैं चाह रहा था कि अब इन बातों को यहीं बंद कर दें लेकिन यादें जब बरसती हैं तो बिना बंद हुए रूकती नहीं है । पायल अंदर आ कर सोफे पर बैठ गयी थी । उसने आया को पानी लाने के लिए कहा, मैने पूछा बताया नहीं कि दीवारों पर पर्दे क्यों हैं । उसने कहा — आप स्वयं ही हटा कर देख लीजिये ।
       मैं खड़ा था, तबतक वह महिला पानी लेकर आयी, मैने मना कर दिया तो उसने कहा —साहब, बहुत दिनों से तैयार होने के बावजूद इस घर में आज ही प्रवेश हुआ है । आप पानी लेने से मना मत करिये । मेहमानों को घर में पहले दिन पानी लेने से इंकार नहीं करना चाहिये। 
       मैने उसकी तरफ देखे बगैर पर्दा हटाया। पर्दा हटते ही मैं चौंक पडा, पूरी दीवार पर मेरी ही तस्वीरें टंगी थी। वहीं दीवार में बनी आलमारी में शरतचंद्र और अन्य लेखकों की किताबें । दूसरी तरफ ओशो की पुस्तकें । बीच में म्युजिक सिस्टम और मेरी पसंद के गानों की सिडियां ।
       मेरी तस्वीरों के बीच एक छोटे फ्रेम में वही पीला कागज था जिस पर मैने 'आई लव यू टू पायल' लिख कर उसे देने की बजाये फेंक दिया था ।
       मैने पायल की ओर देखा तो वह मेरे पीछे ही खड़ी थी, उसने कहा सबकुछ आपके कहे अनुसार है। और बस इसमें आपकी ही कमी है और आपका ही इंतजार है । इस घर को ओर मेरे दिल को आज भी आपका ही इंतजार है पंकज जी । आज भी मैं आपसे उतनी ही मोहब्बत करती हूं। यह कह कर पायल मुझसे लिपट गयी ।

लेखक परिचय:  
टी शशि रंजन केमेस्ट्री में स्नातक करने के उपरांत पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिप्लोमा तथा स्नातकोत्तर, विधि में स्नातक तथा एमएससी :बीटी: करने के बाद संप्रति एक अग्रणी समाचार समिति में बतौर वरिष्ठ संवाददाता कार्यरत  हैं। विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में लेखों, कहानियों, लघुकथाओं एवं समीक्षाओं का प्रकाशन हो चूका है। वे गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) से सम्बंधित है।