लघुकथा/विजेता

लघुकथा/विजेता
मनोज धीमान।

उसे सुबह की सैर बहुत अच्छी लगती थी। रोज़ाना की तरह आज भी वह सैर पर निकला। वह गली में  थोड़ी दूर तक गया था कि आवारा कुत्तों का एक झुण्ड उसके पीछे पड़ गया। कुत्ते जोर जोर से भौंके जा रहे थे। बड़ी मुश्किल से सैर करके वह घर लौटा। अगले दिन फिर वही सिलसिला हुआ। वह परेशान हो गया। 
आज फिर वह सुबह की सैर को निकला। गली के आवारा कुत्ते फिर उसके पीछे पीछे चलने लगे। कभी भौंकते, कभी गुर्राने लगते। कुछ कदम चल कर वह रुका। उसने अपने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और बिस्कुट के दो पैकेट निकाले। बिस्कुट तोड़ कर उसने कुत्तों के सामने फेंक दिए। कुत्ते बिस्कुट के टुकड़ों पर झपट पड़े। देखते ही देखते कुत्ते बिस्कुट के सभी टुकड़े चट कर गए। अब वह फिर भूखी नज़रों से उसे देखने लगे और अपनी दुम हिलाने लगे। जब वह दोबारा चलने लगा तो कुत्ते फिर भौंकने लगे। उसे समझ आ गई कि उसकी योजना सफल नहीं हुई।
उससे अगले दिन जब वह सैर को निकला तो उसके हाथ में एक रस्सी थी और रस्सी के एक सिरे से उसका पालतू पिटबुल्ल कुत्ता बंधा हुआ था। जब वह गली में थोड़ा आगे निकला तो आवारा कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया। उन्हें भौंकता देख कर उसके  पिटबुल्ल कुत्ते ने आँखें दिखाई और गुस्से से गुर्राया। आवारा कुत्ते कुछ कदम पीछे हट गए। तभी उसने रस्सी अपने हाथ से छोड़ दी। उसका पिटबुल आवारा कुत्तों के पीछे भागा। सभी आवारा कुत्ते अपनी जान बचाने के लिए सरपट भागे और गली में इधर उधर हो कर आँखों से ओझल हो गए। पिटबुल दौड़ता हुआ वापस लौट आया।  उसने पिटबुल के पटे की रस्सी को हाथ में थामा और सैर करने के लिए आगे निकल गया। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। वह किसी विजेता की तरह अपने कदम आगे की ओर बढ़ाता चला जा रहा था।
-मनोज धीमान