समाचार विश्लेषण/किसान पर मौसम और सरकार की मार
-कमलेश भारतीय
आंदोलनकारी किसान पर पहले सरकार ने तो अब मौसम ने दोहरी मार मारी है । सरकार किसान के पांव के नीचे से जमीन खींचने में लगी है तो मौसम ऊपर से मारने में लगा है । जाए तो जाए कहां ? एक तो छम छम बरसात , दूसरे सरकार के तीन कानून । रब्ब खैर करे । समझेगा कौन इसके दर्द की जुबान ? कोई समझने को तैयार नहीं किसान की दुख तकलीफ या मन की बात को ।
दो तीन दिन मौसम का मिजाज ऐसा बिगड़ा कि किसान आंदोलनकारी बारिश में भीगने को विवश हुए लेकिन अपने इरादे नहीं बदले । तुरत फुरत तिरपालों का प्रबंध किया गया ।
आखिर सरकार क्या सोच रही है ? किसानों ने ट्रैक्टर परेड या ट्रैक्टर यात्रा की घोषणा कर दी है जो कल निकाली जायेगी । किसानों का चैनल चल रहा है और सारी छोटी से बड़ी जानकारियां दे रहा है । किसान कुर्बानी देने में अर्द्धशतक लगा चुके है पर सरकार के मन में यह बात अभी असर नहीं कर पाई । अभी और कितनी कुर्बानियों की इंतज़ार है ? गोदी मीडिया बहस के शो चला कर किसानों को कमजोर करने की कोशिश में हैं और भाजपा प्रवक्ता अभी अहंकार में डूबे बात करते हैं लेकिन इनके तर्कों पर हंसी आती है या तरस । मीडिया एंकर एक बात कह गया कि यदि किसान भ्रम में हैं तो आप छह महीने में भी इनका भ्रम दूर क्यों नहीं कर सके ? इस किसानों को आपकी बात समझ क्यों नहीं आयी और विपक्ष ने ऐसी क्या घुट्टी पिलाई कि ये टस से मस नहीं हो रहे ? कुछ तो बात है । जैसे पीएचडी का डायलाॅग-कुछ तो गड़बड़ है ..
सरकार ने आंदोलनकारी किसानों से ध्यान हटाने के लिए राबर्ट वाड्रा का सहयोग मांगा है यानी उससे पूछताछ शुरू कर दी है कि हम तो बहुत बड़े काम में व्यस्त हैं । अभी गांधी परिवार की छवि धूमिल करने में लगे हैं । आप टाइमिंग देखिए पूछताछ की । जब किसान आंदोलन तेज़ी पकड़े है तब राबर्ट वाड्रा पर जांच याद आई । वाड्रा शायद ठीक कह रहा है कि मुझे परेशान करने के लिए यह पूछताछ की जाती है लेकिन यह नहीं समझ पा रहा कि किसान आंदोलन से ध्यान हटाने के लिए यह पूछताछ दफ्तर खोला गया है । वाह री सरकार । क्या कहने ...अब ट्रैक्टर मार्च की तैयारी जोर शोर से और इससे कितना टकराव होगा ? इसके क्या परिणाम हो सकते है? कही शांतिपूर्ण आंदोलन को सरकार की हठधर्मिता किसी और दिशा में न ले जाये ,,,
सबको सन्मति दे भगवान्