कलाकारों के सपनों का क्या होगा?/कमलेश भारतीय
जो कल तक हमारा मनोरंजन करते थे आज उनकी सुध लेने की जरूरत है
"सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना"
यह पंजाबी के प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि पाश की कविता का अंश है। यह क्रांति के आह्वान की तरह है पर इंदौर की कलाकार प्रेक्षा मेहता ने गलत अर्थ में ले लिया। पाश या धूमिल ने कहीं भी निराशाजनक संदेश नहीं दिया। फिर प्रेक्षा ने इसे लाॅकडाउन में उदासी के साथ क्यों जोड़ लिया? प्रेक्षा मुम्बई में फिल्मी दुनिया से जुड़ी थी। क्राइम पेट्रोल के कुछ एपिसोड्स में आई और कुछ अन्य धारावाहिकों में भी। फिर लाॅकडाउन हुआ तो इंदौर आ गयी मम्मी पापा के पास। वहीं रहते प्रेक्षा को लगा कि लाॅकडाउन के चलते शायद लम्बे समय तक उसे फिर मुम्बई से काम का संदेश नहीं आयेगा। बस इसी डिप्रेशन में उसने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया। जो बहुत गलत संदेश दे रहा है। इससे पहले पंजाब के एक टीवी कलाकार मनजीत ग्रेवाल ने भी आत्महत्या की। क्या कोरोना का संकट कलाकारों में उदासी पैदा कर उन्हें डरा रहा है? यह कोई हल तो नहीं है। ज़िंदगी जीने के लिए है न कि आत्महत्या कर यूं ही कौड़ियों के भाव गंवा देने के लिए। कलाकार और खिलाड़ी तो सबसे ज्यादा संदेश दे रहे हैं पाॅजिटिविटी का। प्रेरणा का। फिर प्रेक्षा या मनजीत ने ऐसे संदेश क्यों दिए? हिसार में कलाकारों की कोई कमी नहीं लेकिन सबने अपने आपको लाॅकडाउन के अनुसार ढाल लिया है। यही जीवन है। जीना इसी का नाम है। प्रेक्षा क्या पता इंदौर में ही तुम नये ढंग से काम कर सकती थी। क्या पता इंदौर में ही स्टार बन जाती। मनजीत ग्रेवाल के कर्ज में डूबने की बात सामने आई है। ये दो घटनाएं इस ओर संकेत करती हैं कि जो कल तक हमारा मनोरंजन करते थे आज उनकी सुध लेने की जरूरत है। समाज और सरकार इस ओर पहल करे और कलाकारों की मदद के लिए आगे आए।