समाचार विश्लेषण/मूर्ति पूजक देश में प्रधानमंत्री के पुतले जलाने के क्या इशारे?

समाचार विश्लेषण/मूर्ति पूजक देश में प्रधानमंत्री के पुतले जलाने के क्या इशारे?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

हमारा देश मूर्ति पूजक देश है । मंदिर , पार्क, सार्वजनिक स्थानों और कितनी ही जगह मूर्तियां ही मूर्तियां ही  लगी दिखती हैं । एक चंडीगढ़ ऐसा शहर है जिसमें मूर्ति लगाने पर प्रतिबंध है । हिसार को तो प्रतिमाओं का शहर ही कहा जाता है । इसी कारण कैंप चौक पर कभी नेताजी सुभाष चंद्र की ऐनक कोई उतार ले जाता है तो कोई मुल्तानी पार्क में सरदार पटेल की मूर्ति खंडित कर देता है । कभी महारानी लक्ष्मी बाई की तलवार ही गायब या आधी अधूरी रह जाती है । प्रतिमाओं के साथ कैसा सलूक होता है , यह देखना हो तो नागौरी गेट पर लाला लाजपत राय की प्रतिमा पर लगे नेताओं के आने के बोर्ड और झंडे देख लीजिएगा । लाला जी तो नज़र ही नहीं आते बल्कि नये नेता ही उन्हें छिप जाने को मजबूर कर देते हैं । हमारा प्यार हिसार की न मुहिम का असर न स्वच्छता अभियान की चिंता । बस । चिपकाते जाओ पोस्टर पे पोस्टर । कहां तक हमारा प्यार हिसार स्वच्छ करेगा ? 

पश्चिमी बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां खासतौर पर विजयादशमी के अवसर पर समयानुसार सामाजिक समस्या पर रावण के पुतलों की बजाय वैसे पुतले बनाये जाते हैं । कभी किसी तो कभी दूसरी समस्या को केंद्र में रख कर पुतले बनते हैं और देश भर में इनकी चर्चा होती है । इस बार हरियाणा के अम्बाला में किसान आंदोलन और किसान कानूनों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पुतले जलाते गये । अन्य राज्यों में भी पहली बार प्रधानमंत्री के पुतले जलाते जाने के समाचार हैं । 

इस तरह बड़ी संख्या में पुतले जलाते जाने के क्या संकेत माने जायें ? क्या प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता जा रहा है? क्या नोटबंदी, कोरोना से लड़ाई में असफलता या बेरोजगारी व आर्थिक मंदी इसके बड़े कारण माने जा सकते हैं ? आप देखिए देशवासियों ने बड़ी श्रद्धा से आपके मन की बात सुनते हुए ताली और थाली बजाई , मोमबत्तियों जलाईं और स्वास्थ्य कर्मचारियों व सफाई कर्मियों पर पुष्प वर्षा की लेकिन उन्हीं स्वास्थ्य कर्मियों का वेतन देने में देरी कर आप क्या संदेश दे रहे हैं ? आपकी कथनी और,करनी में इतना फर्क क्यों है ? किसान के लिए संसद की कैंटीन में सस्ती थाली में भोजन कर अन्नदाता को प्रणाम करते हो और किसानों पर लाठीचार्ज भी करते हो ? पिपली के बाद भी हरियाणा में यह सिलसिला रुका नहीं । कभी विपक्ष में इन्हीं किसानों के लिए अर्दधनग्न प्रदर्शन करने वालों के पास किसान का दर्द सुनने व जानने का समय नहीं । क्या किसान सिर्फ वोट बैंक हैं ? किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं उनके लिए तो महाराष्ट्र में नाना पाटेकर , आम जन या प्रवासी मजदूरों कोरोना से पीड़ित तो सोनू सूद । सरकार कहा है ? सरकार सिर्फ कंगना रानौत की बात सुनती है , किसान की नहीं । राज्यपाल को कंगना रानौत की समस्या सबसे बड़ी लगती है , आम आदमी कहां जायें और किसको अपना दर्द सुनाये? आखिर पुतले जलाने से क्या संदेश जाता है ? बरोदा उपचुनाव में सारा मंत्रिमंडल और स्टार प्रचारक , तभी पूछा कि जब मुख्यमंत्री यहां से निकलते थे तब तो स्पीड ब्रेकर के बावजूद नहीं रुके दुख दर्द जानने के लिए । अब सारा मंत्रिमंडल हाजिर । वाह । यह लड़ाई  है दीये की और तूफान की । चलिए देखते हैं ।