समाचार विश्लेषण/यह कैसी इवेंट मेरे साहब?
-*कमलेश भारतीय
स्वतंत्रता के पचहतर वर्ष को हमारे प्रधानमंत्री ने नाम दिया-अमृत महोत्सव । सचमुच सागर मंथन के बाद निकला था अमृत और कितनी कुर्बानियां देने के बाद मिली स्वतंत्रता । पर जिस तरह इस महोत्सव को मनाया जा रहा है , वह थोड़ा चौंकाने वाला है । कभी तिरंगा यात्रा के नाम पर तिरंगे का ही अपमान -यहां वहां फेंक कर तो अब शुरू किया गया इसी के अंतर्गत अन्नपूर्णा उत्सव । है न बिल्कुल धारावाहिक महाभारत जैसी लुभावनी हिंदी -जीजाश्री, भाभीश्री जैसी । अमृत महोत्सव और अब अन्नपूर्णा उत्सव । कितने पावन , कितने सुंदर नाम पर कभी राहुल गांधी ने तो कभी हमारे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसे इवेंट मैनेजमेंट वाली सरकार कहा था तो सच कहूं अब मुझे भी थोड़ा थोड़ा विश्वास होने लगा है कि यह सरकार हर बात को इवेंट में बदलने में बहुत कुशल है । कैसे अमृत महोत्सव अब अन्नपूर्णा उत्सव तक पहुंच गया । जैसे कोरोना को भी उत्सव ही बना दिया था -कभी ताली थाली बजाने को कह कर तो कभी मोमबत्तियां जलाने को कह कर । सच । एक महामारी को भी हमारे साहब ने इतनी सुंदर इवेंट में बदल दिया कि कोरोना जा ही नहीं रहा इतना भव्य स्वागत् देखकर । तीसरी लहर आने का अंदेशा जताया जा रहा है । कितनी कल्पना है हमारे साहब में । कितनी मैनेजमेंट है । वाह । कभी राहुल गांधी ने सूट-बूट वाली सरकार भी कहा था जिसका काफी मज़ाक पप्पू पप्पू कह कर उड़ाया गया ।
अब अन्नपूर्णा उत्सव का विरोध भी होने लगा है । दीपावली तक पांच किलो गेहूं मुफ्त और भाजपा नेता अन्नदाता बन गये जबकि अन्नदाता कृषि कानून रद्द करवाने के लिए सौ दिन से ऊपर प्रदर्शन कर रहे हैं । इसकी कोई चिंता नहीं । हद है न ? बस । इसीलिए किसानों ने इसका विरोध शुरू किया । इस तरह मुफ्त गेहूं वितरण कर वाहवाही लूटने गये विधायक व मंत्रियों का विरोध होने लगा है कि हमें यानी किसानों को इस तरह कतारों में लगा कर हमारा मज़ाक क्यों उड़ा रहे हो ? हम तो खुद अन्नदाता हैं , आप कब से अन्नदाता बनने चले ?
अगर अमृत महोत्सव ही मनाना है साहब तो महंगाई कम कर दीजिए न । रसोई गैस सिलेंडर आपके शासन में दोगुने रेट पर पहुंच गया । उज्ज्वला योजना वालों के पास इतना महंगा सिलेंडर खरीदने के पैसे नहीं हैं । फिर उज्ज्वला योजना का ढिंढोरा किसलिए ? रसोई गैस , पेट्रोल , डीज़ल और न जाने कितनी जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान से भी ऊपर पहुच चुके हैं । कितने अच्छे दिन ,,,इससे पहले कभी नहीं आए ,, साहब । प्लीज जनता कह रही है कि हमें हमारे पुराने दिन ही लौटा दीजिए । हमारा वही अमृत महोत्सव ठीक था । ये दिन वापस ले लीजिए । इवेंट मैनेजमेंट और मन की बात छोड़ कर हमारे मन की बात सुनिये साहब । अपने ख्यालों में कब तक खोये रहोगे ?
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
बीते हुए दिन वो मेरे
प्यारे प्यारे दिन...
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।