नीबू-पानी न सही, वादियों में घूमने का सुकून तो है

नीबू-पानी न सही, वादियों में घूमने का सुकून तो है

जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, पहाड़ों पर घूमने की चाहत तेज होती जाती है। यही कारण है कि हिल स्टेशन इस समय सैलानियों से गुलजार हो रहे हैं। ऐसे में नीबू पानी की मांग हो रही है, लेकिन नीबू के रेट तो सातवें आसमान पर पहुंच चुके हैं। पिछले साल चक्रवात क्या आया कि गुजरात और महाराष्ट्र में नीबू की खेती को भारी नुकसान हुआ। कोरोना महामारी के दौरान बिक्री नहीं हुई तो आगे और नुकसान से बचने के लिए, किसानों ने नीबू की खेती पर उतना जोर भी नहीं दिया। इस बीच, रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया और पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ गए। नतीजा यह हुआ कि नीबू की पैदावार घट गई और लागत बढ़ गई। नतीजा यह है कि नीबू साढ़े तीन सौ रुपए से लेकर चार सौ रूपए प्रति किलो तक बिक रहा है। नीबू के दाम अब तभी कम होंगे जब फसल की नई खेप आनी शुरू होगी। जो भी हो, पर्यटन उद्योग तो खुश है कि बीते दो साल का घाटा पूरा करने का समय आ गया है।

 

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि मौजूदा समय को कश्मीर में पर्यटन का सुनहरा दौर कहा जा सकता है। पिछले कुछ माह में घाटी में घूमने के लिए 80 लाख से अधिक पर्यटक कश्मीर पहुंचे हैं। बीस साल में ऐसा पहली बार हुआ है। डल झील में इस वक्त 3500 शिकारा पर्यटकों को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पर्यटकों की आवाजाही में तीव्र वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में प्रतिदिन 30 हजार से अधिक पर्यटक पहुंच रहे हैं। हिमाचल जाने वाले पर्यटकों में ज्यादा संख्या पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कलकत्ता और मद्रास के लोगों की है। हालांकि, गुजरात से इस बार पहले की तुलना में कम पर्यटक पहुंचे हैं। शिमला में पिछले दस दिनों में करीब डेढ़ लाख पर्यटक पहुंचे हैं। मनाली में भी हर दिन 10 हजार पर्यटक पहुंच रहे हैं। शिमला के होटलों में रूम ऑक्युपेंसी फिलहाल 30 प्रतिशत चल रही है। होटल मालिकों को उम्मीद है कि मई का महीना पर्यटन के लिहाज से अच्छा जाएगा। इसी तरह से मसूरी और नैनीताल में भी होटल और सड़कें सैलानियों से भरपूर नजर आ रहे हैं।

 

विदेशों में पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए यूक्रेन त्रासदी एक बड़ी मुसीबत बनकर सामने आई। बीस हजार से अधिक भारतीय छात्रों को भारत सरकार के प्रयासों से बम और मिसाइलों के बीच से सुरक्षित निकाल कर उनके घरों तक पहुंचा दिया गया। लेकिन इनकी पढ़ाई अधर में लटक गई। हालांकि सरकार का मंथन जारी है कि इन युवाओं की पढ़ाई को आगे कैसे बढ़ाया जाए। इस बीच एक राहत देने वाली खबर आई है। ज्यादा दुविधा में वे छात्र हैं जो फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे थे। युद्ध से त्रस्त यूक्रेन की सरकार ने मेडिकल छात्रों को डिग्री देने का भरोसा दिया है, ताकि उनकी बरसों की मेहनत बेकार न चली जाए। खार्कीव यूनिवर्सिटी की डीन ने एमबीबीएस फाइनल ईयर के छात्रों को भेजे पत्र में कहा है कि –हम रहें न रहें, लेकिन मरने से पहले हम आप लोगों को आपकी डिग्री देने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी डिग्री की सॉफ्ट कॉपी एजेंट को भेज दी जाएगी। ऐसा हो पाता है तो यह सचमुच एक जीवनदायिनी कदम होगा।  

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)