ओलम्पिक में हाॅकी की किस्मत कब बदलेगी?
-*कमलेश भारतीय
आखिरकार कल रात टूट गयी हाॅकी से गोल्ड की आस, जब भारतीय टीम जर्मनी से सेमीफाइनल में अंतिम छह मिनट से पहले हुए गोल से हार गयी । बावन साल बाद भारतीय हाॅकी टीम इस ओलम्पिक में आस्ट्रेलिया को हरा पाई जबकि एक समय विदेशी टीमें हमारी हाॅकी टीम के आगे नाचती थीं और दो दो दर्जन गोल करने का भी रिकॉर्ड है। हाॅकी के जादूगर ध्यानचंद तो ऐसे खेलते मानो गेंद उनकी हाॅकी से चिपका दी गयी हो। उनकी हाॅकियां भी खेल के दौरान बदल कर देखी गयीं लेकिन नतीजा वही रहा । हाॅकी में एकमात्र गोल्ड पर ही देश खुश हो जाता रहा । मुझे याद हैं हाॅकी के सुनहरे दिन जब हमें स्कूल के प्रांगण में इकट्ठे कर ओलम्पिक में हाॅकी मैच की रेडियो पर कमेंट्री सुनाई जाती थी और हम गोल्ड जीतने के बाद खूब हिप हिप हुर्रे और भारत माता की जय करते थे। उन दिनो़ गली गली में हाॅकी खेलते ही बच्चे दिखते थे । जालंधर के गांव संसारपुर को हाॅकी की नर्सरी कहा जाता था । न जाने कितने हाॅकी ओलम्पियन इसी के मैदान से निकले । हाॅकी खिलाड़ियों को राजनीति में भी सितारों की तरह लपका गया । असलम शेर खान एक बार मलेशिया के विरुद्ध आखिरी मिनट में पेनल्टी काॅर्नर पर गोल दाग कर हीरो बन गये थे और कांग्रेस ने उन्हें राजनीति में भी उतार दिया था और वे वहां भी जीत गये थे । पंजाब में आजकल हाॅकी खिलाड़ी परगट सिंह कांग्रेस के विधायक हैं । वे जालंधर छावनी से चुनाव लड़ते हैं यानी हमारे पुराने जिले जालंधर में आज भी हाॅकी का क्रेज बाकी है । इसी प्रकार हरियाणा में भी शाहाबाद मारकंडा महिला हाॅकी खिलाड़ियों का गांव कहा, माना जाता है । रानी रामपाल की कहानी कौन नही़ जानता?
अब हाॅकी के स्वर्णिम दिन नहीं रहे । हाॅकी के लिए पैसा तक नहीं । चर्चा है कि उड़ीसा सरकार हाॅकी के लिए सब कुछ जुटा रही है । एक समय तो हाॅकी खिलाड़ियों की शर्ट के पैसे के भी लाले पड़ गये थे । अब गली गली क्रिकेट खेलते नज़र आते हैं बच्चे और हाॅकी का तो कुछ पता भी नहीं किसी को । राष्ट्रीय खेल हाॅकी अब पूरी तरह उपेक्षित है । इस बार आस्ट्रेलिया को हराने के बाद कहा जाने लगा था कि मेडल का रंग बदल जायेगा यानी सिल्वर या गोल्ड लेकिन अब फिर से तीसरे स्थान के लिए लड़ाई बाकी है, यह कांस्य भी बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा । आखिर हम अपनी हाॅकी को बचाने के लिए कोई कदम उठायेंगे ? जिन देशों को हमने हाॅकी सिखाई, आज वे हमे मात दे रहे हैं, हमें सिखा रहे हैं, नचा रहे हैं । क्या हाॅकी के सुनहरे दिन लौटेंगे ? कोई लौटा दे इसके बीते हुए दिन वो इसके प्यारे प्यारे दिन । दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी