समाचार विश्लेषण/चुनाव में मुद्दे कहां, बेकार की बहस
पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होने की ओर हैं और यह बात सामने आ रही है कि चुनाव में मुद्दे गायब हैं बेकार की बहसें जारी हैं । जनता के मुद्दों पर कहां और कौन बात करता है ?
-*कमलेश भारतीय
पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होने की ओर हैं और यह बात सामने आ रही है कि चुनाव में मुद्दे गायब हैं बेकार की बहसें जारी हैं । जनता के मुद्दों पर कहां और कौन बात करता है ? चुनाव में साफ हवा पानी बड़ा मुद्दा होना चाहिए लेकिन पर्यावरण की चिंता किसे ? नदी , पर्वत और संस्कृति की चिंता किसे ? सबकी अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग है । कोई दूसरे दल के चुनाव निशान और टोपी को लेकर खूब खूब आरोप लगाता है तो कोई परिवारवाद को निशाना बनाता है । अनेक दल परिवारवाद के शिकार और परिवारवाद से ही उपजे हैं । पंजाब हो या हरियाणा या फिर उत्तर प्रदेश या फिर बिहार या पश्चिमी बंगाल सब राज्यों में परिवारवाद का पूरा असर देखने को मिलता है । परिवारवाद में क्या विवाद नहीं होता ? हरियाणा में परिवारवाद ने क्या गुल नहीं खिलाया ? नये दल का जन्म हो गया तो उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में एक दल में चाचा भतीजा चुनाव भूल कर आपस में लड़ाई करते रहे और सत्ता हाथ से निकल गयी । बिहार में भी यादव परिवार के सपूत आपस में भिड़े रहे । सत्ता आते आते चली गयी । आरोप तो सही है लेकिन इसी के बल पर चुनाव जीतने की इच्छा पूरी कैसे हो सकती है ?
चुनाव में मुफ्त मुफ्त के नारे ऊंचे होते जा रहे हैं । आखिर देश प्रदेश चलेगा कैसे ? कहां से आयेंगे संसाधन ? कहां से आएगा धन ? सब मुफ्त तो फिर योजनाएं सिरे कैसे चढ़ेंगीं? कोई दल इस मुफ्त की चपेट में आने से नहीं बचा ।
मुद्दा होना चाहिए नदियों को बचाने और शुद्ध पानी का लेकिन कोई इनकी बात नहीं करता और यही भावुक बात कही जाती है कि मुझे गंगा मैया ने बुलाया है । यदि गंगा मैया ने बुलाया है तो उसकी व्यथा तो सुन लो , साहब कि गंगा भी तरसती रह जायेगी सफाई के लिए ?
पंजाब में चुनाव से पहले नशे के बढ़ते प्रचलन और युवा पीढ़ी की जितनी चिंता होनी चाहिए , वह किसी का मुद्दा न रहा । युवा पीढ़ी की चिंता किसे ? अरविंद केजरीवाल पर पिछले विधानसभा चुनाव से पहले उड़ता पंजाब फिल्म बनवाने का आरोप लगा था । इस फिल्म की फंडिंग का इल्जाम लगा था और चुनाव तक फिल्म प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग भी उठी थी । जैसे एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म पर भी रोक लगी रही थी और कभी आंधी फिल्म भी चर्चा में रही थी । किस्सा कुर्सी का कहां गयी पता ही नहीं किसी को ।
चुनाव में मुद्दे उठने जरूरी हैं नहीं तो यह कहना बेकार है कि मुझे संसद में बोलने नहीं देते , इसलिए जनसंसद में आपके बीच आया हूं और जब जनसंसद में आते हो तब मुद्दे गायब कर देते हो और श्मशान , कब्रिस्तान की बात करने लगते हो ,,,कभी कहीं टैगोर याद आते हैं तो कभी कहीं वीर बाल । पर जनता के मुद्दे गायब क्यों हो जाते हैं ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।