समाचार विश्लेषण/ये कहां आ गया किसान आंदोलन?
-कमलेश भारतीय
लगभग तीन माह हो चले किसान आंदोलन को चलते । पहले पहल सरकार ने इसे उपेक्षित किया और इस भ्रम में रही कि किसान दो चार दिन धरना प्रदर्शन कर अपने घरों को लौट जायेंगे । पर यह भ्रम मिथ्या साबित हुआ । तीन माह से आंदोलन जारी है । फिर सरकार ने वार्ताओं का दौर चलाया । लगातार वार्ताएं पर टस से मस नहीं हुई सरकार । बात वही ढाक के तीन पात । न कम, न ज्यादा । आखिर किसान संघर्ष समिति इन वार्ताओं से निराश हो गयी । वार्ता टूटी । उम्मीदें टूटीं । आज भी पंजाब के होशियारपुर से पिता पुत्र ने न केवल कर्ज बल्कि कृषि में लगातार घाटे और किसान कानून वापिस न लेने पर आत्महत्या कर ली है । कितने ही किसान इस आंदोलन पर सरकार की उपेक्षा को देखते हुए आत्महत्या करते जा रहे हैं । सरकार क्या सोच रही है और कोई कदम क्यों नहीं उठा रही? क्या अब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौनी बाबा कहा जाना चाहिए या कहा जाना कितना सही होगा ? दूसरों पर आरोप लगा देना बहुत सरल है लेकिन जब अपनी बारी आई तब न छप्पन इंच का सीना रहा और न ही कोई मौन तोड़ने की तैयारी दिख रही है । वार्ता के द्वार बंद कर लिए हैं और एक फोन काॅल की दूरी बना कर मौन बैठे हैं । बताइए । इतना ही दर्द है किसानों के लिए आपके दिल में ?
दूसरी ओर किसान नेताओं में भी अपना अपना कद बढ़ाने की होड़ सी लगी दिखती है । सीमा पर भीड़ कम होने पर चढूनी चिंता जता रहे हैं जबकि टिकैत किसान महापंचायतों को सही ठहराने में लगे हैं । किसान आंदोलन से सबसे बड़ी बात यह हुई है कि हिंदू मुस्लिम से किया जाने वाला बंटवारा और राजनीति पर अंकुश लग गया है । तभी तो यह कहा जा रहा है कि तैयारी तो हिंदू मुस्लिम सवाल की थी लेकिन किसान आउट ऑफ सिलेबस आ जाने से भाजपा नेतृत्व परेशान हो गया कि इसका सामना कैसे करें ? जब भाजपा कांग्रेस से मुक्त करने का आह्वान और मिशन लेकर चल रही थी , उस वक्त किसान आंदोलन ने कांग्रेस को ही नहीं विपक्ष को जीवनदान दे दिया । प्रियंका गांधी बाड्रा यूपी की किसान महापंचायतों में हल उठाये दिख रही हैं । हरियाणा से दीपेंद्र हुड्डा हुड्डा भी उनके साथ चल रहे हैं । किसान का अपमान करने पर वे चेतावनी दे रहे हैं कि इसका अंजाम अच्छा न होगा । हरियाणा के मुख्यमंत्री विषयांतर के लिए एसवाईएल का मुद्दा उठा रहे हैं । सरकार हिलने लगी है किसान आंदोलन के चलते । डिनर डिप्लोमेसी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आईडी का शिकंजा, यह सब बहुत कुछ कह रहे हैं ।
किसान आंदोलन के चलते हरियाणा पंजाब का भाईचारा मजबूत हुआ है और बंटवारे के बाद पहली बार एक मुद्दे फिर एकजुट हुए हैं । जीत दूर नहीं है । यह आभास हो रहा है ।
ओ राही, रुक जाना नहीं
तू कहीं हार के
कांटों पे चलके
मिलेंगे रास्ते बहार के ,,,