समाचार विश्लेषण/ये कहां आ गये हम और कहां पहुचेंगे?
-कमलेश भारतीय
अरे । यह साल भी जाने वाला है । वैसे तो इस साल को कोई याद नही रखना चाहेगा कोरोना की वजह से । कितने लोगों ने कितने अपनों को खोया । कैसे भूल पायेंगे इस बार और नामुराद कोरोना को ? नहीं, कभी नहीं । कहां कहां और किस छोटे या बड़े घर में धमक नहीं दी ?
खैर । अब सब खैर मना रहे हैं कि यह साल किसी तरह चला जाये । फिर कुछ नया हो जाये । कुछ नया हो ।
इधर जब राजनीति में नज़र जाती है तो तीन चीजें तत्काल ध्यान में आती हैं -राजनीति में बढ़ता बाहुबल , धनबल और दलबदल । फिल्मों में नशेड़ी गैंग छाया रहा सुशांत राजपूत की आत्महत्या के बाद से तो साहित्य में वही पुरानी गति बरकरार रही ।
राजनीति में जो धनबल और दलबदल सामने आया वह तो हैरान परेशान चर देने वाला रहा । किस तरह राजस्थान का दलबदल और मध्य प्रदेश में तख्तापलट । धनबल का फूहड़ प्रदर्शन और सत्ता लोलुपता का नंगा नाच । कहां देखा पहले ? इसी देश में ? अब दिखाई पड़ा किसान आंदोलन । कितनी उपेक्षा अन्नदाता की । सड़क पर बैठा है एक माह से कंपकंपाती सर्दी में और सच में थका कर भगा देने की चाल नज़र आ रही है और विरोध के नाम पर ऐसे किसान नेता जो इधर भी हैं और उधर भी हैं । न यहां हैं , न वहां हैं । न किसानों में न रहनुमानों में । ये कैसी विरोध नीति ?
किसान को भ्रमित माना और विपक्ष के हाथों खेलने वाला बताया जा रहा है । कोई किसी के भ्रम में अपनी जान क्यों दे देगा ? नहीं । सबको जान प्यारी है और जब तक जान है तब तक इसकी जरूरतें भी हैं । जिनके लिए ये किसान प्रदर्शन व आंदोलन चर रहे हैं । क्या इनपर विश्वास नहीं ? आप तो असम और पश्चिमी बंगाल के चुनाव में उलझे हैं ।आपको क्या चिंता किसान की ? हरियाणा में नेताओं को , सत्ताधारी नेताओं को किस तरह घेरा और खदेड़ा जा रहा है ये किस बात के संकेत हैं ? क्या इशारों को नहीं समझोगे साहब ?
इशारों को अगर समझो तो ...