समाचार विश्लेषण/ जहां चुनाव, वहां सौगात
-*कमलेश भारतीय
दशहरे पर कल हमारे प्रिय प्रधानमंत्री और मन से फकीर नरेंद्र मोदी कुल्लू के विश्व प्रसिद्ध दशहरे में थे । पिछले कई दिनों से तैयारियां जोरों पर चल रही थीं और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष और हिमाचल के ही मूल निवासी जे पी नड्डा सारी कमान संभाले हुए थे । खूब दशहरा मनाया और जनसभा हुई और हाथ के हाथ हिमाचल के लिए अनेक सौगातें दीं । उतनी सौगातें जितनी फकीर की झोली में थीं ! जी खोल कर । अब यह बात समझने में देर न लगाइए कि ये झोली फकीर ने हिमाचल में ही क्यों खाली कर दी ? अरे यार ! हद हो गयी आपकी मासूमियत की भी । चुनाव जो आने वाले हैं हिमाचल में भाई ! ले लो फकीर आ गया है जो लेना हो ले लो ! सारी सौगातों की बारिशें यहीं होंगीं !
आपको पश्चिमी बंगाल का चुनाव याद होगा ? वहां तो साहब ने बिल्कुल
ही रवींद्रनाथ टैगोर जैसे लगने लगे थे ! दूर से लम्बी दाढ़ी में पूरे रवींद्रनाथ टैगोर लग रहे थे पर यह गेटअप बंगालियों को भाया नहीं । बात बनी नहीं । चुनाव हार गये । दीदी ममता बनर्जी जीत गयीं । वैसे सौगातें वहां भी कम नहीं बांटीं । झोली तो वहां भी खाली कर दी थी । उससे पहले उत्तर प्रदेश में भी सौगातें ही सौगातें बांटकर आये थे । असल बात यह है कि पांच वर्ष लगातार तो काम हो पाते नहीं । बस विकास की राह देखती रहती है जनता । जब चुनाव सिर पर आ जाते हैं , फिर उसी प्रदेश के देवी देवता , गणमान्य व सेलिब्रिटी भी याद आने लगते हैं । बिस्मिल्लाह खान का घर भी याद आया था । उत्तरप्रदेश के चुनावों में ! यह गंगा यमुनी तहजीब बहुत याद आई थी । अभी हिमाचल के और भी देवी देवता याद आयेंगे सभी दलों को ! कभी मंदिरों में माथा तो कभी हरियाणा के डेरों का जिक्र और फिक्र ! सब याद आता है । समय समय पर । सबका हिसाब होता है ! राहुल गांधी को दक्षिण के एक मंदिर में जनेऊ में उलझा दिया था और अब स्मृति ईरानी ने भारत जोड़ो यात्रा में कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद को याद न करने का आरोप जड़ने मे देर नहीं लगाई थी लेकिन यह आरोप झूठा साबित हुआ और स्मृति ईरानी को शर्मिंदा होना पड़ा! ये खेल चुनावों में आम बात हो गयी । दिल्ली के चुनावों में हमारे युवा नेता अनुराग ठाकुर ने तो अरविंद केजरीवाल को पता नहीं क्या क्या कहा ! उनकी डरावनी सूरत बवाने में कोई कसर न छोड़ी थी ! ये तो दिल्ली की जनता थी जिसने केजरीवाल को फिर मुख्यमंत्री चुन लिया ! बिहार। पंजाब में चुनाव के दौरान भी कितने बड़े पैकेज दिये गये । कहां गये ? क्या हुआ उनका ?
असल में चुनाव के निकट की गयी घोषणाओं या सौगातें की अब पोल खुल चुकी है । जनता भी समझती है कि उसे गुमराह किया जा रहा है । यदि विकास की इतनी ही चिंता थी तो पांच साल तक कहां थे ? अब अचानक ही इतनी मेहरबानियां एकसाथ क्यों ?
हम तो इतना ही कहेंगे :
धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है
हद से गुजर नहीं जाना है !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।