तुम्हें याद हो कि न याद हो....
चंडीगढ में रघुवीर सहाय जी की बेटी हेमा सिंह व उनके पति बागीश सिंह नाटक मंचन करने आए । टैगोर थियेटर में नाटक देखा । संपादक विजय सहगल जी ने इनका इंटरव्यू करने की जिम्मेदारी सौंपी । मजेदार बात कि पति पत्नी जनसत्ता के चंडीगढ संस्करण के संपादक ओम थानवी जी के यहां रूके । कैसे करूं , दूसरे समाचार पत्र के संपादक के घर जाकर इंटरव्यू ? थानवी जी से मुलाकात होती रहती थी । कई बार घर आने को भी कहते ।
उस दिन सुबह मैंने उन्हें फोन लगाया और कहा कि आप हमेशा प्यार से घर आने का निमंत्रण देते रहे , क्या आज आपके घर आ सकता हूं ?
थानवी जी ने कहा : क्यों नहीं ? बल्कि आज आप हमारे साथ नाश्ता करो । मै उसी समय थानवी जी के घर पहुंच गया । वहां हेमा सिंह व बागीश सिंह के साथ नाश्ता किया । फिर मैंने थानवी जी से बडे मासूम बनते कहा कि जब ये मौजूद हैं तो क्या आपकी इजाजत से इस जोडी का इंटरव्यू कर लूं ?
थानवी जी हंसे और कहा कि वैसे तो हमने भी इनका इंटरव्यू शेड्यूल कर रखा है , पर आप कर लीजिए । यह इंटरव्यू दैनिक ट्रिब्यून में आया भी । आजकल तो हेमा सिंह टीवी सीरियल्स में दिखती हैं । बागीश जी ने तब भी कहा था कि वे थियेटर ही करेंगे ।
पर आज भी थानवी जी का वह बड़प्पन याद है । उन्हें याद हो कि न याद हो ...।
-कमलेश भारतीय