कौन सा वायरस लाया कोरोना?
पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से-
कोरोना या कोई भी बड़ा संकट आया तो क्या सत्ता पक्ष या विपक्ष एक हो गये और होते रहे । चाहे भारत पाक या भारत चीन युद्ध रहे । या फिर यूएनओ में अपना पक्ष रखना हो । मिले सुर मेरा तुम्हारा जैसा सुर रहा । सन् 65 की लड़ाई में सारा देश फौजियों के लिए स्वेटर बुन रहा था तो आज सारा देश माॅस्क बना बना कर बांट रहा है । जब से सत्ता बदली है तब से विदेशों में भी दृश्य बदले हैं । कभी विपक्षी नेता विदेश दौरे पर कोई बयान देकर सत्ता पक्ष को उलझन में डाल देता है तो कभी सत्ता पक्ष का नेता ऐसा ही कुछ कह देता है । इस तरह विदेशों में भी बयानबाज़ी जारी रहने लगी । इधर देश में कोरोना संकट में चैनल अपनी नीति नहीं बदल रहे । इसी की ओर संकेत करते हुए राजदीप सरदेसाई ने कहा है कि न्यूज चैनलों के पास अपनी विश्वसनीयता को स्थापित करने का यह अंतिम मौका है । क्यो एक न्यूज चैनल का ही सर्वेसर्वा ऐसी बात कह रहा है ? असल में न्यूज चैनल के बहस के शोज एकतरफा होने लगे और होते चले गये । स्वस्थ बहस से दूर होते चले गये । संतुलन खोने लगे । जब से पालघर की माॅव लिंचिंग की घटना हुई है तब से ये चैनल की बहसें कांग्रेस पर केंद्रित होने लगीं । दूसरे जमात के मुखिया साद को भी इसी तरह जोड़ा जाने लगा । तब जाकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मीडिया में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आरोप लगा दिया कि नफरत का वायरस फैलाया जा रहा है । एक चैनल ने सारी मर्यादाएं और सीमाएं लांघ दीं । क्या इस संकट की घड़ी में इस तरह की पत्रकारिता सही है ? विभाजन की रेखाएं क्यों ? कांग्रेस को भी अच्छे विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए । दूसरे सोशल डिस्टेंसिंग के बार बार के आदेशों के बावजूद पहले यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने कोटा से छात्रों को लाने के लिए अढ़ाई सौ बसें भेजीं और फिर हमारी हरियाणा सरकार ने भी रेवाड़ी से 54 बसें भेज दीं । अभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दबाब बढ़ रहा है । यदि इसी तरह से छात्रों को लाने की कोशिश होती रही तो सोशल डिस्टेंसिंग का क्या होगा और फिर बार बार सवाल उठता है कि प्रवासी मजदूरों के लिए भी ऐसी कोशिश क्यो नहीं की जाती ? कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे की शादी में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गयीं तो कोई कार्रवाई नहीं की गयी । जबकि ज़रा सी सड़क पार करने पर उठी बैठक के दृश्य दिखाए जा रहे हैं । लोगों ने लाॅकडाउन का पालन नहीं किया तो तीन मई से यह अवधि और बढ़ने की आशंका है । हमारे हाथ में है कि हमने घरों में कब तक कैद रहना है ? इस समय यही याद आ रहा है
हम इंसानों से तो
ये पंछी अच्छे
कभी मंदिर पे जा बैठे
कभी मस्जिद पे जा बैठे