समाचार विश्लेषण/मुफ्त रेवड़ी की कीमत कौन चुकाता है?
-कमलेश भारतीय
मुफ्त रेवड़ी की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू की और यह अब हरियाणा में भी पहुंच गयी है । इस चर्चा को हवा देने वाले हैं पचपन तबादले झेल चुके आईएएस अशोक खेमका जो सवाल उठा रहे हैं कि आखिर मुफ्त रेवड़ी की कीमत कौन चुकाता है ? क्या जनता या नेता ? नहीं नेता तो कदापि नहीं चुकाते । वे तो घोषणा कर वादों की फसल काटते हैं और कीमत चुकानी पड़ती है जनता को । क्या आपको याद है हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का वादा -न मीटर होगा , न रीडर होगा । बिजली मुफ्त मिलेगी और हुआ क्या ? जनता ने वोट दे दिये , सरकार बनवा दी और बदले में मिला कंडेला आंदोलन । नौ किसान पुलिस की गोली के शिकार हुए और लम्बे चले आंदोलन का फायदा मिला कांग्रेस को । इसी तरह मुफ्त बस सेवा की घोषणा की पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने , जिसका शुद्ध लाभ उठा रहे हैं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर । मुफ्त बस सेवा बंद नहीं कर पाये क्योंकि महिला वोटर को लुभाने का निशाना है । राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनाव प्रचार में घर घर महिलाओं के हाथों मेहंदी लगाने ब्यूटी पार्लर वाली भेजीं और उन्होंने हाथों पर कमल का फूल बना दिया और इतने से महिलाएं वसुंधरा राजे की फैन हो गयीं और वे जीत गयीं । यह मुफ्त मुफ्त का कमाल था । वैसे अशोक खेमका यह भी कह रहे हैं कि मुफ्त की कुछ कीमत नेताओं को भी तो चुकानी चाहिए । अखिलेश ने साइकिल और लैपटाप बांटे लेकिन सरकारी घर में लगी पानी की टोंटी तक उतरवा ले गये । कोई कीमत नहीं चुकाई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद की कैंटीन में सस्ती थाली वाला खाना खाया और विजिटर बुक में लिखा -अन्नदाता । लेकिन उसी अन्नदाता ने जब आंदोलन चलाया तो छह सौ से ऊपर लोगों को जान देकर कीमत चुकानी पड़ी । मुफ्त मुफ्त में पांच रुपये की थाली दी गयी तमिलनाडु में
जिसे अम्मा थाली कहा जाता था लेकिन इसकी दूसरे राज्य चाहकर भी नकल न कर सके । अरविंद केजरीवाल ने पंजाब को तीन सौ यूनिट बिजली फ्री देकर लुभाया और सरकार बना ली । लेकिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व विकास पुरूष कहे जाने वाले चौ बंसीलाल बहुत सही कहते थे कि मैं मुफ्त बिजली देने का फैसला नहीं कर सकता क्योंकि बिजली मेरे घर या आपके घर नहीं बनती । यही बात अरविन्द केजरीवाल को कौन बताये ? यह मुफ्त की रेवड़ी बहुत महंगी पड़ती है जनता को । जब तेल , पेट्रोल और रसोई गैस की कीमतें आसमान छूने लगती हैं । फिर महंगाई का रोना किसलिए ? सस्ता बार बार रोये और महंगा एक बार ! मुफ्त से पीछे कदम पीछे हटाइये और मेहनत को सलाम कीजिए ।
दुनिया में रहना है
तो काम कर प्यारे ..
हाथ जोड़ मुफ्त को
भगा मेरे प्यारे ..
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।