कौन आयेगा, कौन जायेगा? 

कौन आयेगा, कौन जायेगा? 

-*कमलेश भारतीय
-आओ संजय । महाभारत का एक भाग तो समाप्त हो गया । अब क्या समाचार हैं तुम्हारे पास? 
-महाराज । आप ठीक कह रहे हैं कि मतदान का पहला भाग संपन्न हो गया । अब मतगणना शेष है, जिसकी प्रतीक्षा सभी शिविरों में हो रही है । 
-फिर अब सेनायें शिविरों में लौट चुकी होंगीं ? क्या कर रही होंगीं ? 
-जी महाराज धृतराष्ट्र । सभी नेताओं की सेनायें क्या और नेता क्या, सभी आज के दिन तो जमकर विश्राम की अवस्था में रहेंगे । इक्कीस दिन की इतनी भागदौड़ और श्रम के बाद एक दिन तो पूरे मन से सोयेंगे, खायेंगे और‌ परिवार के साथ बतियायेंगे भी । 
-यह तो ठीक कहा संजय । आज न कार्यकर्त्ताओं की जयजयकार होगी, न  रथ लेकर गांव गांव जाना होगा । फिर करेंगे क्या ये लोग संजय? 
-अनुमान लगायेंगे और‌ क्या? 
-अनुमान कैसा? 
-जो युद्ध के मैदान में कर चुके हैं, उसका अनुमान । 
-कैसे? 
-इसे आजकल एग्जिट पोट कहा जाने लगा है, महाराज यानी पूर्वानुमान चुनाव परिणाम का । 
-ऐसा? तो क्या रहा पूर्वानुमान संजय? 
-महाराज, मेरे जैसे या नारद जी जैसे पत्रकार यह अनुमान बता रहे हैं कि भाजपा जा रही है हरियाणा से और कांग्रेस आ रही है । शेष दलों‌ का लगभग सूपड़ा साफ होने जा रहा है । 
-ऐसे में शेष दल कौन कौन से हैं? 
-इनेलो-बसपा गठबंधन है, महाराज। जजपा-आसपा गठबंधन है, आप और निर्दलीय हैं । 
-अरे इतने सारे दल? 
-महाराज। यह भी चुनाव पूर्व एक षड्यंत्र रहा कि इतने सारे दल और उनके प्रत्याशी चुनाव महाभारत में उतार दो कि कांग्रेस की हवा को थाम लिया जाये। 
-ऐसा षड्यंत्र? 
-महाराज। इतना ही नहीं सुनारिया कारागार में बंदी यौन शोषण के एक अपराधी को भी पैरोल‌ देकर नाम चर्चा के बहाने चुनाव चर्चा करने भेजा गया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अचानक से जमानत स्वीकार हो गयी और वे भी हरियाणा को अपनी मातृभूमि और जन्मभूमि का राग अलपते आ गये । 
-हे भगवान् । इतने प्रपंच । इतने छल कपट? 
-महाराज। आप यह नहीं कह सकते क्योंकि सारी महाभारत छल कपट और‌ प्रपंचों से भरी पड़ी है। ये नेता तो महाभारत के योद्धाओ के आगे कुछ भी नहीं हैं।
-यह तो बिल्कुल ठीक कहा संजय तुमने। 
-क्या सारे छल, सारे प्रपंचों के तीर‌ चलाये जा चुके? 
-नहीं महाराज। एक प्रपंच चुनाव परिणाम के बाद चलाया जाता है । 
-वह कौन सा ? 
-यह प्रपंच अपने लोकतंत्र में संविधान को ताक पर रखकर खेला जाता है, महाराज । 
-बताओ संजय, पहेलियां न बुझाओ । 
-महाराज । यह प्रपंच है कि दलबदल करवाना, निर्दलीय नेताओं को बस में करना ।
-अच्छा तो ऐसे, पर जिस दल से चुनकर आयेंगे, उस दल को कैसे एकदम छोड़ सकते हैं ? 
-धनबल से सबका ईमान और भगवान् परिवर्तित हो जाता है, महाराज धृतराष्ट्र । 
-यह तो महाभारत से भी आगे का षड्यंत्र है संजय । 
-जी महाराज । अश्वस्थामा ने कैसे अर्द्धरात्रि को पांडव‌ शिविर पर आक्रमण कर दिया था महाराज। 
-हां, ठीक कहते हो संजय । फिर ये क्या करते हैं और कैसे करते हैं ? 
-कलयुग में चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ ही यह षड्यंत्र आरम्भ हो जाता है और इन्हें प्रलोभन दिया जाने लगता है और रमणीय स्थलों पर ले जाकर छिपाकर रखा जाता है । इनके सारे संयंत्र छीन लिये जाते हैं और इन्हें परिवार से भी अलग थलग कितना जा सके । 
-फिर ? 
-शपथ ग्रहण समारोह में इन्हें भारी सुरक्षा के बीच विधानसभा भवन में लाया जाता है और ये परेड करते है या धनबल पर नृत्य करते दिखाई देते हैं । 
-फिर कृष्ण क्या करते हैं? 
-कृष्ण नही महाराज। इस षड्यंत्र में चाणक्य के नाम का प्रयोग किया जाता है। कृष्ण तो कहीं मधुर बांसुरी से कोई तान छेड़ रहे होते हैं ।
-ठीक है संजय । अब मेरा मन विचलित सा हो रहा है। मैं विश्राम करना चाहता हूँ। 
-में आपका संकेत समझ गया । जाता हूँ, कल आऊंगा सुबह सुबह। 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।