समाचार विश्लेषण/कौन पढ़ेगा एकजुटता का पाठ?
-*कमलेश भारतीय
क्या हरियाणा कांग्रेस में कोई एकजुटता का पाठ पढ़ेगा ? जैसा कि कल दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वरिष्ठ कांग्रेसजनों की बैठक में इस एकजुटता की घुट्टी पिलाने की कोशिश की । हालांकि इसी बैठक में जाट और गैर जाट की राजनीति पर राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा व विधायक कुलदीप बिश्नोई में बहस भी हुई । दीपेंद्र ने तर्क भी दिया कि यदि चौ भजन लाल की गैर राजनीति इतनी ही असरदार थी तो हजकां बना कर यह करिश्मा क्यों न कर दिखाया ? रणदीप सुरजेवाला ने इनकी बहस को आगे बढ़ने से रोका । वहां तो बहस रुक गयी लेकिन हरियाणा में तो यह बहस आम है कि कौन कारगर है -जाट या गैर जाट की राजनीति ? दूसरे यदि इतनी मैराथन बैठक के बाद कुछ बदलाव होना या करना ही नहीं था तो फिर बैठक किसलिए ? छोटा सा बदलाव भी नहीं । ऐसा कब तक चलेगा ? यह भी सोचने की बात है । राहुल गांधी कह रहे हैं कि अभी मुख्यमंत्री बनने की कोई कोई लड़ाई नहीं है । अभी तो जनता के बीच जाइए और काम कीजिए । मजबूत विकल्प बनने की ओर कदम उठाइए । यह बैठक इसलिए कि चुनौती जो आम आदमी पार्टी से मिल सकती है , उसे देखकर कदम उठाया गया है । लेकिन कोई कारगर कदम नहीं है सिर्फ विचार करना । कोई बदलाव जरूरी है । पहले अशोक तंवर संगठन खड़ा न कर सके । फिर शैलजा भी संगठन को लेकर दुविधा में हैं । जब तक निचले स्तर तक संगठन ही नहीं तो साफ बात है कि अपने अपने गुटों के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । सबके मुंह एक दूसरे के उलट और कदम भी साथ नहीं मिलते । ऐसे उपदेश का क्या परिणाम होगा ? यह शायद राहुल गांधी भी जानते हैं ।
कभी सोनिया गांधी रोड शो करतीं हिसार आई थीं और दूसरी सुबह चलते समय वरिष्ठ नेताओं -भूपेंद्र सिंह हुड्डा , चौ भजन लाल , शैलजा व चौ बीरेन्द्र सिंह को एक ही गाड़ी में बिठा कर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की थी । हुआ क्या ? चौ भजन लाल ने हज़कां बनाई और चौ बीरेन्द्र सिंह समय के साथ और हवा के साथ भाजपा में चले गये । यह एकजुटता का पाठ किसी ने पढ़ने की कोई जरूरत न समझी । यहां मुख्यमंत्री बनने और दूसरे ऐसे प्रत्याशियों को हराने की लड़ाई होती है जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार होते हैं । पंजाब में भी यही तो हुआ है । नवजोत सिद्धू , चन्नी दोनों हारे क्योंकि दोनों एक दूसरे को हराने में लगे थे । खुद की जीत के लिए कोशिश नहीं कर रहे थे । दूसरों को हराने में लगे थे । यही खेल कांग्रेस में हर राज्य में चल रहा है । कहीं एकजुटता नहीं है ।
राहुल बाबा जब तक कांग्रेस में यह लुका छिपी और गुटबाजी का खेल खत्म नहीं होगा तब तक सफलता दूर ही रहेगी । फिर समय पर बदलाव नहीं करोगे तो फिर सफलता दूर होती जायेगी । यह समय रहते कदम उठाने की जरूरत है न कि किसका है इन्तजार ? बताओ न ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।