समाचार विश्लेषण/क्यों उभर रहा विभाजन का दर्द?
-*कमलेश भारतीय
क्या मेवात और पंजाब में जो नये घटनाक्रम हो रहे हैं , इनसे विभाजन का दर्द उभर रहा है ? मेवात में जुनैद और नासिर की कार में जलाकर राख कर दिये जाने की हृदय विदारक घटना ने कांग्रेस विधायक मोहम्मद इलियास को भावुक कर दिया और उनको विभाजन का दर्द फिर से याद आया ? उन्होंने विधानसभा में बताया कि हरियाणा में एक साल में उनके समुदाय के सात लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं । राजस्थान के दो भाइयों की हत्या के दोषी फरार हैं । मोहम्मद इलियास ने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रभक्त हैं । हमने बाबर का साथ भी नहीं दिया था बल्कि बाबर की बजाय राणा सांगा का साथ दिया । पहले हम देश के लिये मरे , फिर राज्य के लिये मरे अंर अब कहीं हमें अपनी हिफाजत के लिये ही न मरना पड़े ! बाबर ने युद्ध से पहले मेवातियों से सहयोग मांगा था और अपने मुसलमान होने की दुहाई दी थी । मगर मेवात के मुसलमान राणा सांगा के साथ लड़ाई में खड़े थे । फिर विभाजन हुआ । पाकिस्तान बना । दोनों ओर से काफिले जा रहे थे लेकिन महात्मा गांधी मेवात आये और मुस्लिमों का काफिला रुकवाया था । उन्हें इस देश की रीढ़ की हड्डी बताया था । आज वह माहौल कहां गया ? इससे हमारे सब्र का बांध टूट रहा है । दोषियों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा ? सिर्फ हमें वोट बैंक न समझा जाये ! वे दो मुस्लिम नहीं , दो भारतवासी जिंदा जलाये गये थे ।
इस दर्द को कौन समझेगा ? आज समाज में विभाजन का दर्द फिर से उभर रहा है । चंडीगढ़ में राजकमल प्रकाशन ने भी विभाजन के दर्द पर संगोष्ठी रखी तो कुरूक्षेत्र में ग्रेवाल स्मृति व्याख्यान भी विभाजन की विभीषिका पर ही केंद्रित रहा । पंजाब के एक रचनाकार भूषण ध्यानपुरी ने बहुत खूबसूरत बात कही थी कि हमने खुद ही अपने देश का बंटवारा कर 'कंध ओहले परदेस' यानी दीनार की ओट में परदेस बना लिया और अब इसके परिणाम भुगत रहे हैं !
अभी पंजाब में जो अमृतपाल का उभार हुआ है , वह भी फिर से जख्मों को हरा कर गया है । विभाजन के बाद आतंकवाद के दशक ने पंजाब के विकास की गति को बुरी तरह प्रभावित किया था । मुश्किल से जनजीवन पटरी पर लौटा था कि अब फिर यह आतंकवाद पैर पसार रहा है । इसलिये राजकमल प्रकाशन के विभाजन के दर्द पर सभी वक्ताओं ने कहा था कि अब विभाजन के कारण व मायने और तौर तरीके बदल चुके हैं । यह नये रूपों में समाज व देश को प्रभावित कर अपनी लपेट में ले रहा है । हमें इन तरीकों पर गहरी नजर रखनी होगी और हर समाज का सम्मान करना होगा ! शायद यही इन घटनाओं का संदेश है और यही रास्ता भी !
फिर से हिन्दू , सिख , ईसाई और मुस्लिम सब एक का नारा जरूरी है ।
आवाज दो हम एक हैं !
यह वक्त खोने का नहीं !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।