चेहरा बदल कर होगा बदलाव?
अनुभव और सत्ता की चाबी....
-*कमलेश भारतीय
कल जिस तरह से भाजपा ने हरियाणा में फेरबदल कर चौंकाया, यह कोई पहली बार नहीं है। ऐसा भाजपा करती आ रही है और कुल नौ बार के ऐसे प्रयोग में भाजपा पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने में सफल भी रही। अब देखना है कि ऐन चुनाव का बिगुल बजने के समय पर मुख्यमंत्री बदला जाना और साढ़े चार साल पुराने गठबंधन को नोटतोड़कर जनता में विश्वासमत जीतने जाने का प्रयोग कितना सफल रहता है? बहुत सी बातें सोशल मीडिया भी कह रहा है कि अभी परसों ही तो गुरुग्राम में मनोहर लाल खट्टर की तारीफों के पुल बांधे थे और दूसरे ही दिन मुख्यमंत्री पद से विदाई भी हो गयी? यह कमेंट था या कम्पलीमेंट? साढ़े चार साल पुराने गठबंधन को एक ही झटके में तोड़कर नयी सरकार यह कहते बना ली विजयवर्गीय के शब्दों में कि बदनामी बहुत हो रही थी जजपा के साथ से ! अब समझ आते आते इतने साल लग गये ! यह भी तो एक बड़ा सवाल है । अब तक कहां थे? तभी तो नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कह रहे हैं कि यह भी एक तरह का गठबंधन है एक समाज की वोट काटने के लिए और आखिरी समय किये गये बदलाव से कुछ नहीं होने वाला ! इस कदम से यह जरूर होने जा रहा है कि जजपा बिखरने और टूटने की कगार पर आ पहुंची है । साढ़े चार साल पहले जिससे गठबंधन कर सरकार बनाई, आज वही पार्टी बिखरने जा रही है । चार जजपा विधायकों का नये मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहना, इसी ओर संकेत दे रहा है। पांचवें विधायक रामकुमार गौतम न दिल्ली गये, न चंडीगढ़ ! वे पहली सरकार के गठन से ही मंत्री न बनाये जाने से रूठे हैं और अब तो लगातार छह बार जीतने वाले भाजपा विधायक और गृहमंत्री रहे अनिल विज भी रूठ गये और जिस समय नयी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, वे अपने अम्बाला छावनी स्थित आवास पर किसी नन्हें बच्चे से खेल रहे थे और बाद में गोलगप्पों का लुत्फ उठाते देखे गये!
यह तस्वीर है नयी सरकार के गठन के बाद । इतना कह सकते हैं या अनुमान लगा सकते हैं कि सब कुछ ठीक ठाक नहीं है और वैसा ही नहीं है, जैसी स्क्रिप्ट लिखते समय सोचा गया होगा । अभी कुछ बदलाव आयेंगे या किये जायेंगे, यह निश्चित है । यह एक रफ स्कैच कहा जा सकता है । अभी कुछ रंग भरे जाने बाकी हैं ।
इससे बहुत सारे सवाल उपजते हैं कि क्या सचमुच गठबंधन सरकार चलाने तक ही था और तब तक बदनामी सहनी भी मज़बूरी थी? क्या ऐसे गठबंधन पार्टी की छवि धूमिल नहीं करते और क्या इस तरह ऐन आखिरी मौके पर नेतृत्व में बदलाव सत्ता विरोध को कम कर सकता है ? यह प्रयोग बताता है कि कभी हां तो कभी न ! कोई निश्चित फार्मूला नहीं है यह, प्रयोग है और प्रयोग का कुछ कहा नहीं जा सकता, किस तरह का परिणाम मिले ! क्या जाति आधारित मतों का प्रभाव पड़ता है ? एक समाज से जुड़ी तीन तीन पार्टियां क्या इस ज़ाल में आसानी से फंस जायेंगीं? क्या जैसा सोचा, वैसा ही फल मिलेगा या पंजाब में कांग्रेस के प्रयोग जैसा परिणाम आयेगा? पंजाब में कांग्रेस ने अंतिम समय अपने ही पांव पर बदलाव कर ऐसी चोट मारी कि उससे आज तक उभर नहीं सकी ! संतुलन और सत्ता का संतुलन कैसे और जीत का फार्मूला कैसे बनेगा? अभी जजपा का भविष्य क्या होगा? कहां तो 'मुख्यमंत्री आया' के गीत राजनीतिक मंचों पर सुनाई देने लगे थे और वो भी भाजपा नेताओं की मौजूदगी में जब उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला आते थे और कहां अब नयी ज़मीन तलाशने की चुनौती सामने खड़ी है! फिर से सब सोचने विचारने और रणनीति बनाने का समय है।
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं है घर के लिए !
अब नये चिराग, नयी शक्ति के साथ, नयी रणनीति के साथ सभी दलों को चुनाव में उतरने की चुनौती है । जजपा को नया विश्वास जीतना होगा और कांग्रेस को अपनी गुटबाजी से तौबा करनी होगी जबकि नये मुख्यमंत्री को अग्निपरीक्षा देनी होगी कि वे कितने खरे उतरते हैं हाईकमान की आस पर !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।