भगवान इससे क्या खुश होगा? 

भगवान इससे क्या खुश होगा? 

-*कमलेश भारतीय
बड़ी अजीब सी खबर है ! आंध्र प्रदेश के तिरुमाला के श्री वेंकटेश्वर मंदिर में महाराष्ट्र के पुणे जिले के अनूठे श्रद्धालु आए दर्शन करने । इनमें दो पुरुष, एक महिला और एक छोटा बच्चा सभी के सभी सोने की कई चेन, सोने के धूप के चश्मे,  चूड़ियां, हार और अनेक पहने पहने मंदिर में पहुंचे।  पता है आपको इस सोने का वजन कितना होगा? पूरे पच्चीस किलो सोना ! और कीमत क्या होगी? पूरी 180 करोड़ रुपये। अरे बाप रे बाप। इन श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए एक पुलिसकर्मी के साथ नेवी ब्लू ड्रेस सूट पहने दो निजी सुरक्षाकर्मी मौजूद रहे।बताइये, इससे भगवान क्या खुश हुए होंगे या हो सकते हैं? इतना वैभव प्रदर्शन उस भगवान् के सामने, जिसके सामने यह सब तुच्छ है ! फिर यह वैभव प्रदर्शन क्यों और किसको रिझाने के लिए।मोको कहां ढूंढे रे बंदे 
मैं तो तेरे पास में !!
और किस तरह ढूंढे रे बंदे? 
मैं तो ज़रा भी खुश नहीं तुझसे!! 

यह क्या अद्भुत तरीका है भगवान के दर्शन का ? भगवान के दर्शन करने गए कि अपने धन दौलत का प्रदर्शन करने ? ऐसे ही फिल्मी कलाकार यानी संगीतकार हुआ करते थे -भप्पी महाशय, जिन्हें चलती फिरती सोने की दुकान कहा जाता था और वे महिलाओं से भी ज्यादा आभूषण प्रेमी थे।प्राचीन संतों गुरु नानक, कबीर, सूरदास और मीरा तक ने इस तरह वैभव प्रदर्शन ही नहीं बल्कि धार्मिक पाखंड का अपने काव्य व प्रवचनों में जोरदार विरोध किया है । मीरा बाई तो राजघराने से थीं लेकिन सादा तबीयत रानी सिर्फ कृष्ण भक्ति में डूबी थी । देवर राणा ने उनको ऐसी भक्ति से रोकने के लिए बहुत कोशिश की, यहां तक कि जहर का प्याला तक भिजवा दिया लेकिन मीरा के कदम पीछे नहीं हटे। गुरु नानक देव ने अपने शिष्यों बाला व मर्दाना के साथ धर्म की बजाय पाखंडों का विरोध करने के लिए लम्बी यात्राये़ं कीं और एक हाथ में मजदूर और दूसरे हाथ में किसी अमीर की रोटी लेकर जब निचोड़कर सबके सामने दिखाई तब गरीब की रोटी से दूध और अमीर की रोटी से खून निकला। संतों का यही काम है, यही सीख है कि मेहनत की रोटी खाओ, सुखी रहोगे और रात को नींद भी अच्छी आयेगी । भ्रष्टाचार, घूसखोरी और एक दूसरे को नीचा दिखाने से कुछ न होगा। और इस तरह वैभव प्रदर्शन से तो भगवान कभी खुश नहीं होंगे, यह तो जगजाहिर है। कबीर ने कितना सचेत किया है, इस धार्मिक आडम्बर के खिलाफ, जब वे कहते हैं जिसे निदा फाजली ने नये रूप में इस तरह कहा:

अंदर मूरत पर चढ़े, घी, नारियल, मिष्ठान
मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर मांगे दान ! 

यदि किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया, प्यासे को पानी नहीं पिलाया तो सोने के गहनों का दिखावा किस काम आयेगा, रे अज्ञानी? 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।